नवरात्रि के पहले दिन कोयला माता मंदिर में शतचंडी महायज्ञ की शुरुआत, कभी पहाड़ी से टपकता था ‘घी’

नवरात्रि के पहले दिन हिमाचल के राजगढ़ में स्थित प्रसिद्ध श्री कोयला माता मंदिर में शतचंडी महायज्ञ के आयोजन की शुरुआत हो गई है।

  • Written By:
  • Publish Date - October 4, 2024 / 09:56 AM IST

मंडी, (आईएएनएस)। देशभर में शारदीय नवरात्रि के नौ दिनों का त्योहार धूमधाम से मनाया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश के राजगढ़ (Rajgarh) में स्थित कोयला माता मंदिर (Koyla Mata Mandir) में इसको लेकर भव्य तैयारी की जा रही है। ऐसा कहा जाता है कि पहले इस मंदिर वाले पहाड़ से घी टपकता था।

नवरात्रि के पहले दिन हिमाचल के राजगढ़ में स्थित प्रसिद्ध श्री कोयला माता मंदिर में शतचंडी महायज्ञ के आयोजन की शुरुआत हो गई है। हर बार की तरह इस बार भी इस महायज्ञ का आयोजन इलाके की शांति और समृद्धि के लिए किया जा रहा है। मंदिर कमेटी के प्रधान प्यारे लाल गुप्ता इस महायज्ञ के मुख्य जजमान होंगे।

प्यारे लाल गुप्ता ने बताया कि इस मंदिर के पहाड़ी से पहले घी टपकता था। इसके नीचे लोग खाली बर्तन रख देते और अगले दिन लेने के लिए आते थे तो उसमें घी भरा मिलता था। इस घी से लोगों का इलाज होता था। ऐसी मान्यता है कि पहले गांव में रोजाना घटनाएं होती रहती थी, जिसके बाद यहां के राजा ने मां से दुख दूर करने की प्रार्थना की और फिर मां यहां पर चट्टान के नीचे स्थापित हो गईं। फिर यहां से घी निकलने लगा, जिससे लोगों का इलाज होने लगा, गांव के लोग खुश रहने लगे।

अगर धार्मिक आस्था की बात करें तो इस मंदिर का नाम माता द्वारा कोलासुर नामक राक्षस के संहार पर पड़ा। मंडी जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर इस मंदिर में माता ने कई चमत्कार दिखाए हैं। प्राचीन समय में राजगढ़ की पहाड़ी पर एक चट्टान के रूप में मां का मंदिर था। लेकिन लोगों को पता नहीं होने के कारण यहां पर पूजा-पाठ नहीं की जाती थी। फिर एक समय ऐसा आया कि गांव में प्रतिदिन किसी ना किसी की मौत होती थी। ऐसे में स्थानीय लोगों में ये धारणा बन गई कि अगर ग्राम में किसी दिन किसी का शव नहीं जलेगा तो उस दिन बड़ी प्राकृतिक आपदा आएगी और गांव में बड़ी जनहानि होगी। ऐसे में स्थानीय लोग यहां पर घास का पुतला बनाकर अंतिम संस्कार करने लगे।

परेशान होकर गांव के लोगों ने भगवान से प्रार्थना करनी शुरू कर दी। इसके बाद मां के चमत्कार से गांव में लोगों की हालत में सुधार होने लगी और चट्टान पर बने मंदिर से घी निकलने लगा। बाद में किसी जूठी रोटी लगने की वजह से घी निकलना बंद हो गया। हालांकि इसके बाद भी लोगों की आस्था बंद नहीं हुई और तब से लोग यहां पूजा करते हैं।