भूपेश ने किया नमन, पढ़ें, शहीद वीर ‘गुंडाधुर’ की गौरव गाथा
By : madhukar dubey, Last Updated : February 10, 2023 | 11:18 am
आदिवासियों के जल, जंगल और जमीन के लिए अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह का आगाज करने वाले आदिवासी जननायक अमर शहीद वीर गुंडाधुर जी को “भूमकाल स्मृति दिवस” पर शत् शत् नमन।
आदिवासी चेतना के प्रतीक के रूप में शहीद गुंडाधुर जी जनमानस में हमेशा जीवित रहेंगे।
— Bhupesh Baghel (@bhupeshbaghel) February 10, 2023
अंग्रेजों इनके डर से गुफाओं में जा छिपे थे
छत्तीसगढ़ के बस्तर के एक छोटे से गांव में पले-बढ़े गुंडाधुर ने अंग्रेजों को इस कदर परेशान किया था कि कुछ समय के लिए अंग्रेजों को गुफाओं में छिपना पड़ा था। अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाला ये क्रांतिकारी आज भी बस्तर के लोगों में जिंदा है। शहीद गुंडाधुर के योगदान को देखते हुए उनके नाम पर तीरंदाजी के लिए उत्कृष्ट पुरस्कार तो दिया जाता है, लेकिन आज भी उनके चाहने वाले उन्हें क्रांतिकारी का दर्जा दिलाने के लिए प्रयास कर रहे हैं, जो अब तक पूरा नहीं हो सका है।
रियासतकालीन वैभव से भरे-पूरे बस्तर का इतिहास काफी समृद्धशाली रहा है.यहां की परम्पराएं, रीति-रिवाज और संस्कृति अपने आप में खास है. देश का ऐसा कोई कोना नहीं होगा जो बस्तर की वैभव सम्पदा को नहीं जानता होगा.चालुक्य और मराठा राजवंशों के शासनकाल से लेकर अंग्रेजों के शासनकाल की दास्तान इतिहास के पन्नों में आज भी दर्ज है। इन्हीं इतिहास के पन्नों में एक ऐसा नाम भी आता है, जिसने बस्तर को एक अलग पहचान दिलाई.बस्तर के महान क्रांतिकारी शहीद गुंडाधुर को लोग आज भी बड़ी शिद्दत के साथ याद करते हैं।
गुलामी की जंजीरों में जकड़े देश के हर हिस्से के तरह बस्तर भी अंग्रेजों की दासता से मुक्त होना चाहता था। हालांकि उस जमाने में अंग्रेजों के अधीन राजवंश अंग्रेजों की मुखालफत करने की इजाजत नहीं देते थे। लेकिन कुछ आवाजें थीं, जो अंग्रेजों की हुकूमत को उखाड़ फेकना चाहती थी। ऐसी ही एक आवाज थी शहीद गुंडाधुर की.बस्तर के नेतानार में रहने वाले गुडांधुर को उस समय लोग बागा धुरवा के नाम से जानते थे। चूंकि बाहरी दासता के खिलाफ संघर्ष बस्तर की प्रकृति रही है, उसी के अनुरूप शहीद गुंडाधुर ने अंग्रेजों की मुखालफत शुरू की और 1910 में अंग्रेजों की सत्ता को उखाड़ फेंकने शंखनाद कर दिया शहीद गुंडाधुर को करीब से जानने वाले कुमार जयदेव बताते हैं कि शहीद गुंडाधुर ने ही भूमकाल आंदोलन की नींव रखी थी।
अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने का बीड़ा शहीद गुंडाधुर ने उठाया
उस जमाने में बस्तर का राजपाट राजा रूद्रप्रताप के हाथों में था, लेकिन वे अंग्रेजों के अधीन होकर काम रहे थे. ऐसे में अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने का बीड़ा शहीद गुंडाधुर ने उठाया। भूमकाल आंदोलन में लाल मिर्च क्रांतिकारियों की संदेश वाहक कहलाती थी, जैसे 1857 की क्रांति के समय रोटी और कमल। बस्तर से ब्रिाटिश हुकूमत की नीवें हिलानें के लिए गांव-गांव तक लाल मिर्च, मिट्टी का धुनष-बाण और आम की टहनियां लोगों के घर-घर तक पहुंचाने काम इस मकसद से शुरू किया गया कि लोग बस्तर की अस्मिता को बचाने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ आगे आएं इतिहास इस बात का साक्षी है कि अंग्रेजों के खिलाफ उठाई गई।
अंग्रेजों को कुछ समय छिपने के लिए जंगलों में गुफाओं का सहारा लेना पड़ा था
इस आवाज में करीब 25 हजार लोगों ने अपनी कुर्बानी दी थी. भूमकाल की गाथा आज भी बस्तर के लोकगीतों में गाई और सुनाई जाती है. कोई आदिवासी आज भी जब रात के अंधेरे में भूमकाल के गीत छेड़ता है तो आदिवासियों के पांव ठहर जाते हैं।
उस सदी में शुरू हुई असफल क्रांति की मर्मान्तक पीड़ा आज भी आदिवासियों को पीड़ा से भर देती है। बस्तर का इतिहास आज भी इतिहास के पन्नों से ज्यादा लोककथाओं, लोकगीतों और जनश्रुतियों में संकलित और जीवित है। शहीद गुंडाधुर को विद्रोहियों का सर्वमान्य नेता माना जाता है।
शहीद गुंडाधुर सामान्य आदिवासी थे, जिन्होंने न तो कभी पाठशाला का मुंह देखा था और न ही बाहरी दुनिया में कदम रखा था. 35 साल की उम्र में उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ ऐसी लडाई छेड़ी कि कुछ समय तक अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे. हालात तो ये हो चले थे कि अंग्रेजों को कुछ समय छिपने के लिए जंगलों में गुफाओं का सहारा लेना पड़ा था।