कोल स्कैम में कोर्ट का नोटिस: जांच एजेंसी पर फर्जी बयान पेश करने का आरोप

By : dineshakula, Last Updated : October 11, 2025 | 11:46 pm

रायपुर: छत्तीसगढ़ के चर्चित कोल घोटाले (coal scam) में अब जांच एजेंसी EOW/ACB खुद सवालों के घेरे में आ गई है। रायपुर की मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत ने EOW और ACB के निदेशक अमरेश मिश्रा, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक चंद्रेश ठाकुर और उप पुलिस अधीक्षक राहुल शर्मा को नोटिस जारी किया है। आरोप है कि इन्होंने आरोपी निखिल चंद्राकर का बयान मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज कराने की जगह पहले से टाइप कर तैयार किया और उसे ही कोर्ट में प्रस्तुत कर दिया।

यह मामला तब सामने आया जब कोल स्कैम केस नंबर 02/2024 और 03/2024 में आरोपी सूर्यकांत तिवारी की जमानत याचिका पर रायपुर की स्पेशल कोर्ट में सुनवाई चल रही थी। इसी दौरान निखिल चंद्राकर के बयान की प्रति अदालत में दाखिल की गई, जिसे EOW ने धारा 164 के तहत दर्ज बताया। लेकिन सूर्यकांत तिवारी के वकीलों ने इसमें गंभीर अनियमितताओं की ओर ध्यान दिलाया।

शिकायतकर्ता गिरीश देवांगन ने आरोप लगाया कि जो बयान कोर्ट में दिया गया वह उस फॉर्मेट और भाषा में नहीं है जो आमतौर पर अदालतों में उपयोग होती है। दस्तावेज का फॉन्ट भी कोर्ट में इस्तेमाल नहीं होने वाला था, जिससे शक गहराया कि बयान बाहर तैयार कर पेनड्राइव से कोर्ट में दिया गया। देवांगन का दावा है कि बयान मजिस्ट्रेट के सामने नहीं बल्कि किसी कंप्यूटर पर टाइप किया गया और अदालत को गुमराह किया गया।

देवांगन ने इसकी शिकायत छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार (सतर्कता) को 12 सितंबर 2025 को की और दस्तावेजों की फोरेंसिक जांच कराई। रिपोर्ट में पुष्टि हुई कि दस्तावेज कोर्ट के तय फॉर्मेट से मेल नहीं खाते। इसके बाद रायपुर CJM कोर्ट में उन्होंने EOW/ACB अधिकारियों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई।

पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस मामले में जांच एजेंसियों की निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि अब जांच एजेंसियां झूठे बयान और सबूत खुद तैयार कर रही हैं, क्या वे सुपारी लेकर काम कर रही हैं? उन्होंने कहा कि यह अदालत के साथ आपराधिक धोखाधड़ी है और इस पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।

सीनियर एडवोकेट फैजल रिजवी ने कहा कि यह देश में पहला मामला है जब जांच एजेंसी ने आरोपी का बयान मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज कराने की बजाय तैयार दस्तावेज कोर्ट में जमा किया। यह न्यायिक प्रक्रिया और संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।

फिलहाल कोर्ट ने तीनों अफसरों से जवाब तलब किया है। मामले की गंभीरता को देखते हुए यह केस न केवल जांच एजेंसियों की पारदर्शिता पर सवाल उठा रहा है, बल्कि आने वाले समय में न्यायिक सुधारों की दिशा में बड़ा संकेत भी बन सकता है।