ग्वालियर, 12 अक्टूबर (आईएएनएस)। भले ही रियासतें खत्म हो गई हों। लेकिन, ग्वालियर (Gwalior) में आज भी रियासतों की परंपराएं कायम हैं। इसका एक उदाहरण मध्यप्रदेश के ग्वालियर में सिंधिया परिवार है। विजयादशमी के अवसर पर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया राजसी पोशाक पहनकर ग्वालियर के गोरखी स्थित देवघर में पूजा-अर्चना करने पहुंचे। जहां उन्होंने अपने कुलदेवता, दक्षिण केदार, दुर्गा मैया, राजग्रंथ, मुहर और प्रतीकों की पूजा-अर्चना की।
पूजा के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राजपरिवार के प्रतीक ध्वज और शस्त्रों की पूजा की। उन्होंने राज सिंहासन पर बैठकर दरबार भी लगाया। ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ उनके पुत्र महाआर्यमन सिंधिया भी थे। वह भी राजसी परिधान में थे। इसके साथ ही उन्होंने ग्वालियर और प्रदेशवासियों को दशहरा की शुभकामनाएं दी। कुलदेवता मंदिर के पुजारी के अनुसार दशहरे पर शस्त्र पूजन की परंपरा आज से नहीं बल्कि प्राचीन काल से ही सिंधिया परिवार में चली आ रही है। प्राचीन काल में राजा अपने शत्रुओं पर विजय पाने के लिए इसी दिन शस्त्र पूजन करते थे। शत्रुओं से लड़ने के लिए शस्त्रों का चयन भी करते थे।
9 दिनों तक देवी की शक्तियों की पूजा करने के बाद दसवें दिन जीवन के हर क्षेत्र में विजय की कामना करते थे। आपको बता दें कि ज्योतिरादित्य सिंधिया राजघराने की नौवीं पीढ़ी का नेतृत्व कर रहे हैं।
मीडिया को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “विजयादशमी के पावन अवसर पर पूरे प्रदेश और देश के नागरिकों को हार्दिक शुभकामनाएं। यह सत्य और न्याय की जीत का दिन है। हम सभी इस दिन प्रेरणा लेते हैं। मेरी कामना है कि प्रत्येक नागरिक अपने क्षेत्र, प्रदेश और देश की उन्नति और विकास में अपना योगदान दे सके। ताकि आने वाले दिनों में हमारा देश विश्व पटल पर उन्नति कर सके। हमारा पूरा जीवन इसी विचारधारा को समर्पित है।”
शस्त्र पूजन के बाद सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर करते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि विजयादशमी के पावन अवसर पर ग्वालियर के गोरखी मंदिर में पूजा-अर्चना कर भगवान का आशीर्वाद प्राप्त किया है। साथ ही उन्होंने देशवासियों की खुशहाली की प्रार्थना की है।
उल्लेखनीय है कि पुराने समय में गोरखी के कुल देवता मंदिर में शस्त्र पूजन के बाद महाराज बाड़े पर सैनिकों का अभ्यास होता था। इस शाही जुलूस को देखने के लिए लोग महाराज बाड़े पर चढ़ते थे और परिवार की महिलाएं व बच्चे छतों पर चढ़ते थे। यहां से महाराज हाथी पर सवार होकर सीधे मांढरे की माता पहुंचते थे। जहां शमी वृक्ष की पूजा होती थी। राजशाही खत्म होने के बाद सिंधिया घराने में दशहरे की परंपराएं भी काफी सीमित हो गई हैं। फिर भी परिवार का मुखिया इस दिन शस्त्र पूजन के लिए पूजा घर पहुंचता है। ज्योतिरादित्य को ग्वालियर के सिंधिया राजघराने का महाराज कहा जाता है। इस लिहाज से वे दशहरे पर ग्वालियर के महाराज बनकर राजवंश की परंपराओं का निर्वहन करते नजर आ रहे हैं।