रायपुर। विधानसभा और लोकसभा चुनाव में सफलता की इबारत लिखने वाली भाजपा की विष्णुदेव साय की कैबिनेट (BJP Vishnudev Sai cabinet) में बृजमोहन अग्रवाल के सांसद बनने के बाद से उनके खाली मंत्री पद पर उम्मीदवारों के कायसों का दौर अभी थमा नहीं है। बरहाल, विष्णुदेव सरकार ने अपने 7 माह के शासनकाल में जनता की आकांक्षाओं पर खरी उतरी है। मोदी गारंटी के सभी वादों को पूरा करने के साथ ही लोकसभा चुनाव में रिकार्ड 11 में 10 सीटों पर जीत हासिल की है। इसमें छत्तीसगढ़ के लिए खास बात यह रही कि बृजमोहन अ्ग्रवाल के सांसद बनने के बाद रायपुर दक्षिण की विधानसभा सीट और उनके शिक्षा मंत्री के पद खाली हुए। इसके बाद सत्ता के गलियारों में दो चर्चा चल रही हैं, पहला एक रायपुर दक्षिण की विधानसभा के उपचुनाव में भाजपा से कौन उम्मीदवार होगा और दूसरा मंत्रीमंडल में बृजमोहन की जगह किस विधायक को इंट्री मिलेगी। बहरहाल, अभी तक भाजपा ने राजनीतिक गलियारे में यह संस्पेंस बना कर रखा है।
सूत्रों के मुताबिक विष्णुदेव साय के कैबिनेट में विस्तार के साथ ही कुछ मंत्रियों के आउट किए जाने की संभावनाएं जताई जा रही है। बताया जा रहा है कि मंत्रियों के कामकाज और उनकी क्षमताओं पर भाजपा संगठन की नजर है। ऐसे में चर्चा है कि एक या दो मंत्री को संगठन की जिम्मेदारी दी जा सकती है। वैसे देखा जाए तो विष्णुदेव साय कैबिनेट के सभी मंत्रियों के कामकाज बेहतर ही नजर आ रहे हैं। लेकिन कुछ ऐसे मुद्दे है कि जिनके निस्तारण में लेटलतीफी की बातें सामने आ रही है। जैसा की विधानसभा में भाजपा के विधायकों ने कई समस्याओं के निराकरण में तेजी नहीं आने पर आपत्ति जताई है। वैसे उन पर प्रशासनिक कार्रवाई चल रही है। इससे राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि दो से तीन मंत्री पद पर नए विधायकों को आसीन किया जा सकता है।
बृजमोहन के खाली मंत्री पद और संभावित विस्तार की लेटलतीफी का सबसे बड़ा कारण है आगामी नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव है, इन होने वाले चुनाव में विधायकों के साथ ही भाजपा अपने संगठन को जिम्मेदारी देगी। साथ ही इसमें जिस विधायक के क्षेत्र में नगरीय निकायों और पंचायत के चुनावों में प्रचंड जीत मिलेगी, उसे इनाम में मंत्री का पद दिए जाने की संभावना है। इसके अलावा संगठन के कद्दावर पदाधिकारियों को भी नगरीय निकायों के चुनाव में टारगेट दिया जा सकता है। इसके पीछे कारण है कांग्रेस का नगरीय निकाय और पंचायत निकायों की अधिकांश सीटों पर कब्जा। ऐसे में भाजपा के लिए इसे खत्म करने की चुनौती भी नगरीय और पंचायत निकायों के चुनाव में है। इसलिए इस टारगेट को पूरा करने वाले को भाजपा अपने पदाधिकारियों को निगम और मंडल के अध्यक्ष बन सकती है। जाहिर है कि भाजपा निगम मंडल में नियुक्तियों के माध्यम से विधायकों और संगठन के पदाधिकारियों को साधने की कोशिश करेगी। वैसे अभी ये सभी चर्चाओं और कायसों की बुनियाद पर खड़ी बातें हैं, लेकिन इसके कुछ तथ्य सौ फीसदी सही है। अब आने वाला वक्त ही बताएगा कि भाजपा क्या निर्णय लेती है।
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