बस्तर शांति की ओर…अब ग्रामीणों में नक्सल का खौफ नहीं, अबूझमाड़ में खुले कैंप से बह रही बदलाव की बयार

By : madhukar dubey, Last Updated : November 26, 2024 | 9:30 pm

  14 साल बाद कैंप खुलने से लौटी रौनक, वापस लौटे ग्रामीण

कांकेर। जिले के धुर नक्सल प्रभावित (Naxal affected areas of the district)माने जाने वाले परतापुर क्षेत्र के महला गांव में फिर से रौनक लौट आई है। कभी यहां नक्सलियों की इतनी दहशत थी कि पूरा गांव खाली हो गया था। ग्रामीण अपना घर, खेत सब कुछ छोड़कर जा चुके थे, वो सिर्फ जीना चाहते थे, लेकिन फिर यहां पुलिस ने कैंप खोला (Police opened camp)और नक्सलियों को बैकफुट पर धकेल दिया। धीरे-धीरे ग्रामीण अपने घरों की ओर लौटने लगे हैं। हमारे कांकेर संवाददाता सुशील सलाम ने गांव का जायजा लिया है।

2010 की है, जब नक्सलियों ने गांव के सरपंच समेत दो लोगों की हत्या कर दी थी। इसके बाद रातों रात ग्रामीण पलायन कर पखांजूर चले गए थे। पूरा गांव वीरान हो चुका था। बाद में पुलिस ने यहां 2018 में बीएसएफ कैम्प खोला, जिसके बाद कई दफा नक्सलियों ने जवानों को नुकसान भी पहुंचाया। 6 जवानों की शहादत भी हुई, लेकिन जवानों ने इलाके से नक्सलियों को खदेड़ कर ही दम लिया और अब इस गांव में खुशहाली लौट आई है।

दिन में भी घरों से निकलने से डरते थे

ग्रामीण बताते हैं कि 2008 के करीब नक्सलियों की इतनी दहशत थी कि दिन में भी लोग घरों से बाहर निकलने में डरते थे। नक्सली लीडर प्रभाकर, बोपन्ना अपनी टीम के साथ इस इलाके में रहते थे। कभी भी गांव में नक्सली आ धमकते थे. हर घर से एक बच्चे को नक्सल संगठन में देने दबाव बनाया करते थे. नक्सलियों के बढ़ते अत्याचार के कारण ही पूरा गांव खाली हो गया था. फिर 10 साल बाद पुलिस ने बीएसएफ की मदद से महला गांव में कैंप की स्थापना की, जिससे नक्सली बौखला उठे और दो बार कैंप पर हमला बोला, लेकिन जवान उन्हें खदेडऩे में सफल रहे. अप्रैल 2019 में नक्सलियों ने सड़क निर्माण की सुरक्षा में लगे जवानों पर हमला कर दिया, जिसमें 4 जवान शहीद हो गए. इसके बाद भी जवानों ने हौसला नहीं खोया और नक्सलियों को इलाके से खदेड़ कर ही दम लिया। अब इस इलाके में नक्सलियों की बिल्कुल भी उपस्थिति नहीं है। ग्रामीण खुश है कि अब वो खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं।

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