बी फार्मा की छात्रा मनीषा बनेंगी जैन साध्वी, पढि़ए कैसे वैराग्य की भावना जगी

छत्तीसगढ़। जब मन ईश्वर की भक्ति में रम जाए तो फिर इस फानी दुनिया से कोई मतलब नहीं रह जाता। बस ईश्वर को प्राप्त करना ही जीवन का लक्ष्य और मानव कल्याण के पथ पर अपना जीवन समर्पित का संकल्प ही एक साधु या वैरागी संत का धर्म होता है। लेकिन छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में तो एक बी फार्मा की पढ़ाई पूरी कर चुकीं मनीषा साहू ने चौंकाने वाला संकल्प ले लिया।

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  • Updated On - December 29, 2022 / 07:56 PM IST

छत्तीसगढ़। जब मन ईश्वर की भक्ति में रम जाए तो फिर इस फानी दुनिया से कोई मतलब नहीं रह जाता। बस ईश्वर को प्राप्त करना ही जीवन का लक्ष्य और मानव कल्याण के पथ पर अपना जीवन समर्पित का संकल्प ही एक साधु या वैरागी संत का धर्म होता है। लेकिन छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में तो एक बी फार्मा की पढ़ाई पूरी कर चुकीं मनीषा साहू ने चौंकाने वाला संकल्प ले लिया। वे अब जैन साध्वी की दीक्षा 28 नवंबर को लेंगी। बताया जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में यह पहली बार है कि जब कोई युवती जैन साध्वी बनेगी। धमतरी की रहने वाली मनीषा साहू (29 वर्ष) रायपुर में दीक्षा ग्रहण करेगी। यह धमतरी के नगरी ब्लॉक के छोटे से गांव सांकरा के रहने वाले मिथिलेश साहू की बेटी हैं। इनके पिता राइस मिलर हैं।

पिता ने कहा बचपन से ही धार्मिक कार्यों में थी बेटी की रूचि

मुमुक्षु मनीषा साहू के पिता ने बताया कि मनीषा बचपन से ही धार्मिक कार्यों में रूचि लेती थी। इतनी श्रद्धा थी कि वह घंटों तक पूजा-पाठ करती थी। फिर कोरोनाकाल में बहुत बड़ा बदलाव तब आया, जब वह जैन साध्वियों के संपर्क में आई। इनकी बातों से इतनी प्रभावित हो गई कि उसके मन में वैराग्य लेने की इच्छा जाग उठी। इसके बाद उसने 2 साल पूर्व ही वैराग्य को चुनने का अपना फैसला सुना दिया था। परिवारों ने मनीषा को बहुत मनाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं मानी। उसकी शादी भी तय कर दिए थे। पर इसका धर्म के प्रति लगाव को देखकर आखिकार हम लोगों ने सहमति दे दी।

कोरोनाकाल में आई थी साध्वियों के संपर्क में

मुमुक्षु मनीषा साहू के पिता मिथिलेश साहू राइस मिलर हैं। उन्होंने बताया कि उनकी बेटी को बचपन से ही धार्मिक कार्यों में रुचि थी। वो काफी देर तक पूजा-पाठ भी करती थी। लेकिन सबसे ज्यादा बदलाव उसमें कोरोना महामारी के दौरान आया। उन्होंने बताया कि इसी दौरान वो जैन साध्वियों के संपर्क में आई और उनकी बातों से प्रभावित हुई। इसके बाद उसने २ साल पहले ही अपने माता-पिता के सामने साध्वी बनकर वैराग्य का मार्ग चुनने का मन बनाया था। मनीषा कहती हैं कि संसार का भौतिक सुख छोड़ने लायक है। मैं संयम पथ पर चलकर आत्म-कल्याण और दूसरों के कल्याण का प्रयास करूंगी। मैंने वैराग्य शतक की पढ़ाई पूरी कर ली है।