रायपुर। कहते है कि किसी की हार में एक बहुत बड़ी सीख छिपी होती है। ये दीगर बात है कि कांग्रेस अपने संक्रमणकालीन दाैर से उभरने की कोशिश में जुटी है। ऐसे में अब देखने वाली बात होगी कि शायद दिसंबर तक विधानसभा सीट रायपुर दक्षिण में उपचुनाव (By-election in Raipur South assembly seat) हो। वैसे इसके लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों में रणनीतिक तैयारियां शुरू हो गई हैं। इसमें सबसे ज्यादा चुनौती कांग्रेस के सामने ही है। क्योंकि बृजमोहन अग्रवाल के इस गढ़ में सेंधमारी अगर कांग्रेस कर ले जाती है तो राजनीतिक रूप से कीर्तिमान ही बन जाएगा। लेकिन जो हालात वर्तमान में है, उससे यही लगता है कि कांग्रेस (BJP and Congress) के लिए इस सीट पर जीत हासिल करने के लिए अथक मेहनत करनी होगी। लेकिन सवाल उठता है कि बृजमोहन की लोकप्रियता, भले ही वे सांसद हो गए हैं। पर जनता का विश्वास बृजमोहन पर ही है। ऐसे में यहां भाजपा चाहे किसी हो भी टिकट दे लेकिन जीत दिलाने में बृजमोहन अग्रवाल का अहम रोल होगा।
आइए एक नजर डालते हैं कि कांग्रेस की तैयारियों पर जो इस समय मीडिया और सोशल मीडिया पर चल रही हैं। कांग्रेस की तैयारियों पर क्या रणनीति है, जो सिर्फ चर्चाओं और सूत्रों के मुताबिक ही हम अवगत करा रहे हैं।
कांग्रेस के अंदरखाने चर्चा है कि कुछ वार्डों में काम नहीं होने और कमजोर रिपोर्ट आने के बाद प्रभारियों को बदला जा रहा है। पीसीसी की ओर से स्पष्ट निर्देश हैं कि वार्डों में केवल बैठक लेने से काम नहीं चलेगा। बल्कि वहां बूथों में जाकर कमेटी गठित कर सक्रिय कार्यकर्ताओं से मिलकर संवाद स्थापित करना होगा। कमेटियों के गठन के बाद इसका भौतिक सत्यापन भी कराया जाएगा।
इससे पहले भी हुई बैठकों में प्रभारियों से स्पष्ट कह दिया गया था कि, वार्ड में जाकर सिर्फ बैठक लेकर औपचारिकता पूरी करने वालों को हटा दिया जाएगा। उन्हें बूथों में जाकर समय देना होगा। दरअसल, रिपोर्ट में कुछ प्रभारियों द्वारा बैठकों की खानापूर्ति करने की शिकायतें मिली थी। कई बूथों में जिन कार्यकर्ताओं के नाम थे, वे सक्रिय नहीं थे। उन्होंने निर्देश दिए हैं कि वार्डों के बूथों में पार्टी की गतिविधियां बढ़ाएं।
प्रभारियों समेत जिला पदाधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि, वे ज्यादातर समय दक्षिण के अपने क्षेत्रों में रहें। वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं से जाकर मिले। उनसे मार्गदर्शन लेकर कमेटियों का गठन करें। वहीं, पीसीसी को जमीनी फीडबैक समेत स्थानीय खामियों से अवगत कराएं। जिससे कार्यकर्ताओं से संवादहीनता की स्थिति न बने।
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