रायपुर। ‘कबिरा संगत साधु की, ज्यों गंधी का बास। जो कुछ गंधी दे नहीं, तो भी बास सुवास’… कुछ ऐसे ही व्यक्तित्व और लेखन की धनी हैं वरिष्ठ पत्रकार, रंगकर्मी और साहित्यकार “सुभाष” मिश्र, उनके संसर्ग का असर यह है कि भले हीं वह शिक्षा न दे रहे हों लेकिन उनके बातचीत में कई आयामों की जानकारी यूं हीं मिल जाती है। दरअसल कबीर जयंती के अवसर पर शनिवार को छत्तीसगढ़ फिल्म एंड विजुअल आर्ट सोसायटी, जनधारा मीडिया समूह एवं एशियन न्यूज के संयुक्त तत्वावधान में पुस्तक विमोचन समारोह का आयोजन किया।
कथाकार विनोद कुमार शुक्ल ने कहा सुभाष मिश्र जब निमंत्रण देने आए तो उनके निमंत्रण पत्र में लिखा था कि आप हमारे पुस्तक विमोचन में आएंगे उनकी यह प्रेम देखकर भावविभोर हो गया। इसलिए मैं उनको माना नहीं कर पाया। उन्होंने कहा कि सुभाष मिश्र ने जब मुझे पुस्तक दिए तो मैं यह तय नहीं कर पा रहा था की पहले किस पुस्तक को पढूं लेकिन जब पढ़ना शुरू किया तो ऐसा लगा कि सभी पुस्तक ने शब्दों का भरमार है। ये सभी पुस्तकें पाठकों को पढ़ने साहित्य, रंगमंच और पत्रकारिता को समझने के लिए सही साबित होगी।
इस अवसर पर प्रमुख रूप से पूर्व आईएएस अधिकारी सुशील त्रिवेदी, वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार सोनी, रंगकर्मी रचना मिश्रा, साहित्य प्रेमी राजेश गनोद वाले, साथ में प्रदेश भर के अनेक साहित्यकार, पत्रकार, पाठक और दर्शक उपस्थित रहे।
इस अवसर पर देश भर से आए साहित्यकार, आलोचक और कथाकारों ने अपनी बात रखते हुए कहा कि सुभाष मिश्र की पत्रकारिता की दुनिया में उपस्थिति और सक्रियता को लगभग चालीस बरस हो गए हैं। इसमें आलोचकों ने कहा खुद पिछले बीस बरसों में उनकी पत्रकारिता में मानवीय जीवन के व्यापक सरोकारों पर, व्यक्ति और समाज के अंतर्विरोधों पर, सत्ता, व्यवस्था और व्यक्ति के तनावों पर उनके लिखे गए को पढ़ता आया हूँ। उनकी लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति चिंताओं, उन मूल्यों को बचाए जाने की जिद और जरूरत ने हमेशा ही मेरे मन को छुआ है। इतिहास के फैसलों और फासलों पर ठहरती-ठिठकती उनकी कलम वह भी बताती है कि उनको अपने आसपास को अपने पास- पड़ोस को कितनी खुली, पैनी और गहरी नजरों से देखना आता है। अपने परिवेश और पर्यावरण को पकड़ती हुई उनके लिखे गए की पंक्तियाँ एक तरफ उनकी जागरूकता का परिचय देती है, तो दूसरी तरफ उनकी उस सहानुभूति, समानुभूति से हमारी पहचान कराती हैं, जो समाज और व्यक्ति के लिए उनके मन में रची- बसी रही हैं। जीवन और जगत् को लेकर उनको बौद्धिक जिज्ञासाएँ भावनात्मक सतर्कता उनकी पत्रकारिता को कामचलाऊ, तात्कालिक पत्रकारिता से दूर ले जाती हैं। यही वह बात है, जो उनकी पत्रकारिता को साहित्य के करीब खड़े किए जाने का प्रयत्न करते हुए बताती है। उनको पढ़ते हुए हमें साहित्य और पत्रकारिता के अंतर्संबंधों का खयाल भी सताता है।
सुप्रसिद्ध कहानीकार भालचन्द जोशी ने कहा कि जब मैं पुस्तक पढ़ रहा था तो मुझे ऐसा लगा कि सुभाष मिश्रा ने इस पुस्तक को अलग ढंग से लिखा क्योंकि वर्तमान समय में इस तरीके की पत्रकारिता या लेखन हो रही है वह कहीं ना कहीं अवसर से प्रभावित है लेकिन सुभाष मिश्रा ने अपनी किताबों में बिल्कुल अलग ढंग से लिखा है। उन्होंने जिस तरीके से राजनितिक घटना कर्म का विश्लेषण करते हुए लिखा है वह वाकई सभी से अलग करता है। दूसरी बात यह है कि सुभाष मिश्र किसी बात को पूरी निर्भीकता और साहस के साथ बोलते और लिखते हैं। उन्होंने कहा कि इनके लेख में संवेदना जैसी चीज भी झलकती है। इन्होंने धर्म और बाजार पर खुलकर लिखा। वर्तमान में मैं ऐसा देख रहा हूं कि धर्म का बाजार बहुत तेजी से फल फूल रहा है। जो पैसा लेकर अपनी बात कहते हैं। सुभाष मिश्र ने अपनी पुस्तक में कला संस्कृति और छत्तीसगढ़ी फिल्मों के बारे में भी बहुत संदर तरीके से लिखा है। जिसमें कई समस्याओं का उजागर किया है।
कथाकार आनंद हर्षुल ने बहुत ही मजाहिया ढंग से सुभाष मिश्र के चार पुस्तकों का समीक्षा करते हुए अपनी बात कही। उन्होंने कहा कि जिस तरीके से सुभाष मिश्री में वर्तमान समय में पत्रकारिता के संदर्भ में अपनी बात कह रहे हैं वह वाकई में एक साहसी पत्रकार और लेखक का परिचय है क्योंकि इस दौर में किसी मीडिया हाउस में काम करते हुए जिस तरीके से साहस के साथ वह अपनी बात कहते हैं वह वर्तमान में किसी और के लिए संभव नहीं है। इससे साफ हो जाता है सुभाष मिश्रा किसी भी दबाव नहीं आते हैं और अपनी बात कहते हैं
आलोचक जय शंकर ने आलेख दर आलेख पुस्तक के बारे में कहा कि इस पुस्तक को मैने जो पढ़ कर समझा हूं इसमें यह कहा गया है कि पत्रकारों को हमेशा सजक होने की जरूरत है खबर को लेकर हमेशा तथ्य परख और खोजबीन वाला होना चाहिए वहीं दूसरी बात यह है कि खबर में किसी तरह से पूर्वाग्रह ग्रसित नहीं होना चाहिए क्योंकि लेखन में यह चीज देखा जाता है कि वह पूर्वाग्रह से बहुत प्रभावी होते हैं और उनके लेख में झलकता है लेकिन सुभाष मिश्रा के इन लेखों में ऐसा नहीं झलकता है। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के समय तटस्थ होकर पत्रकारिता होती थी उस समय जनतंत्र, समाज और सृष्टि को लेकर पत्रकारिता होती थी वैसे ही पत्रकारिता सुभाष मिश्रा की है। उन्होंने कहा कि सुभाष जीवन को गहराइयों से समझते हैं और अपने लेखों में उकेरते हैं।
कार्यक्रम की शुरुआत रचना मिश्रा और डॉ योगेंद्र चौबे की कबीर गायन से हुई। वहीं सुयोग पाठक ने कबीर गायन से सभी का दिल जीत लिया। उन्होंने कबीर की शब्द पर रचित रचना और न जाने कब से मिलना चाह रहा हूं एक आदमी से…वहीं योगेंद्र चौबे ने ये जी बालम आवो …कोनो ठगवा नगरिया…की प्रस्तुति दी।
10 नवंबर 1958 वारासिवनी जिला-बालाघाट (म.प्र.) में जन्मे सुभाष मिश्र पत्रकारिता और लेखन के क्षेत्र में लगातार सक्रिय हैं। हिंदी स्नातकोत्तर एवं पत्रकारिता में स्नातक डिग्री प्राप्त किए हैं। लंबे समय तक शासकीय अधिकारी रहने के बाद वर्तमान में हिंदी दैनिक समाचार पत्र ‘आज की जनधारा’ तथा 24/7 सेटेलाइट चैनल ‘एशियन न्यूज चैनल’ के प्रधान संपादक हैं
इनके पुस्तक प्रकाशन में ‘एक बटे ग्यारह’ (व्यंग्य- संग्रह), ‘दूषित होने की चिंता’ (लेख एवं टिप्पणियों का संग्रह), ‘मानव अधिकारों का मानवीय चेहरा’, ‘कुछ लिखा गया, कुछ बोला गया’, ‘परसाई का लोक शिक्षण’ पुस्तिका का संपादन, परसाईजी की बहुत सी रचनाओं का नाट्य रूपांतरण। शासकीय दायित्वों के निर्वहन के दौरान बहुत से महत्त्वपूर्ण प्रकाशन, साक्षरता न्यूज पेपर, पत्रिका का संपादन। छत्तीसगढ़ पाठ्य पुस्तक निगम में महाप्रबंधक पद पर रहते हुए छत्तीसगढ़ की महान् विभूतियों के प्रेरक प्रसंग पर आधारित 75 से अधिक चित्र कथाओं का प्रकाशन। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की पत्रिका ‘पंचमन’ का संपादन।
रंगकर्मी, नाट्य लेखक एवं संस्कृतिकर्मी के रूप में राष्ट्रीय पहचान। हबीब तनवीर राष्ट्रीय नाट्य समारोह के संयोजक । छत्तीसगढ़ फिल्म एंड विजुअल आर्ट सोसायटी के अध्यक्ष। अनेक सांस्कृतिक-कला संस्थाओं से सक्रिय संबद्धता।
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