छत्तीसगढ़ में ‘मसाला एवं सुगंधित’ फसलों की ‘अपार’ संभावनाएं
By : madhukar dubey, Last Updated : March 14, 2023 | 8:22 pm
उक्त उद्गार प्रदीप शर्मा कृषि सलाहकार (Pradeep Sharma Agriculture Consultant) शासन ने बैरिस्टर ठाकुर छेदीलाल कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, बिलासपुर में आयोजित दो दिवसीय छत्तीसगढ़ राज्य में मसाला एवं सुगंधित फसलों की क्षमता एवं संभावनाएं विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य अतिथि की आसंदी से व्यक्त किया।
आगे कहा कि वर्तमान में जहां कृषक परंपरागत फसलों को छोड़कर मसाला एवं सुगंधित पौधों की खेती की ओर आकर्षित होने लगे हैं, वहीं उच्च शिक्षा प्राप्त ऐसे युवक भी जो अभी तक खेती-किसानी के कार्य को केवल कम पढ़े लिखे लोगों का व्यवसाय मानते थे। मसाला एवं सुगंधित पौधों की खेती अपनाकर गौरवान्वित महसूस करने लगे हैं। राज्य के कृषकों को मुख्य फसल के साथ मसाला फसलों की खेती की ओर प्रोत्साहित करना आवश्यक है। क्योंकि मुख्य फसल की अपेक्षा मसाला फसलों से ज्यादा आय प्राप्त होती है।
राज्य में धनिया एवं करायल की खेती पर विशेष जोर देना होगा। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर ने कैंसर प्रतिरोधक धान की किस्में विकसित की है। वैसे ही कैंसर प्रतिरोधक मसाला फसलों पर कार्य किया जाना चाहिए। छोटी राई के बीज उत्पादन कार्यक्रम पर भी कार्य करने की आवश्यकता है। बिलासपुर जिले में पान की खेती की अपार संभावनाएं हैं।
छत्तीसगढ़ राज्य में मसाला एवं सुगंधित फसलों की क्षमता एवं संभावनाएं विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी प्रारंभ
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. गिरीश चंदेल, कुलपति, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर ने अपने उद्बोधन में कहा कि मसाला एवं सुगंधित पौधों की खेती कर किसान आर्थिक रूप से सुदृढ़ हो सकते हैं। क्योंकि भारत में मसाला एवं सुगंधित पौधों की खेती करने के लिए पर्याप्त अवसर उपलब्ध है।
वर्तमान समय में मसाला एवं सुगंधित पौधों की खेती करने की अपार संभावना है। क्योंकि प्रदेश की जलवायु में इन पौधों का उत्पादन आसानी से किया जा सकता है। इस दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के माध्यम से तकनीकी जानकारी प्राप्त कर प्रदेश के किसान लाभान्वित हो सकते हैं। परंपरागत ज्ञान का उपयोग अगर हम खेती में करें तो उसका फायदा हमें ज्यादा प्राप्त होता है।
विश्वविद्यालय राज्य के कृषकों के हित हेतु लगातार प्रयासरत है एवं उनके जीवन स्तर को ऊपर उठाने हेतु कार्य कर रहा है। विश्वविद्यालय ने राज्य में मसाला फसलों के विकास हेतु निरंतर कार्य किया है। जिसका परिणाम 70 क्विंटल धनिया बीज के उत्पादन के रूप में हमारे समक्ष हैं। यदि स्टेक होल्डर किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य प्रदान करेंगे तो किसान समृद्ध होंगे।
मांग एवं पूर्ति के अनुसार राज्य के कृषकों को कार्य करने की आवश्यकता है। यह संगोष्ठी राज्य में मसाला फसलों के विकास में मील का पत्थर साबित होगा। मोटे अनाजों की संभावना को देखते हुए बिलासपुर में भी मिलेट कैफे खोला जाएगा।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डॉ. मोहम्मद असलम, विशेष सलाहकार, जैव प्रौद्योगिकी विभाग, नई दिल्ली ने अपने उद्बोधन में कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य के लिए यह ऐतिहासिक दिन है। क्योंकि राज्य मसाला एवं सुगंधित फसलों से समृद्ध है। मसाला एवं सुगंधित फसलों की इस अनुवांशिक समृद्धि को राज्य के कृषकों को इसकी खेती हेतु प्रोत्साहित कर आर्थिक समृद्धि में बदला जा सकता है। इसे मिशन मोड के अंतर्गत लेकर कृषकों को खेती हेतु तकनीकी जानकारी उपलब्ध कराना समय की मांग है।
अदरक, हल्दी, धनिया एवं अजवाइन राज्य की प्रमुख मसाला फसल है। राज्य के कृषक हल्दी की विभिन्न किस्में उगा रहे हैं लेकिन किस किस्म में अधिक करक्यूमिन मात्रा है इस तरह विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। राज्य में नागरमोथा और जिरेनियम की खेती की अपार संभावना है। मसाला फसलों की खेती में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि वे जहरीले रासायनिक तत्वों से मुक्त हो।
विशिष्ट अतिथि अटल श्रीवास्तव, अध्यक्ष छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल, रायपुर में अपने उद्बोधन में कहा कि नवनिर्मित छत्तीसगढ़ राज्य में मसाला एवं सुगंधित फसलों की खेती की अपार संभावनाएं एवं क्षमता है। राज्य शासन किसान भाइयों को मसालों फसलों की खेती हेतु प्रोत्साहित कर रही है। मसाला फसलों की खेती के लिए अधिक संसाधन की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इसलिए खेती में लगने वाली लागत कम हो जाती है और मुनाफा ज्यादा होता है।
यदि किसान समृद्ध होगा तो राज्य भी समृद्ध होगा। वर्तमान समय में राज्य में मसाला फसलों के रकबे में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है। जो राज्य के विकास में मुख्य भूमिका निभाएगी। राज्य की महती नरवा, गुरुवा, घुरुवा एवं बाड़ी योजना को हमें हर गांव में पहुंचाना होगा। राज्य जैव विविधता का केंद्र है, उसके विकास हेतु राज्य शासन निरंतर प्रयासरत है। मिलेट कैफे समय की मांग है।
नाबार्ड ऋण प्रदान कर राज्य के कृषकों को मसाला फसलों की खेती करने हेतु निरंतर प्रोत्साहित कर रहा है। देश में कृषि जोत का रकबा दिन पर दिन कम होता जा रहा है लेकिन उत्पादकता बढ़ रही है। यह सिर्फ किसान एवं वैज्ञानिकों के प्रयास से ही संभव हुआ है। हम तो सिर्फ एक माध्यम है। किसान भाइयों को मुख्य फसल के अतिरिक्त उच्च मूल्य प्रदान करने वाली फसलों को लेना चाहिए।
प्रगतिशील किसान एवं औसत किसान के उत्पादकता में काफी अंतर होता है। जिस और ध्यान देकर उसे कम करना होगा। किसान उत्पादक संगठन के माध्यम से हमें हैंड होल्डिंग सपोर्ट नहीं मिल रहा है, जिसकी आवश्यकता है। अंतवर्ती खेती कर प्रति इकाई उपज को बढ़ाया जा सकता है। मार्केट इंफ्रास्ट्रक्चर को सुदृढ़ करना आवश्यक है, तभी कृषक लाभान्वित होंगे।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि बाबूलाल मीणा, उपनिदेशक, सुपारी एवं मसाला विकास निदेशालय, कालीकट, केरल ने अपने उद्बोधन में कहां की किसानों को ज्यादा से ज्यादा आय मिले इस ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। छत्तीसगढ़ राज्य में मसाला फसलों की खेती की अपार संभावना है। किसान को उसके उत्पाद की अच्छी कीमत मिले इसके लिए भारत सरकार निरंतर सहयोग प्रदान कर रही है। राज्य में मसालों फसलों की उत्पादकता राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचे इस हेतु प्रयास करना होगा।
छत्तीसगढ़ राज्य में मसाला एवं सुगंधित फसलों की क्षमता एवं संभावनाएं विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ मुख्य अतिथि एवं अन्य अतिथि गण द्वारा मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलित कर किया गया। कार्यक्रम के आरंभ में डॉ. आर. के. एस. तिवारी, अधिष्ठाता कृषि महाविद्यालय द्वारा अतिथियों का स्वागत एवं सम्मान पुष्पगुच्छ तथा स्मृति चिन्ह भेंट कर आयोजन पर प्रकाश डालकर किया गया।
राष्ट्रीय संगोष्ठी में 7 तकनीकी सत्र का आयोजन किया गया
राष्ट्रीय संगोष्ठी में 7 तकनीकी सत्र का आयोजन किया गया। जिसमें प्रतिभागियों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। पोस्टर सत्र में शोधकर्ताओं ने अपने अनुसंधान परिणामों को बताया।
दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में 100 प्रतिभागियों एवं राज्य के विभिन्न जिलों से पधारे लगभग 400 पुरुष एवं महिला कृषकों ने सहभागिता की। इस अवसर पर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर एवं राज्य भर में स्थित कृषि महाविद्यालय, उद्यानिकी महाविद्यालय, कृषि विज्ञान केंद्र एवं विभिन्न विश्वविद्यालयों से पधारे अधिकारियों, प्रतिभागियों, प्राध्यापक, वैज्ञानिक एवं छात्र-छात्राओं ने संगोष्ठी में सहभागिता कर लाभान्वित हुए।
इस अवसर पर प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया। जिसमें मसाला एवं सुगंधित फसलों की खेती करने वाले प्रगतिशील कृषको ने अपने उत्पाद का प्रदर्शन किया। राष्ट्रीय संगोष्ठी में छत्तीसगढ़ राज्य में मसाला एवं सुगंधित फसलों पर उत्कृष्ट कार्य करने वाले कृषकों एवं वैज्ञानिकों को प्रशस्ति पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया।
राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य अतिथि प्रदीप शर्मा एवं अन्य अतिथियों द्वारा टीडी पांडे, एनके चौरे, अजीत विलियम्स, गीत शर्मा, अजय टेगर, रोशन परिहार, विनोद कुमार निर्मलकर एवं यशपाल सिंह निराला द्वारा संपादित संगोष्ठी स्मारिका का विमोचन किया गया। कार्यक्रम का सफल संचालन वैज्ञानिक अजीत विलियम्स एवं युष्मा साव तथा आभार डॉ. एस.एस. टुटेजा, निदेशक प्रक्षेत्र, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर ने व्यक्त किया। राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन एवं पुरस्कार वितरण समारोह प्रो. आलोक चक्रवात,कुलपति, गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिलासपुर के मुख्य आतिथ्य में 15 मार्च को दोपहर 1:30 बजे संपन्न होगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता आनंद मिश्रा, सदस्य प्रबंध मंडल, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर करेंगे। इस अवसर विशिष्ट अतिथि के रूप में राजेश कुमार चंदेल, आईएएए, मुख्य वन संरक्षक बिलासपुर वृत्त, बिलासपुर, बाबूलाल मीणा, उपनिदेशक, सुपारी एवं मसाला विकास निदेशालय कालीकट केरल एवं डॉ. विवेक कुमार त्रिपाठी, निदेशक अनुसंधान सेवाएं, इंदिरा गांधी कृषि विद्यालय, रायपुर उपस्थित रहेंगे।