चैतन्य बघेल गिरफ्तारी केस: ED को सुप्रीम कोर्ट से नोटिस, 10 दिन में काउंटर-एफिडेविट जमा करने का आदेश
By : dineshakula, Last Updated : October 31, 2025 | 3:51 pm
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के 2000 करोड़ रुपए के कथित शराब घोटाला मामले में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य बघेल (Chaitanya Baghel) की गिरफ्तारी पर शुक्रवार को सुनवाई की। कोर्ट ने इस दौरान प्रवर्तन निदेशालय (ED) को 10 दिन के भीतर काउंटर-एफिडेविट जमा करने का निर्देश दिया है।
इस मामले की सुनवाई जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉय माल्य बागची की बेंच ने की। चैतन्य बघेल की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल और एन. हरिहरन ने पक्ष रखा। कपिल सिब्बल ने अदालत को बताया कि चैतन्य बघेल की गिरफ्तारी बिना नोटिस या समन के की गई, जबकि PMLA की धारा 19 के तहत बिना नोटिस गिरफ्तारी संभव नहीं है। उनका कहना था कि जांच एजेंसी जानबूझकर प्रक्रिया में देरी कर रही है, जिससे आरोपी लंबे समय तक जेल में रहे।
चैतन्य बघेल पिछले तीन महीने से जेल में हैं। उन्हें ED ने 18 जुलाई 2025 को गिरफ्तार किया था। चैतन्य ने जमानत याचिका के साथ PMLA की धाराओं 50 और 63 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका भी सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी।
सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि सिर्फ गैर-सहयोग का आरोप पर्याप्त आधार नहीं है, आरोपों का जवाब भी देना होगा। वहीं जस्टिस बागची ने कहा कि मामला केवल गिरफ्तारी का नहीं है, बल्कि यह भी देखना है कि जांच कब तक चलेगी।
ED की ओर से ASG एसवी. राजू ने कोर्ट को बताया कि उन्हें जांच पूरी करने के लिए तीन महीने का समय दिया गया है। कोर्ट ने मामले पर नोटिस जारी कर 10 दिन में काउंटर-एफिडेविट जमा करने का आदेश दिया।
चैतन्य बघेल की याचिका में PMLA की धारा 50 और 63 की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाया गया है। धारा 50 ED को पूछताछ और दस्तावेज़ मांगने की शक्ति देती है, जबकि धारा 63 में गैर-सहयोग या गलत जानकारी देने पर दंड का प्रावधान है। याचिका में कहा गया है कि ये धाराएं व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं और ED को अत्यधिक अधिकार देती हैं, जिससे जांच और गिरफ्तारी को अनिश्चित समय तक खींचा जा सकता है।
सरल भाषा में, याचिका का मुख्य तर्क यह है कि ED को इतना अधिकार नहीं होना चाहिए कि वह बिना नोटिस और उचित प्रक्रिया के किसी को पूछताछ और सजा दे सके, क्योंकि यह संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों के खिलाफ है।




