छत्तीसगढ़ में औषधीय खेती को बढ़ावा

By : hashtagu, Last Updated : April 19, 2023 | 12:39 pm

रायपुर, 19 अप्रैल (आईएएनएस)| छत्तीसगढ़ में औषधीय पौधों (Medicinal Plants) की खेती को विशेष रूप से बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके लिए जलवायु अनुकूल प्रजातियों का चयन कर एक हजार एकड़ से अधिक रकबे में खेती का काम भी शुरू हो गया है। राज्य में आदिवासी, स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधि पादप बोर्ड द्वारा संचालित विभिन्न योजनांतर्गत औषधीय पौधों की खेती की जा रही है। वर्तमान में पायलट परियोजना अंतर्गत लेवेंडर की खेती के लिए छत्तीसगढ़ के उत्तरी भाग में अम्बिकापुर, मैनपाट और जशपुर तथा रोज मेरी की खेती के लिए मध्य क्षेत्र तथा मोनाड्रा स्रिटोडोरा के लिए बस्तर को चिह्न्ति किया गया है। औषधीय एवं सुगंधित प्रजातियों की खेती से किसानों को परंपरागत खेती से दोगुना अथवा इससे भी अधिक लाभ प्राप्त होता है।

औषधीय पादप बोर्ड के मुख्य कार्यपालन अधिकारी जे.ए.सी. राव ने बताया कि नेशनल एरोमा मिशन योजना अंतर्गत राज्य में छत्तीसगढ़ आदिवासी, स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं पादप बोर्ड के सहयोग से औषधीय एवं सुगंधित पादपों की खेती का काम जारी है। इस मिशन के तहत लेमनग्रास, सीकेपी-25 (नींबू घास) की खेती की जा रही है। मुख्य रूप से कृषक समूह तथा किसानों को खेती की तकनीकी जानकारी, रोपण सामग्री की उपलब्धता तथा आश्वन मशीन उपलब्ध कराने जैसी हर तरह की मदद दी जा रही है।

राज्य में लगभग 12 समूह इस मिशन में काम कर रहे हैं जिसमें एक समूह जिला महासमुंद की देखरेख में ग्राम-चुरकी, देवरी, खेमड़ा, डोंगरगांव, मोहदा व अन्य स्थानों पर खेती शुरू की गई है। इनकी फसल कटने के बाद आश्वन यंत्र के माध्यम से तेल को निकाला जा रहा है। वहां आश्वन यंत्र भी स्थापित किया गया है।

इतना ही नहीं उत्पादों की बिक्री के लिए विभिन्न संस्थानों से करारनामा किया गया है, जिससे किसानों को अपने उत्पादों को बेचने में कोई परेशानी न हो।

इसी तरह जिला गरियाबंद अंतर्गत समूह द्वारा कार्य प्रारंभ किया गया है जिसमें बड़ी संख्या में किसान प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं। बोर्ड द्वारा लेमनग्रास के साथ जामारोज सीएन-पांच प्रजाति का भी विगत वर्ष में परीक्षण किया गया है, जिसे वर्तमान में बढ़ाया जा रहा है। लगभग 25 एकड़ में जामारोज सीएन-5 प्रजाति एवं 300 एकड़ से अधिक में लेमनग्रास की खेती की जा रही है। वर्तमान में आईआईआईएम जम्मू तथा कृषकों द्वारा स्वयं सात आश्वन यंत्र लगाए। साथ ही साथ मिशन अंतर्गत उक्त कार्य के संचालित होने से राज्य में स्थानीय स्तर पर चार से छह हजार परिवारों को आर्थिक लाभ प्राप्त होगा।