आखिर क्यों रामसेतु को लेकर BJP पर भड़के भूपेश!
By : madhukar dubey, Last Updated : December 24, 2022 | 11:37 pm
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने बयान में कहा- देखिए जब यही बात कांग्रेस सरकार के वक्त कही गई थी तो राम विरोधी कहा गया। अब खुद कह रहे हैं, तथाकथित राम भक्त बनने वाले भाजपा के लोग सदन में कह रहे हैं कि रामसेतु के पुख्ता सबूत नहीं है , अब इन्हें किस श्रेणी में रखा जाएगा। भाजपा को देश से माफी मांगना चाहिए देश के लोगों को गुमराह किया गया।
बघेल ने आगे कहा- भाजपा के लोग अब खुद भी कटघरे में खड़े हो गए हैं। यदि भाजपा के लोग सच में राम भक्त होते तो अपनी सरकार से सवाल पूछते, विरोध करते, आलोचना करते, यदि नहीं पूछ रहे तो इनका मूल चरित्र यही है। इनका मूल चरित्र है सत्ता प्राप्ति करना। राम नाम जपना पराया माल अपना, ये इनका मूल चरित्र है ।
भाजपा को देश से माफी मांगनी चाहिए. pic.twitter.com/C1Esgu8WfL
— Bhupesh Baghel (@bhupeshbaghel) December 24, 2022
संसद में क्या कहा है केंद्र सरकार ने
सरकार ने संसद में कहा है कि भारत और श्रीलंका के बीच रामसेतु के पुख्ता साक्ष्य नहीं हैं। स्पेस मिनिस्टर जितेंद्र सिंह बीते गुरुवार को भाजपा सांसद कार्तिकेय शर्मा के रामसेतु पर पूछे गए सवाल का जवाब दे रहे थे। उन्होंने कहा- जिस जगह पर पौराणिक रामसेतु होने का अनुमान जाहिर किया जाता है, वहां की सैटेलाइट तस्वीरें ली गई हैं। छिछले पानी में आइलैंड और चूना पत्थर दिखाई दे रहे हैं, पर यह दावा नहीं कर सकते हैं कि यही रामसेतु के अवशेष हैं।
जितेंद्र सिंह ने राज्यसभा में कहा, ‘टेक्नोलॉजी के जरिए कुछ हद तक हम सेतु के टुकड़े, आइलैंड और एक तरह के लाइम स्टोन के ढेर की पहचान कर पाए हैं। हम यह नहीं कह सकते हैं कि यह पुल का हिस्सा हैं या उसका अवशेष हैं।’ उन्होंने कहा- मैं यहां बता दूं कि स्पेस डिपार्टमेंट इस काम में लगा हुआ है। रामसेतु के बारे में जो सवाल हैं तो मैं बताना चाहूंगा कि इसकी खोज में हमारी कुछ सीमाए हैं। वजह यह है कि इसका इतिहास १८ हजार साल पुराना है और, अगर इतिहास में जाएं तो ये पुल करीब ५६ किलोमीटर लंबा था।
मनमोहन सरकार कह चुकी है ये बात
२००५ में मनमोहन सराकर ने सेतुसमुद्रम नाम से एक बड़ी जहाजरानी नहर परियोजना का ऐलान किया था। इसमें रामसेतु के कुछ इलाकों से रेत निकालकर गहरा करने की भी बात थी, ताकि पानी में जहाज आसानी से उतर सके। इस प्रोजेक्ट में रामेश्वरम को देश का सबसे बड़ा शिपिंग हार्बर बनाना भी शामिल था। इससे अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के बीच डायरेक्ट समुद्री मार्ग खुल जाता। इससे व्यवसाय में ५००० करोड़ का फायदा होने का अनुमान था। २००७ में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि ऐसे कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि यह सेतु इंसानों ने बनाया है। जब इस मुद्दे पर विरोध और धार्मिक भावनाएं भड़कने लगीं तो सरकार ने अपना हलफनामा वापस ले लिया।
रामसेतु जुड़ा यह सत्य, जिसे नाकार नहीं जा सकता
भारत के दक्षिणपूर्व में रामेश्वरम और श्रीलंका के पूर्वोत्तर में मन्नार द्वीप के बीच चूने की उथली चट्टानों की चेन है। इसे भारत में रामसेतु और दुनियाभर में एडम्स ब्रिज (आदम का पुल) के नाम से जाना जाता है। इस पुल की लंबाई लगभग ३० मील (४८ किमी) है । यह पुल मन्नार की खाड़ी और पाक जलडमरू मध्य को एक दूसरे से अलग करता है। इस इलाके में समुद्र बेहद उथला है। जिससे यहां बड़ी नावें और जहाज चलाने में खासी दिक्कत आती है। कहा जाता है कि १५ शताब्दी तक इस ढांचे पर चलकर रामेश्वरम से मन्नार द्वीप तक जाया जा सकता था, लेकिन तूफानों ने यहां समुद्र को कुछ गहरा कर दिया जिसके बाद यह पुल समुद्र में डूब गया। १९९३ में नासा ने इस रामसेतु की सैटेलाइट तस्वीरें जारी की थीं जिसमें इसे मानव निर्मित पुल बताया गया था।