‘छत्तीसगढ़ी भाषा’ में पढ़ाई के लिए 81 वर्षीय ‘नंदकिशोर’ की पदयात्रा

समाज में बदलाव लाने के लिए भी कोई उम्र नहीं होती है। बस जरूरत है, उस पर चलने की इच्छा शक्ति।

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  • Publish Date - March 18, 2023 / 07:51 PM IST

छत्तीसगढ़। समाज में बदलाव लाने के लिए भी कोई उम्र नहीं होती है। बस जरूरत है, उस पर चलने की इच्छा शक्ति। कुछ इसी अंदाज में 81 वर्षीय नंदकिशोर जी (81 year old Nandkishore ji)  अपने जोश और जज्बे से बदलाव लाने के लिए पदयात्रा शुरू की। वे अब पैदल 22 किलोमीटर चल चुके हैं। उनका मकसद है, छत्तीसगढ़ी को शिक्षा की भाषा का दर्जा मिले। मोर चिन्हारी (Mōra cinhārī) नाम की संस्था के लोग इस अभियान की अगुवाई कर रहे हैं। प्रदेश की बोली-भाषा के प्रति कई सालों से अभियान चला रहे नंदकिशाेर शुक्ला इस अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं।

नंदकिशाेर हमेशा साइकिल पर प्रदेशभर में घूमते देखे गए हैं। अब पैदल चल रहे हैं। 22 किलोमीटर का सफर नंदकिशारे शुक्ल पूरा करेंगे। मकसद है कि छत्तीसगढ़ी को स्कूलों में पढ़ाया जाए, सरकारी काम-काज भी इस भाषा में हो। इस पदयात्रा को नाम दिया गया है- महतारी भाषा छत्तीसगढ़ी भक्ति जनजागरण पद यात्रा।

शनिवार को ये यात्रा रायपुर के कलेटोरेट परिसर से शुरु हुई। यहां बनी छत्तीसगढ़ महतारी की प्रतिमा को नमन करते हुए 81 साल के नंदकिशाेर आगे बढ़े। ये पदयात्री पैदल चंदखुरी के कौशल्या माता मंदिर जाएंगे। इस यात्रा में ससुराल गेंदा फूल लोक गीत की गायिका रमा जोशी, छत्तीसगढ़ी कलाकार पुरषोत्तम चंद्राकर नंदकिशारे के हमराही बने हुए हैं।

इससे पहले नंदकिशोर ने विधानसभा जाकर चरणदास महंत और प्रदेश के मंत्रियों से मुलाकात की। वहां भी उन्होंने सरकारी काम में छत्तीसगढ़ी का प्रयोग करने और यात्रा की जानकारी दी थी। ‘मोर चिन्हारी छत्तीसगढ़ी’ अभियान के तहत पहले चरण की पदयात्रा बिलासपुर से रतनपुर होते हुए फिर बिलासपुर में समाप्त हुई थी। वहीं इसका दूसरा चरण बिलासपुर से चकरभाठा होते हुए फिर बिलासपुर पहुंची थी।

अभियान के माध्यम से इस बात के लिए जन जागरूकता फैलाने का प्रयास किया जा रहा है कि शिक्षा छत्तीसगढ़ी भाषा में दिए जाने से न केवल प्रदेश की संस्कृति की रक्षा होगी, बल्कि बच्चों के बौद्धिक विकास में मातृभाषा का प्रयोग सबसे अनुकूल होगा।

28 नवंबर 2007 को छ्त्तीसगढ़ी को राजभाषा बनाए जाने के बावजूद कामकाज की भाषा के तौर पर छत्तीसगढ़ी को वो स्थान और महत्व नहीं मिल रहा है, जो उसे मिलना चाहिए।