वाराणसी। (Varanasi) कहते हैं बालक मन के सच्चे और भगवान स्वरूप होते हैं। इन्हें अगर कृष्ण और कान्हा की उपमा दी जाए तो अतिशोयक्ति नहीं होगी। ऐसे में माता-पिता के संस्कार और उनके लालन पोषण का अमूल्य योगदान है। लेकिन काशी में एक ऐसा बालक है जो हर तीज त्योहार पर कविताएं लिखता है। उसकी टूटी हुई भाषा में एक ‘अपनापन’ झलकता है। सहसा ही बचपन की ओ बदमाशियां और नटखटपन की यादें ताजा हो जाती हैं। बचपन की बिंदास और ब्रेफिकी की कहानी हर किसी के जीवन की। भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीला की तरह ही बालपन भी होता है। जिसमें हर किसी को अपना बना लेने की कला स्वभाविक रूप से विद्यमान होती है।
जौनपुर के एक गांव कोदई के पुरवा निवासी लेक्चर कृष्णमणि तिवारी और कवियत्री रेनू बाला तिवारी के बेटे कार्तिकेय (Kartikeya) ने अपने जन्म दिन पर एक कविता लिखी है। इस अवसर पर जन्मदिन पर उनके बड़े पिता जी सिटी मजिस्ट्रेट अमरमणि ित्रपाठी और दादा हरिशंकर ित्रपाठी जी, मामा पदमाकर दुबे, नानी इंदूमती दुबे, मामी काव्या, मामी ज्योति, मामी अर्चना, मामा प्रोफेसर रत्नाकर, मामा दिवाकर व सचिन, छोटे भाई विनायक व शिवेश, अगम, निगम, बहन चुनचुन, बड़े भाई मून्नु, चून्नू, शुभम, सहित उनके बड़े पिता जी सिटी मजिस्ट्रेट अमरमणि ित्रपाठी और दादा हरिशंकर ित्रपाठी जी ने अन्नत शुभकामनाएं दी।
चलप चंचल नटखट कान्हा
चलत फिरत कूद कुदैया
बन कान्हा मामी रास रचैया
हंसी ठिठोल लोल कपोल करैया
करिया मामा संग हंसलोल करैया
नाकर मामा से बातबतैया
मामी के गाल चुमैया
बड़का मामू से कहानी सुनैया
नंग धिड़ंग नहान करैया
विनायक की करत धुनैया
सोहर गारी के मस्त गवैया
अवनी के प्रिय भैया
टाफी कुरकुरे छिन खवैया
वैदेही के गाल नोचैया
बाल गोपाल संग खेल खलैया
घर में खेलत बाल बलैया
सुसूरी पादम छोड़ छोड़ैया
मां के हाथ माखन खवैया
नानी के चरण पघारे लेट लोटैया
मिलै जब मामी से कन्हैया
मामी गावत गुंडन में फंस की भैया
करत हुड़दंग क्रिकेट खेलैया
चुनचुन के दुलारे कन्हैया
चुनू और मून्नू के बिगड़ू भैया
बाबू जी के दुलारे भैया
सब के आखों के तारे भैया
टीचर मैडम को सेंट सूंघाय बिहोश करैया
जन्म दिन पर धूम धड़का करैया
गुब्बार फोड़ केट कटैया
अपने मामा प्रोफेसर रत्नाकर दुबे के संग कार्तिकेय!