रायपुर। सोमवार को साय की कैबिनेट में तय हो गया कि अब जनता सीधे महापौर का चुनेगी। 2019 में भूपेश सरकार ने महापौर और अध्यक्ष के चुनाव(Mayor and Speaker elections) को अप्रत्यक्ष रूप कराने का निर्णण लिया था। जिसे सोमवार को साय की कैबिनेट(sai’s cabinet) ने पलट दिया है। ऐसे में एक बार फिर नियम बदलने से बने सियासी समीकरण भी बदल गए हैं। ऐसे में अब जनता के बीच महापौर प्रत्याशियों(mayoral candidates) की असली परीक्षा होगी। वैसे भाजपा पूर्व से ही नगर निगम के महापौर और नगर पालिकाओं के अध्यक्ष के चुनाव को जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुनाव करने का निर्णय ले लिया था, जिसे सोमवार को साय की कैबिनेट में मूर्तरूप दिया गया। यही कारण भी था कि भाजपा इसकी तैयारी में पहले से ही जुट गई थी। लेकिन इसमें कांग्रेस तो पिछड़ी भले ही हो लेकिन कांग्रेस ने भी यह संदेश संगठन मेें दिया है कि इस बार स्वच्छ और जनता में जिनकी फीडबैक अच्छी होगी, उसे ही महापौर का टिकट दिया जाएगा। नए समीकरण के लिहाज से देखा जाए तो प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के दौरान कांग्रेस के प्रमोद दुबे रायपुर के महापौर थे, लेकिन नियम बदलने के बाद अप्रत्यक्ष प्रणाली के तहत कांग्रेस ने एजाज ढेबर को महापौर बनाया था। उस दौरान रायपुर की जनता भी कांग्रेस द्वारा एजाज ढेबर को महापौर बनाए जाने पर चौंक उठी थी। क्योंकि लोगों को विश्वास था कि जिस नेता को जनता ने चुना था, उसे दरकिनार कर भूपेश की पसंद एजाज ढेबर को माहौपर बना दिया गया।
बहरहाल, महापौर एजाज ढेबर अपने कई विकास कार्यों को लेकर सवालों के घेरे में रहे। साथ ही भाजपा ने भी उन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए हैं। इन आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच महापौर के भाई अनवर ढेबर अब 2 हजार करोड़ के शराब घोटाले के आरोप में जेल में बंद हैं। इससे आमजन चर्चा है कि इस बार एजाज ढेबर को कांग्रेस महापौर का टिकट नहीं देगी। कायस है कि महापौर की दौड़ में पूर्व मेयर प्रमोद दुबे ही कांग्रेस की पहली पसंद हो सकते हैं। क्योंकि वे भाजपा की प्रदेश में सरकार के दौरान महापौर थे।
इसलिए भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी रायपुर में महापौर की सीट पर कैसे कब्जा जमाया जाए। वैसे पिछली बार कांग्रेस ने नगरीय निकायों के चुनाव में अप्रत्याशित सफलता हासिल की थी। लेकिन इस भाजपा की सरकार है ऐसे में पार्टी का दावा है कि साय के सुशासन की लोकप्रियता से इस सभी सीटों पर क्लीन स्वीप करेंगे।
इसके अलावा, राज्य सरकार ने पिछड़ा वर्ग और अल्संख्यक समुदाय के लिए स्थानीय निकायों में आरक्षण के नियमों में भी बदलाव किया है। त्रिस्तरीय पंचायतों और नगरीय निकायों के चुनावों में अब अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण की सीमा 25 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत तक की जाएगी।
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