भारत में 2022 से अब तक एमपॉक्स के 27 मामले आए सामने, एक की मौत की खबर : डब्ल्यूएचओ

वैश्विक स्वास्थ्य संस्था ने कहा कि यह दुनिया भर में एमपॉक्स के जारी संक्रमण को दर्शाता है।

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  • Publish Date - August 14, 2024 / 11:34 AM IST

नई दिल्ली। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अपने नवीनतम अपडेट में कहा कि भारत में जनवरी 2022 और जून 2024 के बीच एमपॉक्स (पूर्व में मंकीपॉक्स) (monkeypox) के 27 मामले सामने आए हैं। साथ ही एक की मौत की सूचना मिली है।

एमपॉक्स के बहुदेशीय प्रकोप पर डब्ल्यूएचओ की 35वीं स्थिति रिपोर्ट से पता चला है कि जून 2024 में 26 देशों से एमपॉक्स के कुल 934 नए मामले सामने आए हैं। इसमें चार की मौत दर्ज की गई है।

वैश्विक स्वास्थ्य संस्था ने कहा कि यह दुनिया भर में एमपॉक्स के जारी संक्रमण को दर्शाता है।

रिपोर्ट के अनुसार, 567 मामलों के साथ अफ्रीकी क्षेत्र जनवरी 2022 और जून 2024 के बीच सबसे अधिक प्रभावित है। इसके बाद अमेरिका (175 मामले), यूरोपीय क्षेत्र (100 मामले), पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र (81 मामले) और दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र (11 मामले) हैं।

डब्ल्यूएचओ ने कहा कि पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र ने जून 2024 में मामलों की रिपोर्ट नहीं की। दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में थाईलैंड ने सबसे अधिक पुष्ट मामलों (805) की सूचना दी, उसके बाद इंडोनेशिया (88), भारत (27), श्रीलंका (4) और नेपाल (1) का स्थान रहा। थाईलैंड ने भी इस क्षेत्र में एमपॉक्स (10) से सबसे अधिक मौतें दर्ज कीं, उसके बाद भारत (1) का स्थान रहा।

डब्ल्यूएचओ ने निगरानी के महत्व पर जोर देते हुए कहा, ” डब्ल्यूएचओ को दी जाने वाली रिपोर्ट में कमी आ रही है, इसलिए वर्तमान में रिपोर्ट किए गए वैश्विक आंकड़ों में संभवतः एमपॉक्स मामलों की वास्तविक संख्या को कम आंका गया है।”

रिपोर्ट में कहा गया है कि पूर्वी अफ्रीका के चार नए देशों बुरुंडी, केन्या, रवांडा और युगांडा में एमपॉक्स के पहले मामले सामने आए हैं।

संयुक्त राष्ट्र स्वास्थ्य निकाय ने कहा कि इन देशों में बढ़ते संक्रमण के लिए ‘क्लेड I’ जिम्मेदार है।

इसके अलावा, पश्चिम अफ्रीका में कोट डी आइवर (आइवरी कोस्ट) में क्लेड II MPXV से जुड़े एमपॉक्स का प्रकोप देखा जा रहा है, जबकि दक्षिण अफ्रीका में दो और पुष्ट मामले सामने आए हैं।

एमपॉक्स एक वायरल जनित रोग है जो मुख्य रूप से मध्य और पश्चिम अफ्रीका के उष्णकटिबंधीय वर्षावन क्षेत्रों में होती है और कभी-कभी अन्य क्षेत्रों में भी फैल जाती है।

इसकी पहचान सर्वप्रथम 1950 के दशक में अनुसंधान प्रयोगशालाओं में बंदरों पर की गई थी, तथा 1970 तक पहला मानव मामला खोजा नहीं जा सका था।

इस बीच डब्ल्यूएचओ प्रमुख टेड्रोस एडनॉम घेब्रेयसस जल्द ही अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियमों (आईएचआर) के तहत एक आपातकालीन समिति का गठन करने वाले हैं, ताकि यह तय किया जा सके कि क्या यह प्रकोप अंतर्राष्ट्रीय चिंता का विषय है और यह सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल (पीएचईआईसी) है।

डब्ल्यूएचओ द्वारा पीएचईआईसी सबसे बड़ा स्वास्थ्य अलार्म है। 2009 से एच1एन1 स्वाइन फ्लू, पोलियोवायरस, इबोला, जीका, कोविड-19 और एमपॉक्स के लिए पीएचईआईसी को सात बार घोषित किया गया है।