11 सौ साल पुराने भगवान नृसिंह का दूग्धाभिषेक! धूमधाम से निकली शोभायात्रा
By : hashtagu, Last Updated : May 21, 2024 | 7:08 pm
- इससे पहले सुबह मंत्रोच्चार के साथ भगवान का 151 लीटर दूध से अभिषेक किया गया। फिर हवन-पूजन और दोपहर व शाम को भोग आरती के साथ भंडारे का आयोजन हुआ। मंदिर में भक्त अपनी मनोकामनाएं लेकर पहुंच रहे हैं। यह छत्तीसगढ़ का एकमात्र नृरसिंह मंदिर है और 1100 साल से ज्यादा पुराना है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, आज ही के दिन ही भगवान विष्णु ने नृसिंह भगवान के रूप में अपना 5वां अवतार लिया था। उन्होंने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए मानव और सिंह का आधा-आधा रूप लेकर राक्षस राज हिरण्यकश्यप का वध किया।
मंदिर प्रांगण में शाम 6.40 बजे भगवान नृसिंह द्वारा हिरण्यकश्यप के संहार का मंचन के बाद शाम 7 बजे महाआरती के बाद प्रसाद वितरण के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।
ग्रीष्म काल में गर्म, शीतकाल में ठंडी रहती है प्रतिमा
मंदिर के महंत देवदास वैष्णव ने बताया कि, मंदिर में भगवान नृसिंह की प्रतिमा अष्ट धातु से बनी हुई है। प्रतिमा की विशेषता यह है कि ग्रीष्म काल में छूने पर यह ठंडी रहती है। शीतकाल में प्रतिमा को छूने पर इसके गरम होने का एहसास होता है। इस प्रतिमा का गर्भगृह मोटे पत्थरों से बना है।
मंदिर में भगवान विष्णु के नर और पशु के मिश्रित अवतार के रूप में नृसिंह विराजित हैं। प्रतिमा में दर्शाया गया है कि भगवान नृसिंह अपनी दोनों जंघा पर राजा हिरण्यकश्यप को लिटाकर अपने नाखून से उनका संहार कर रहे हैं। वहीं, पास ही एक और गर्भगृह है, जहां भगवान विष्णु विरांची-नारायण के रूप में विराजित हैं।
मंदिर की छत 28 स्तंभों पर टिकी है
महंत देवदास वैष्णव ने बताया कि, राजा भोसले राजा हरहर वंशी ने मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर की छत 28 खंभों पर टिकी हुई है। एक खंभा एक ही पूरे पत्थर का बना हुआ है। स्तंभों में कोई ज्वाइंट नहीं है। प्रदेश का यह इकलौता मंदिर है, जहां विरांची नारायण और भगवान नरसिंह एक ही मंदिर में स्थापित हैं।
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