’58-76′ पर ‘सियासी’ बतंगड़, फंसे ‘डिग्री’ वाले बाबू!
By : madhukar dubey, Last Updated : May 2, 2023 | 2:56 pm
कुछ बेरोजारों की टोली एक चाय की दुकान पर जमा थी, जहां चर्चा शुरू हुई। सुनो भाई, इस समय सभी भर्तियां बंद हैं। क्योंकि आरक्षण के मुद्दे में पार्टियों नेता आपस में ही उलझे हुए हैं। सबको अपनी-अपनी मनमानी ही करनी है। कोई इसे आगे बढ़ा रहा तो कोई उसकी टांग खींच रहा है। ऐसे में तो नुकसान हम बेरोजगारों का ही है। रामू ने कहा सुनो भाई। जब हाकिम ने कहा था, सुनो भाई, हाकिम ने पहले तो कहा था, जब कोर्ट का फैसला आएगा तो देखा जाएगा। लेकिन कम से कम हमारी-आपकी सियासत के चक्कर में भर्ती न फंसे। क्योंकि न जाने कितने की नौकरी पाने की उम्र पार हो जाएगी। ऐसे में इनकी तैयारी भी धरी की धरी रह जाएगी। हाकिम को यह कत्तई गंवारा नहीं था, पुराने पर भर्ती करें। लेकिन क्या करें, देश के संविधान और कोर्ट के आगे किसकी जिद चलती है। फैसला आया तो हाकिम को अपने जिद को फिलहाल टालना पड़ा। चुनाव सिर पर इसलिए भर्ती का रास्ता भी खोले। लेकिन सियासतदानों से कौन पूछे, जो इतने दिन का जो नुकसान हुआ। लेकिन कहीं न कहीं हाकिम को ही बेरोजगार युवा कोस रहे। ये दीगर है कि सभी अपने-अपने 58-76 को सही ठहरा रहे हैं। इनकी सियासी लड़ाई से इन दोनों से आरक्षण के हकदार न रूठ जाएं। हां, इतना जरूर है, जनता को रूकावटें पसंद नहीं। चाहे कोई भी वाजिब या गैर वाजिब कारण हो।
भर्ती तो रही तब ‘काहे’ नहीं भरोगे फार्म
कालेज कैंपस में डिग्री वाले बाबू टहल रहे थे। अरे भैया सुना आपने, अब भर्ती निकलने वाली है। आपको खबर है कि नहीं। जा भाई, अब क्या करूंगा। कौन सा आचार डालना है। अब तो मेरी उम्र ही बीत गई। आरक्षण बढ़ाने घटाने के सियासी खेल से नुकसान तो हम लोगों का हुआ। ये नेता भी न, अपने वोट के चक्कर में जनता को ही घनचक्कर बना डलाते हैं। ये अपना तो भला कर रहे हैं, हर साल पेंशन भी अपना बढ़वा लेते हैं। इनको सिर्फ और सिर्फ अपने सियासी नफा-नुकसान से ही मतलब है। उसी नफा-नुकसान के हिसाब से लालीपाप थमा देते हैं। तभी पुराने पीजी करने वाले आए कहा, इतने दिन क्यों भर्ती रूकी हुई थी। अगर पुराने पर ही मिलना था तो भर्ती नहीं रोकते।
अरे जब फैसला आता तो चाहे 58 देते या 76 लेकिन पर हम क्या कर सकते हैं। बताओ तैयारी भी गई। उम्र भी और ऊपर से आरक्षण का लाभ भी। डिग्री वाले बाबू बोले, भाई देश की राजनीति तो जाति के नाम पर बांटने का खेल है। आम आदमी को तो सिर्फ रोटी-कपड़ा और मकान चाहिए।
प्रताप सिंह ने कहा भाई किस कैटेगरी में पास-डॉक्टर से इलाज और वकील से मुकदमे की पैरवी कराओगे। खैर छोड़ो देश का भगवान ही मालिक है। अपना क्या अपना हाथ और दिमाग ही जगन्नाथ। मुझे तो मिलना जुलना कुछ भी नहीं, फिर मैं आप सबके साथ हूं। चलो भाई हम लोगों को इस चक्कर में नहीं पड़ना है। क्योंकि राजनीति की बातें और समस्याएं प्याज है। जितनी भी छीलो-छिलती जाती है। अंत में प्याज का छिलका ही मिलेगा। जनता से किसी का लेनादेना नहीं है। अपना उल्लू सभी सीधा कर रहे हैं भाई।
(कथानक स्टोरी)