विटामिन की कमी की रिपोर्ट देख घबराएं नहीं, पहले ये बातें समझें

By : dineshakula, Last Updated : September 27, 2025 | 12:13 pm

नई दिल्ली: पिछले कुछ सालों में भारत में लोगों में विटामिन (vitamin) की कमी और सप्लिमेंट्स को लेकर जागरूकता बढ़ी है। जैसे ही ब्लड रिपोर्ट में “लो विटामिन लेवल” लिखा दिखता है, बहुत से लोग घबरा जाते हैं और बिना सोचे-समझे सप्लिमेंट लेना शुरू कर देते हैं। खासतौर पर विटामिन D, B12 और फोलिक एसिड जैसे सप्लिमेंट हर घर में आम हो गए हैं। लेकिन अक्सर लोग यह नहीं समझते कि रिपोर्ट में दिख रही ये कमियां क्या वाकई खतरनाक हैं या सिर्फ सामान्य बदलाव हैं। कई बार डॉक्टर भी रिपोर्ट को गहराई से नहीं समझाते और सीधे दवा लिख देते हैं।

भारत में विटामिन D की कमी बहुत आम है। कुछ रिपोर्टों के अनुसार, शहरी इलाकों में 80-90% लोग इसकी कमी से जूझ रहे हैं। विटामिन B12 की भी कमी व्यापक है, खासकर शाकाहारी लोगों में। इसका मुख्य कारण है कि विटामिन B12 केवल पशु-आधारित भोजन से मिलता है। वहीं विटामिन D के लिए धूप जरूरी है, लेकिन शहरी जीवनशैली और घर-ऑफिस के अंदर रहने की आदत के कारण लोगों को पर्याप्त धूप नहीं मिल पाती। जब विटामिन D और कैल्शियम दोनों की कमी हो, तो ये एक-दूसरे की स्थिति को और बिगाड़ सकते हैं।

अब जानिए कि आपकी रिपोर्ट असल में दिखाती क्या है। विटामिन D के लिए आमतौर पर 25-हाइड्रॉक्सी विटामिन D यानी 25(OH)D टेस्ट होता है। अगर इसका स्तर 20 से 30 ng/ml से नीचे है तो लैब इसे “लो” या “इनसफिशिएंट” बता सकती है। लेकिन हर लैब का मानक अलग होता है। कुछ 20 को नॉर्मल मानती हैं, कुछ 30 को। यानी एक ही रिपोर्ट अलग-अलग लैब में अलग रिजल्ट दिखा सकती है।

विटामिन B12 के लिए अगर स्तर 200 pg/ml से ऊपर है तो आमतौर पर ठीक माना जाता है। लेकिन 200-300 के बीच इसे “बॉर्डरलाइन” कहा जाता है और ऐसे मामलों में शरीर में असली कमी जानने के लिए अन्य टेस्ट जैसे मेथाइलमैलोनिक एसिड (MMA) या होमोसिस्टीन की जांच की जाती है।

विटामिन C का स्तर आपकी हाल की डाइट पर भी निर्भर करता है। अगर आपने एक दिन पहले आंवला या संतरा खाया हो तो रिपोर्ट में स्तर ऊंचा दिख सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि शरीर में स्टोर अच्छी मात्रा में है।

सबसे जरूरी बात यह है कि रिपोर्ट सिर्फ एक “स्नैपशॉट” होती है। यह जरूरी नहीं कि हर “लो” स्तर का मतलब गंभीर कमी हो। जरूरी है कि आप यह सोचें कि क्या आपके शरीर में कोई लक्षण भी हैं जैसे लगातार थकान, हाथ-पैर में झनझनाहट, याददाश्त में कमजोरी, बार-बार इंफेक्शन, हड्डियों में दर्द या मांसपेशियों में कमजोरी।

अगर आप बुजुर्ग हैं, शाकाहारी हैं, प्रेग्नेंट हैं, डायबिटिक हैं या गैस्ट्रिक समस्याएं हैं, तो आपको विटामिन की कमी का ज्यादा खतरा हो सकता है। ऐसी स्थिति में डॉक्टर की सलाह से सप्लिमेंट शुरू करना सही होता है, लेकिन बिना जांच के भारी डोज लेना सही नहीं है।

विशेषज्ञ कहते हैं कि फैट-सोल्युबल विटामिन्स जैसे विटामिन D, A, E और K की अधिकता शरीर में जमा होकर नुकसान पहुंचा सकती है। इसलिए किसी भी सप्लिमेंट को शुरू करने से पहले डॉक्टर से सलाह लें। हल्की कमी में सिर्फ डाइट सुधार और हल्के सप्लिमेंट से भी सुधार हो सकता है। साथ ही सप्लिमेंट शुरू करने के कुछ महीने बाद दोबारा टेस्ट कराना चाहिए।

इसलिए अगली बार जब आपकी रिपोर्ट में “लो विटामिन D” या “बॉर्डरलाइन B12” लिखा दिखे, तो तुरंत दवा की शीशी न उठाएं। पहले समझें, डॉक्टर से बात करें और फिर समझदारी से कदम उठाएं। सही जानकारी से आप घबराहट से बच सकते हैं और अपने शरीर को वही दें जो उसे वाकई ज़रूरत है।