दिल्ली हाईकोर्ट ने महिला संगठन दुख्तरान-ए-मिल्लत को प्रतिबंधित करने को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की

By : brijeshtiwari, Last Updated : January 19, 2023 | 10:41 pm

नई दिल्ली, 19 जनवरी (आईएएनएस)| दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High court) ने गुरुवार को महिला संगठन दुख्तरान-ए-मिल्लत (डीईएम) (DEM) की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए), 1967 के तहत इसे आतंकवादी संगठन के रूप में सूचीबद्ध करने के केंद्र के 2004 के फैसले को चुनौती दी गई थी। कश्मीरी अलगाववादी आसिया अंद्राबी डीईएम (DME) की संस्थापक नेता हैं। आसिया को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) (NIA) ने साल 2018 में गिरफ्तार (Arrest) किया था और वह वर्तमान में न्यायिक हिरासत में है। न्यायमूर्ति अनीश दयाल की एकल-न्यायाधीश की पीठ ने यह कहते हुए आसिया की याचिका को खारिज कर दिया कि यदि संगठन चाहता तो केंद्र को अनुसूची से हटाने की मांग के लिए आवेदन कर सकता था, क्योंकि यह यूएपीए के तहत एक उपाय के रूप में उपलब्ध है। हालांकि, इस मामले में अमल नहीं किया गया।

अदालत (Court) ने कहा, “यूएपीए के प्रावधानों का एक अवलोकन से पता चलता है कि अध्याय चार आतंकवादी (Terrorist) संगठन या व्यक्तियों को अनुसूची अनुसूची (धारा 35 के अनुसार) और धारा 36 के हिस्से के रूप में जोड़ने के लिए प्रदान करता है, बशर्ते केंद्र को धारा 35 (1) (सी) के तहत एक संगठन को अनुसूची से हटाने के लिए पावर का प्रयोग करने के लिए आवेदन किया जा सकता है।”

भारत (India)से कश्मीर (Kashmir) की आजादी का दावा करने वाले इस संगठन का दावा है कि आतंकवादी संगठन घोषित होने की जानकारी उन्हें 2018 में तब मिली जब 2018 में इसके सदस्यों के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दाखिल की गई।

इस पर केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) चेतन शर्मा ने कहा कि डीईएम को 30 दिसंबर 2004 को एक आतंकवादी संगठन घोषित किया गया था, लेकिन समूह ने 18 साल बाद ही कोर्ट में आने का फैसला किया। उन्होंने तर्क दिया कि सरकार को यह तय करने का अधिकार है कि कौन आतंकवादी है और कौन नहीं।

चेतन शर्मा ने कहा, “यह कहना केंद्र सरकार का विशेषाधिकार है कि कौन आतंकवादी है और कौन नहीं।” उन्होंने कहा कि इस बारे में जानकारी पहले से ही सार्वजनिक डोमेन में थी।

न्यायमूर्ति दयाल ने डीईएम के वकील से कहा, “निष्पक्षता साबित करने के लिए आप यह नहीं कह सकते कि जब अनुसूची 2004 में प्रख्यापित की गई थी और सार्वजनिक डोमेन में है, तो इसे विशेष रूप से संप्रेषित किया जाना चाहिए। आपके संगठन को प्रतिबंधित करने की प्रक्रिया अलग है। आपकी प्रार्थना अधिसूचना को रद्द करने की है। डी-नोटिफिकेशन की प्रक्रिया को पहले संसाधित करना होगा। धारा 36 में डी-नोटिफिकेशन प्रक्रिया दी गई है, आपको वहां जाना होगा।”

डीईएम ने यूएपीए अधिसूचना की एक प्रति और अधिनियम की पहली अनुसूची में उल्लिखित संगठनों की सूची से हटाने का अनुरोध करते हुए हाईकोर्ट का रुख किया था। धारा 3 केंद्र को एक संघ को गैरकानूनी घोषित करने का अधिकार देती है। अधिनियम की पहली अनुसूची में आतंकवादी संगठनों का उल्लेख है।