जगदलपुर। एक वैज्ञानिक फितूर की और पूर्व कलेक्टर की लापरवाही(The negligence of a scientist and former collector) के चलते डीएमएफ, मनरेगा और नीति आयोग के बीस करोड़ रुपए डूब (Twenty crore rupees of DMF, MNREGA and NITI Aayog lost)चुके हैं। जिस जमीन पर पहले से जो आदिवासी किसान पारंपरिक खेती करके अपना जीवन जी रहे थे, उसी अपनी जमीन पर अब वे मनरेगा की मजदूरी कर रहे हैं। अधिकतर किसानों को गुमराह कर उनकी जमीन को एक तरह से सरकारी प्रयोगशाला बना दिया गया।
पिछली सरकार के कार्यकाल में बस्तर के अधिकारी जिस बस्तर कॉफी को बस्तरिया आदिवासियों के लिए वरदान बताते रहे, जिस बस्तर कॉफी की बिक्री के लिए देश भर में आउटलेट्स बनाये जाने के सपने दिखाए जाते रहे,जिस बस्तर कॉफी को पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और कांग्रेस नेता राहुल गांधी अमेरिका तक भेजने की बात कहते रहे उस बस्तर कॉफी के सवा पांच लाख पौधे फल देने से पहले ही सूख गए हैं।
खाद बीज और अन्य उपकरणों के लिए डीएमएफ से मिली बहुत बड़ी रकम यहां के अधिकारियों की तिजोरियों में पहुंच चुके है। बस्तर में बस्तर कॉफी के प्रमोशन के लिए एक कैफे खोला गया था जिसका नाम था बस्तर कैफे। इसकी स्थापना पूर्व कलेक्टर रजत बंसल ने करवाई थी । इस कैफे को चलाने वाली कंपनी भूमगादी दीवालिया हो चुकी है। कंपनी के लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो चुकी है और उनका बस्तर कैफे भी बंद हो चुका है।
कूटरचित प्रोजेक्ट रिपोर्ट में एक ही किसान की जमीन के दस्तावेजों का कई बार इस्तेमाल कर रकबा बड़ा दिया गया और इस अतिरिक्त जमीन पर नलकूप, फेंसिंग, खाद, बीज और मनरेगा की मजदूरी के नाम पर करोड़ों की हेराफेरी की गई है। सबसे बड़ी हैरानी की बात तो यह है कि केंद्रीय कॉफी बोर्ड बेंगलुरु के वैज्ञानिकों की सलाह को भी कचरे में फेंक दिया गया जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से लिखा है कि बस्तर की जमीन और जलवायु कॉफी के बड़े पैमाने पर खेती के लिए बिल्कुल भी उपयुक्त नहीं है। उद्यानिकी महाविद्यालय के दरभा स्थित एक छोटे से कॉफी अनुसंधान प्रक्षेत्र में प्रयोग के तौर अब तक करीब 10-12 क्विंटल कॉफी का उत्पादन हुआ है उसी कॉफी का सब्जबाग दिखा कर रायपुर और दिल्ली से आने वाले अधिकारियों और राजनेताओं को धोखे में रखकर तीन सालों के लिए करोड़ों का प्रोजेक्ट स्वीकृत करवाया गया और अब प्रोजेक्ट की समाप्ति पर सभी प्लांटेशन लगभग पूरी तरह से उजाड़ और वीरान हो चुके हैं। तीन सालों से जिन किसानों को सपने दिखाए जा रहे थे अब उनके भी सब्र का बांध टूट चुका है किसान आक्रोशित हैं और अब वे इस पर हल चला कर धान,मंडिया और कोसरा उगाने की तैयारी कर रहे हैं।
जहां पानी वहां बनवा दी नर्सरी बस्तर के उद्यानिकी विभाग द्वारा ग्राम पंचायत कोडेनार 2 में तीन स्थानों पर माँझीभाटा में एक स्थान पर और टंगिया झोडी में एक स्थान पर कुल 525.375 एकड़ पथरीली जमीन कॉफी के लिए चुनी गई। लाखों रुपये खर्च करके दर्जनों गारंटी बोर खुदवाये गए जो की सभी फेल हो गए। बाल्टी में पानी भर कर एक कोने से दूसरे कोने तक सिंचाई की जाती रही और पौधे सूखते रहे। इस पर भी हमारे होनहार अधिकारियों ने पानी की उपलब्धता के बगैर ही नर्सरी भी बनवा दी और पौधारोपण भी करवा दिया और पहले साल ही दो लाख से ज्यादा कॉफी के पौधे सूख गए। यही सब कुछ दूसरे साल भी हुआ फिर इतने ही पौधे लगाए गए और वे भी सूख गए।
इधर उद्यानिकी महाविद्यालय द्वारा किये गए दरभा के डिलमिली,कंदानार,और मुंडागढ़ के कॉफी प्लांटेशन का भी वही हश्र हुआ।यहां तीनों स्थानों पर कागजों में 100-100 एकड़ भूमि पर वृक्षारोपण बताया जा रहा है।जिसमे से डिलमिली के 100 एकड़ क्षेत्र में सिर्फ एक ट्यूबवेल के सहारे बाल्टियों में पानी भर भर कर सिंचाई की गई जिसके चलते यहां हर साल 70 हजार से भी ज््यादा पौधे सूखते रहे और यहां के अधिकारी बड़े बड़े सरकारी जलसों में कॉफी का राग अलापते रहे और अपनी ही पीठ खुद थपथपाते रहे।
जगदलपुर के उद्यानिकी महाविद्यालय की देखरेख में दरभा के कंदानार में कथित तौर पर कॉफी का प्लांटेशन किया गया है। यहां के लिए तीन साल पहले जनपद पंचायत दरभा को कार्य एजेंसी बनाते हुए 80 लाख रुपये प्रदान किये गए ।इस राशि से यहां दस नलकूप खुदवाने के साथ फेंसिंग और सिंचाई उपकरण लगाने की जिम्मेदारी जनपद पंचायत को दी गई थी। जिसमे से आधे अधूरे इलाके की फेंसिंग तो कर दी गई लेकिन नलकूपों का खनन नही किया जा सका। चार नलकूप अभी कुछ दिनों पहले खुदवाये गए लेकिन तब तक यह प्रोजेक्ट बंद हो चुका था और यहां के कर्मचारियों की छुट्टी हो चुकी थी।अदूरदर्शिता का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है कि जहां बिजली ही नहीं वहां बोर खनन की राशि स्वीकृत की गई और जहां पानी ही नहीं वहां हर साल 70 हजार से भी ज्यादा पौधे लगाए जाते रहे। यहां उद्यानिकी महाविद्यालय की तरफ से नियुक्त किये गए फील्ड असिस्टेंट बजरंगबली ने बताया कि जनपद के अधिकारियों और उद्यानिकी महाविद्यालय के अधिकारियों को कई बार पानी की इस समस्या से अवगत कराया गया लेकिन उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया।बजरंग बली ने बताया कि इस सौ एकड़ के क्षेत्र में एक छोटा सा प्राकृतिक कुआं है जिसे ग्रामीण चुआं कहते है।इसी जल स्त्रोत से बाल्टी में पानी भर कर एक कोने से दूसरे कोने तक सिंचाई की जाती थी जो की पौधों के लिए अपर्याप्त थी। अधिकारियों को पता नहीं किस बात की जल्दी थी कि ऐसे ही हालात में कोरापुट से लाखों रुपये के कॉफी के बीज मंगवाए गए आनन फानन में उनकी नर्सरी बनाई गई।नर्सरी तक तो सब ठीक था लेकिन उसके बाद किये गए वृक्षारोपण को वे सम्हाल नहीं पाए।पहले साल में ही 70 हजार पौधे लगाए गए जिनमे से 95 प्रतिशत पौधे सूख गए।उसके बाद दूसरे साल फिर 30 हजार पौधे लगाए गए वो भी सूख गए।फिर आखिरी साल बिना पानी के ही इसी तरह 60 हजार पौधे लगाए गए जिनका अंजाम भी वही हुआ जो पिछले दो सालों में लगाये गए पौधों का हुआ।उन्होंने स्वीकार किया कि अब यहां लगाए गए पौधों में से सिर्फ 5 प्रतिशत पौधे जिंदा हैं ।
जो जिंदा हैं उनकी भी बढ़त नहीं हो पाई है तीन साल पहले लगे पौधों की वर्तमान में ऊंचाई एक फिट से ज्यादा नहीं है। बिल्कुल ऐसी ही तस्वीर मुंडागढ़,डिलमिली,कोडेनार, माँझीभाटा और टंगिया झोड़ी की भी है।जहां सब मिलाकर सवा पांच लाख पौधे लगाने के लिए करीब 20 करोड़ रुपये खर्च किये गए और अब वहां सिर्फ झाडिय़ां ही बची हैं।
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