साहस, निर्भीकता और अविचल राष्ट्र भावना की प्रतीक वंदनीय लक्ष्मी बाई केलकर! पढ़ें, इनकी शौर्यगाथा
By : madhukar dubey, Last Updated : July 6, 2024 | 9:00 pm
🔹राष्ट्र सेविका समिति की स्थापना🔹
1932 में उनके पति का देहांत हो गया अब अपने बच्चों के साथ बाल विधवा ननंद का दायित्व भी उन पर आ गया। लक्ष्मी बाई ने घर के दो कमरे किराए पर दिए। इससे आर्थिक समस्या कुछ हल हुई। इन दिनों उनके बेटों ने संघ की शाखा पर जाना शुरू किया। उनके विचार और व्यवहार में आए सकारात्मक परिवर्तन से लक्ष्मीबाई के मन में संघ के प्रति आकर्षण जागा और उन्होंने संघ के संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार जी से भेंट की।
डॉ हेडगेवार ने उन्हें बताया कि संघ में स्त्रियां नहीं आती किंतु उन्हें पृथक संगठन बनाने हेतु प्रेरित किया तब उन्होंने 1936 में स्त्रियों के लिए राष्ट्र सेविका समिति नामक एक नया संगठन प्रारंभ किया। आगामी 10 साल में वंदनीय मौसी जी के अथक परिश्रम,दृढ़ संकल्प और निरंतर प्रवास से समिति के कार्य का अनेक प्रांतो में विस्तार हुआ।
राष्ट्रोन्नति प्रथम
जहां अधिकांश महिला संगठन अपने अधिकारों तथा प्रतिष्ठा के बारे में महिलाओं को जागृत करते हैं, वहीं राष्ट्र सेविका समिति बताती है कि राष्ट्र का एक घटक होने के नाते एक मां का क्या कर्तव्य है? समिति उन्हें जागृत कर उनके भीतर छिपी राष्ट्र निर्माण की बेजोड़ प्रतिभा का दर्शन करती है। साथ ही अपनी परंपरा के अनुसार परिवार व्यवस्था का ध्यान रखते हुए उन्हें राष्ट्र निर्माण की भूमिका के प्रति जागृत करती है ।समिति का ध्येय है कि महिला का सर्वोपरि विकास हो किंतु उसे इस बात का भी ध्यान होना चाहिए कि मेरा यह विकास, मेरी यह गुणवत्ता, मेरी क्षमता राष्ट्रोन्नति में कैसे काम आ सकती है!
वंदनीय मौसी जी ने इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पद्धति पर राष्ट्र सेविका समिति का कार्य प्रारंभ किया।
श्रद्धा से बनी वंदनीय मौसी जी
समिति के कार्य विस्तार के साथ ही लक्ष्मीबाई ने नारियों के हृदय में श्रद्धा का स्थान बना लिया। मां सी स्नेहमयी लक्ष्मीबाई केलकर जी को सब वंदनीय मौसी जी कहने लगे।
साहसी वृत्ति
अगस्त 1947 का समय था। प्रिय मातृभूमि का विभाजन होने वाला था। मौसी जी को सिंध प्रांत की सेविका जेठी देवानी का पत्र आया कि सेविकाएं सिंध प्रांत छोड़ने से पहले मौसी जी के दर्शन और मार्गदर्शन चाहती हैं। इससे हमारा दुख हल्का हो जाएगा। हम यह भी चाहते हैं कि आप हमें श्रद्धापूर्वक कर्तव्य पालन करने की प्रतिज्ञा दें।
जेठी देवानी जी ने पत्र में लिखा था – वंदनीय मौसी जी प्रणाम! आपके मार्गदर्शन के कारण हिंदुभूमि के इस अति दूर के प्रदेश की बहनों ने हिंदुत्व याने राष्ट्रीयत्व इस विशुद्ध भूमिका को समझ कर हिंदू महिलाओं का संगठन करने का ध्येय सामने रखा है। और पहली बार हिंदू नारियां आपसे धर्म और संस्कृति के अटूट बंधन को समझती हुई अतीव आनंद अनुभव करने लगी हैं। पर अब दुनिया जानती है कि भारतीय स्वतंत्रता के महान सुखद समय ही हम सिंधवासियों पर कितनी बड़ी आपत्ति आई है। अब हमें सिंध छोड़ना ही पड़ेगा यह बात बिल्कुल स्पष्ट होती जा रही है। क्योंकि हमारी मातृभूमि अब मुसलमानों की भोग भूमि बन रही है।
- हम चाहते थे कि इस भूमि में हम निरंतर रहे, पर अब यह बिल्कुल असंभव प्रतीत होता है। मौसी जी सिंध की सब सेविकाएं चाहती हैं कि भारतवर्ष का विभाजन होने से पहले आप एक बार हमारे बीच आ जाएं। ताकि पवित्र सिंधु को साक्षी रखते हुए आपकी महान उपस्थिति में हम इस महान देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियां निभाने के लिए प्रतिज्ञा बद्ध हो सकें। आपका यहां आना इसलिए भी जरूरी है कि विदाई के अति कठिन समय पर आप जैसी प्रेमदायिनी, धैर्य दायिनी माता की उपस्थिति में दुख का बोझ हल्का महसूस होगा और भविष्य के कर्तव्य की ओर निर्भयता से बढ़ने की प्रेरणा मिलेगी।
- देश में भयावह वातावरण होते हुए भी मौसी जी ने सिंध जाने का साहसी निर्णय लिया और 13 अगस्त 1947 को साथी कार्यकर्ता वेणुताई को साथ लेकर हवाई जहाज से मुंबई से कराची गई। हवाई जहाज में दूसरी कोई महिला नहीं थी। श्री जयप्रकाश नारायण जी और पूना के श्री देव थे वे अहमदाबाद उतर गए। अब हवाई जहाज में थी ये दो महिलाएं और बाकी सारे मुस्लिम , जो घोषणाएं दे रहे थे, लड़ के लिया पाकिस्तान, हंस के लेंगे हिन्दुस्थान।
कराची पहुंचकर दूसरे दिन 14 अगस्त को एक उत्सव संपन्न हुआ। एक घर के छत पर 1200 सेविकाएं एकत्रित हुई गंभीर वातावरण में वंदनीय मौसी जी ने प्रतिज्ञा का उच्चारण किया सेविकाओं ने दृढ़ता पूर्वक उसका अनुकरण किया। मन की संकल्प शक्ति को आह्वान करने वाली प्रतिज्ञा से दुःखी सेविकाओं को समाधान मिला। अंत में मौसी जी ने कहा धैर्यशाली बनो ,अपने शील का रक्षण करो ,संगठन पर विश्वास रखो और अपने मातृभूमि की सेवा का व्रत जारी रखो, यह अपनी कसौटी का क्षण है।
वंदनीय मौसी जी के द्वारा कहे गए ये मुख्य बिंदु आज भी प्रासंगिक हैं और ध्यान देने योग्य हैं
वंदनीय मौसी जी से पूछा गया- हमारी इज्जत खतरे में है हम क्या करें? कहां जाएं? वंदनीय मौसी जी ने आश्वासन दिया आपके भारत आने पर आपकी सभी समस्याओं का समाधान किया जाएगा। अनेक परिवार भारत आए उनके रहने का प्रबंध मुंबई के परिवारों में पूरी गोपनीयता रखते हुए किया गया।
सत्याग्रह
देश में लगे आपातकाल के समय सेविकाओं को अत्याचारी आपातकाल को बंद करने के लिये सत्याग्रह की प्रेरणा वं. मौसी जी ने दी थी।उन के ही शब्दो से साहस पा कर प्रचलित तंत्र के विरोध में परिवार आहत होते हुये भी सेविकाये सत्याग्रह के लिये कूद पडी.
काश्मीर, असम की बहनो के असह्य जीवन को देख कर कश्मीर बचाओ आंदोलन का शंखनाद आपने ही किया था। परिणाम स्वरूप आतंकसे पीडित परिवार के बालिकाओं का दायित्व अपने कंधे पर लेते हुये उन बालिकाओं पर ममत्व से देशभक्ति का आंचल फैलाने का कठिनतम कार्य सेविकाओं ने शुरु किया।
व्यक्तिगत जीवन को भी एक आकार रूप होना चाहिये यह सीख वं मौसी जी ने दी है। हम राष्ट्रकार्य करने जा रहें है तो अपना घर, परिवार सुव्यवस्थित हो इस का दोगुना दायित्व निर्वहन करना सीखें। महिला के अंदर सुप्त शक्तियां ही राष्ट्र कार्य में अग्रेसर बनायेंगी। बस आवश्यकता है कि उस शक्ति का दर्शन होना। अत: हम सभी देश कार्य में कटिबद्ध हों।
- वंदनीय मौसी जी ने देश की विपरीत परिस्थितियों के बीच राष्ट्र सेविका समिति की स्थापना कर एक नया इतिहास रचा। भारत मां को आराध्या मानकर सैकड़ो बहनें प्रार्थना के लिए शाखा स्थान पर एकत्रित होने लगी। वर्धा में प्रारंभ हुआ यह कार्य आज संपूर्ण भारत में और विश्व के अनेक देशों में फैला है। इसके पीछे वंदनीय मौसी जी और उनके सहयोगी बहनों की तपस्या है। कार्यतत्पर, दृढ़निष्ठ ऐसी अद्वितीय टोली वंदनीय मौसी जी को प्राप्त हुई।
🔹इन बहनों में मीरा की लगन थी, घर गृहस्थी संभालते हुए कार्य में वे मगन थी। राधा की भक्ति थी। दास हनुमान जी का समर्पण था।अहिलाबाई सा कर्तृत्व और लक्ष्मी बाई सा नेतृत्व और मां जिजाबाई सा मातृत्व था।🔹
- जिसकी अविचल राष्ट्र भावना
- अविरत चलती कर्म साधना
- भक्ति ज्ञान श्रद्धा की सरिता
- वही समझ लो सात्विक कर्ता।।
- क्षमाशील जो जग अनुरागी
- सब में रहकर भी वीतरागी
- जिसमें साहस और निर्भयता
- वही समझ लो सात्विक कर्ता।
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