भारतीय खगोलविद मेघनाद साहा के फैन थे आइंस्टाइन
By : hashtagu, Last Updated : October 6, 2024 | 4:34 am
हमारे देश में ऐसे कई वैज्ञानिक हुए जिन्होंने भारत का मान बढ़ाया। उनमें से ही एक थे प्रो. मेघनाद साहा, जिन्होंने तारों के अध्ययन और रिसर्च को एक नई दिशा दी।
एक महान वैज्ञानिक, प्रेरक शिक्षक, वैज्ञानिक संस्थानों के अद्भुत निर्माता, लोकप्रिय नेता, राष्ट्रीय पंचांग के निर्माण और बाढ़ नियंत्रण परियोजनाओं से लेकर कई गतिविधियों में उन्होंने भूमिका निभाई।
अविभाजित भारत के ढाका जिले के एक गांव शाओराटोली (वर्तमान बांग्लादेश) में जगन्नाथ साहा और भुवनेश्वरी देवी के घर 6 अक्टूबर 1893 को एक बच्चे का जन्म हुआ। बच्चे का नाम रखा गया मेघनाद। बादलों की गर्जना के नाम वाला ये बच्चा हमेशा आसमान की ओर ही निहारता रहा। वैसे तो बचपन में हमने और आपने भी आसमान की ओर खूब देखा है, लेकिन यह बच्चा अलग था।
एक गरीब परिवार में जन्में मेघनाद ने अपने शुरुआती दौर में कई चुनौतियों का सामना किया, लेकिन कभी हार नहीं मानी। स्कूल की बारी आई तो काफी छोटी कक्षा में ही उनका तेज दिमाग देखकर पढ़ाने वाले टीचर भी दंग थे। मेघनाद के सवाल इतने पेचीदे होते थे कि टीचर भी सोच में पड़ जाता। धीरे-धीरे समय बढ़ता गया और नए-नए सवालों का दौर भी चलता रहा। शुरुआत में गणित में रुचि रखने वाले मेघनाद ने फिजिक्स में और अधिक सफलता हासिल की।
फिर, एक समय ऐसा आया जब मेघनाद साहा प्रसिद्ध भारतीय खगोल विज्ञानी बन गए थे। उन्होंने साहा इक्वेशन दिया, जो काफी प्रसिद्ध है। यह समीकरण तारों में भौतिक एवं रासायनिक स्थिति की व्याख्या करता है। तारों पर हुए बाद के रिसर्च उनके सिद्धांत पर ही आधारित थे। हम कह सकते हैं कि तारों के अध्ययन और रिसर्च को उन्होंने एक नई दिशा दी।
मेघनाद साहा की एक खोज आयोनाइजेशन फॉर्म्युला है। यह फॉर्म्युला खगोलशास्त्रियों को सूर्य और अन्य तारों के आंतरिक तापमान और दबाव की जानकारी देने में सक्षम है।
डॉ.साहा के एक सिद्धांत ऊंचे तापमान पर तत्वों के व्यवहार को यूरोप के प्रमुख वैज्ञानिक आइंस्टाइन ने संसार को एक विशेष देन कहा। मेघनाद साहा ने प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टाइन के शोध ग्रंथों का अनुवाद किया। ऐसे कई और बड़े कारनामे इस दिग्गज के नाम हैं।
मेघनाद साहा संसद के भी सदस्य थे। उन्हें अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुए थे। डॉ. साहा ने पांच महत्त्वपूर्ण पुस्तकों की भी रचना की थी। 16 फरवरी 1956 को दिल का दौरा पड़ने से 62 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।