Chhattisgarh : हजार साल से अधिक प्राचीन ‘नरसिंह भगवान’ का मंदिर, जहां शनिवार काे 56 नहीं 356 प्रकार का लगेगा भोग

By : hashtagu, Last Updated : November 1, 2024 | 10:40 pm

  • श्री बिरंची नारायण मंदिर में भगवान  नरसिंह भगवान में गोवर्धन अन्नकूट पूजन,
  • शनिवार को दोपहर 12 बजे भाेग लगेगा, दोपहर एक बजे से भंडारे का आयोजन किया जाएगा
  • रायपुर। शायद 56 प्रकार के भोग लगाने की परंपरा देवी-देवताओं के मंदिरों में सनातन धर्म में प्रचलित है। लेकिन छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में हजारों साल प्राचीन श्री बिरंची नारायण मंदिर में भगवान श्री नरसिंह (Lord Shri Narasimha in Biranchi Narayan Temple) की अद्भूत और विहंगम विग्रह को प्रत्येक वर्ष की भांति इस बार भी गोवर्धन पूजन पर दो नवंबर को दिन शनिवार को दोपहर 12 बजे 356 प्रकार के भोग लगाए जाएंगे। इसके बाद दोपहर एक बजे से भंडारे का आयोजन किया गया है। इसके साथ ही मंदिर में भजन कीर्तन का भी आयोजन है। उक्त जानकारी देते हुए मंदिर के महंत श्री देवदास महाराज ने दी।

    सिर्फ 40 प्रकार के भांजी का भी भोग लगेगा

    श्री देवदास महाराज ने बताया कि विभिन्न प्रकार के मिष्ठान के साथ ही विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का भोग लगेगा। इसमें सिर्फ 40 प्रकार के भांजी का भी भोग लगाया जाएगा।

    1150 साल पुरानी प्रतिमा, गर्म मौसम में ठंडी और ठंडे मौसम में रहती है गर्म

    राजधानी रायपुर (Raipur) के ऐतिहासिक बूढ़ातालाब के सामने ब्रह्मपुरी इलाके में भगवान ‘विरंची-नारायण’ एवं ‘नृसिंह नाथ’ का एकमात्र प्राचीन मंदिर है। संपूर्ण छत्तीसगढ़ में ऐसा कोई दूसरा मंदिर नहीं है, जहां अष्ट धातु से भगवान ब्रह्मा यानी विरंची और नारायण यानी भगवान विष्णु विराजे हैं। साथ ही भगवान नृसिंह की दर्शनीय प्रतिमा है, जिसमें भगवान अपनी जंघा पर राक्षस हिरण्यकश्यप का संहार करते दिखाई दे रहे हैं।

    बगल में भक्त प्रहलाद खड़े हैं। नौवीं शताब्दी में निर्मित मंदिर में साल भर में पांच मर्तबा भव्य आयोजन होता है। इसमें शामिल होने हजारों भक्त उमड़ते हैं। भगवान की प्रतिमा की खासियत है कि गर्मी के मौसम में ठंडी और ठंड के मौसम में गर्म रहती है। इसका कारण बताया जाता है कि प्रतिमा जागृत अवस्था में है और मन्नत मांगने वालों की मनोकामना अवश्य पूरी होती है।

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    • खंभों पर मंदिर टिका है। सभी खंभों की खासियत यह है कि तीन फीट चौड़े और 10 फीट ऊंचे हैं। इन्हें एक ही पत्थर को तराशकर बनाया गया है। छत की चौड़ाई भी तीन फुट से ज्यादा है।

    छत के नीचे दो अलग-अलग गर्भगृह हैं जो मात्र चार फुट चौड़ा और सात फीट ऊंचा है, जहां प्रतिमा विराजित है। गर्भगृह के भीतर न एयरकंडीशनर है और न ही कूलर, इसके बावजूद गर्भगृह में गर्मी नहीं लगती और प्रतिमा को छूने पर वह ठंडकता का अहसास कराती है।

    खंभों पर टिकी छत पर अलग-अलग आकार के ताबीज

    28 खंभों पर टिकी मंदिर की छत पर अलग-अलग आकार के ताबीज बनाए हैं। कहा जाता है कि वास्तु अनुरूप निर्मित ताबीज की वजह से नीचे बैठकर आराधना करने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। मंदिर के बाहर कितनी भी भीषण गर्मी पड़े, लेकिन भीतर गर्मी का अहसास नहीं होता। मंदिर की ठंडकता से सुकून मिलता है।

    दक्षिण भारत के पद्मनाभन स्वामी की तर्ज पर निर्मित विरंची-नारायण

    दक्षिण भारत में जिस तरह विशाल पद्मनाभन स्वामी की प्रतिमा विराजित है, उसी तर्ज पर छत्तीसगढ़ के विरंची-नारायण की छोटी सी प्रतिमा प्रतिष्ठापित है। क्षीर सागर में 11 नागों के फन पर विश्राम करते हुए भगवान विष्णु की प्रतिमा है। भगवान विष्णु की नाभि से निकले पुष्प पर विरंची (ब्रह्मा) विराजे हैं। भगवान विष्णु के पैर दबाते हुए माता लक्ष्मी की प्रतिमा है। संपूर्ण प्रतिमा का निर्माण अष्ट धातु से किया गया है, जो काले पत्थर के रूप में दिखाई देती है।

    मंदिर परिसर में कल्चुरिकालीन शिवलिंग

    मंदिर परिसर में भगवान श्रीराम, सीता, हनुमान, राधा-कृष्ण, सत्यनारायण भगवान के अलावा कल्चुरिकालीन शिवलिंग भी स्थापित है।

    सात पीढ़ी के गुरुओं का इतिहास

    1150 साल से हालांकि सैकड़ों महंतों, पुजारियों ने सेवा दी है, लेकिन वर्तमान में मंदिर के लिखित इतिहास में सात पीढ़ी के नाम ही दर्ज हैं। इनमें महंत रामनारायण दास, महंत सरजूदास, महंत गिरधारी दास, महंत सेवादास, महंत रघुवीर दास, महंत बिहारी दास शामिल हैं। वर्तमान में 17वें महंत के रूप में महंत देवदास सेवा कर रहे हैं।

    साल में पांच भव्य आयोजन

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    प्राचीन मंदिर में सावन महीने में नागपंचमी से लेकर रक्षा बंधन तक अखंड रामायण पाठ होता है, आसपास से 150 महंत शामिल होते हैं। इसके अलावा गोवर्धन पूजा पर अन्नकूट होता है जिसमें356 प्रकार के व्यंजनों का भोग लगता है। रामनवमी, जन्माष्टमी और नृसिंह जयंती पर भी विशाल भंडारे में हजारों लोग प्रसादी ग्रहण करने आते हैं।

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