प्रशांत किशोर की सोशल इंजीनियरिंग से NDA-महागठबंधन में खलबली
By : dineshakula, Last Updated : October 9, 2025 | 5:58 pm
By : dineshakula, Last Updated : October 9, 2025 | 5:58 pm
पटना, बिहार | 09 अक्टूबर 2025:: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 (Bihar elections) के लिए प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी ने अपनी पहली कैंडिडेट लिस्ट जारी कर दी है। 51 उम्मीदवारों की इस सूची में जातिगत संतुलन और सामाजिक समीकरणों का खास ध्यान रखा गया है। पीके ने स्पष्ट संकेत दे दिया है कि उनकी नजर सत्ता के समीकरणों को बदलने पर है, और इसके लिए उन्होंने सोशल इंजीनियरिंग को हथियार बनाया है।
जनसुराज पार्टी की सूची में 17 उम्मीदवार अति पिछड़ा वर्ग (EBC) से हैं, जो कुल टिकटों का 34% हिस्सा है। बिहार में EBC आबादी करीब 36% मानी जाती है। यह वर्ग लंबे समय से नीतीश कुमार की जेडीयू का मजबूत आधार रहा है। ऐसे में पीके की यह रणनीति सीधे जेडीयू के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश मानी जा रही है।
इसी तरह, 11 उम्मीदवार पिछड़ा वर्ग (OBC) से, 7 अनुसूचित जाति (SC), 8 अल्पसंख्यक (मुख्यतः मुस्लिम) और 8 सामान्य वर्ग (सवर्ण) से हैं।
जन सुराज के उम्मीदवारों की पहली सूची। pic.twitter.com/5VFYHHWm1W
— Jan Suraaj (@jansuraajonline) October 9, 2025
मुसलमानों की बिहार में कुल आबादी करीब 17.7% है और पीके की सूची में 16% उम्मीदवार मुस्लिम हैं। यह लगभग समान अनुपात दर्शाता है और बताता है कि जनसुराज पार्टी इस समुदाय के वोटों को साधने में जुटी है। परंपरागत रूप से मुस्लिम-यादव समीकरण आरजेडी की ताकत रहा है, लेकिन पीके की यह रणनीति आरजेडी के कोर वोट बैंक में सेंधमारी की कोशिश है।
एनडीए और महागठबंधन के बीच सत्ता के संघर्ष में प्रशांत किशोर अब तीसरे मजबूत विकल्प के तौर पर उभर रहे हैं। जातिगत प्रतिनिधित्व के आधार पर उम्मीदवारों का चयन कर उन्होंने साफ कर दिया है कि इस बार मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है।
बिहार विधानसभा की 243 सीटों के लिए दो चरणों में चुनाव होंगे।
पहला चरण: 6 नवंबर | 121 सीटें
दूसरा चरण: 11 नवंबर | 122 सीटें
मतगणना: 14 नवंबर
प्रदेश में कुल मतदाता 7.42 करोड़ हैं, जिनमें 3.92 करोड़ पुरुष, 3.50 करोड़ महिलाएं, और 14 लाख पहली बार वोट डालने वाले युवा शामिल हैं।
प्रशांत किशोर की सोशल इंजीनियरिंग आधारित सूची इस बात की ओर इशारा करती है कि उनकी पार्टी न सिर्फ विकास की बात कर रही है, बल्कि वोट बैंक की सच्चाई को भी स्वीकार कर, उसका इस्तेमाल कर रही है। जाति के आधार पर किया गया यह संतुलन आने वाले चुनावी नतीजों पर गहरा असर डाल सकता है।