आत्मा से संवाद का जरिया है लोकनृत्य इगु, मृत्यु उपरांत उपवास कर संवाद किया जाता है मृतात्मा से

भले ही विज्ञान न माने आत्मा और परमात्मा को लेकिन ये तो सच है कि इस मायावी दुनिया का चलाने वाली कोई अद्श्य शक्ति है।

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  • Publish Date - November 3, 2022 / 04:22 PM IST

इदुमिस्थि जनजाति द्वारा किया जाता है, असामयिक मृत्यु पर नहीं केवल सामान्य मृत्यु पर ही होता है यह लोकनृत्य

छत्तीसगढ़/रायपुर। भले ही विज्ञान न माने आत्मा और परमात्मा को लेकिन ये तो सच है कि इस मायावी दुनिया का चलाने वाली कोई अद्श्य शक्ति है। जैसे प्रकृति के सूर्य के तपन, पानी ठंडकता, हवा की शीतलतावप्रेम-अनुराग आदि सभी को सिर्फ अहसास ही किया जाता सकता है। वैसे ही आत्मा जो परमात्मा से बंधी होती है, उसे भी सिर्फ अहसास ही किया जाता सकता है। जैसे ऊपर फेंका गया गेंद नीचे गिरेगी या कई फीट ऊपर पनपा पत्ता सूखकर जमीन पर गिरेगा तो प्रकृति का नियम है। वैसे ही शरीर से आत्मा का निकलना और पुर्नजन्म लेना निश्चित है। जिसे सनातन धर्म के अलावा अपने आदिवासी संस्कृति में भी आत्मा को माना जाता है। ऐसा ही उल्लेख अरुणाचल की लोकसंस्कृति में मृत्यु के पश्चात आत्मा से संवाद लोकनृत्य के माध्यम से होता है। इसका मंचन राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य में लोककलाकारों ने किया।

लोक नृत्य के जरिए इन भावों को किया सबके सामने उजागर

कलाकारों के नृत्य में भाव था कि सामान्य मौत की स्थिति में परिजनों के मृत्यु के चार-पांच दिन तक उपवास रखा जाता है और इस अवधि में मृतात्मा से संवाद लोकनृत्य के माध्यम से होता है। यह संवाद इदुमिस्थि जनजाति द्वारा किया जाता है। अपने पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ यह संवाद किया जाता है। उल्लेखनीय है कि अनेक जनजातियों में मृतात्मा के साथ ऐसे संवाद की परंपरा रही है और बहुत समृद्ध परंपरा रही है। ऐतिहासिक रूप से भी मृत्यु संबंधी अनेक लोकमान्यताएं जनजातीय समुदाय में मिलती हैं। उल्लेखनीय यह भी है कि इगु नृत्य का प्रदर्शन केवल सामान्य मौत में ही होता है।असामयिक रूप से किसी की मृत्यु हुई हो तो यह नृत्य नहीं होता। पारंपरिक अरुणाचल के परिधान के साथ और उनके खास वाद्ययंत्रों के साथ इगु का प्रदर्शन राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में हुआ। राजधानी में आयोजित इस महोत्सव में अरूणाचल के इस लोक नृत्य को लोगों ने खूब सराहा।