देवकीनंदन खत्री जैसे बरगद की छांव में पनपना कोई आसान बात नहीं, लेकिन दुर्गा में पिता की लेखनी का गुण कूट-कूट कर भरा था। हिंदी भाषा का पहला आधुनिक उपन्यास अगर बाबूजी ने रचा तो बेटे ने परंपरा को बड़ी सुघड़ता से आगे बढ़ाया।