राजनांदगांव में बिल्डर, अधिकारियों और बैंक ने मिलकर किया करोड़ों का गोलमाल

बढ़ते हुए शहरीकरण और विकास की आड़ में शासकीय तंत्र किस तरह आम जनता के निजी घरौंदों के ख्वाब को कुचलता है ये कोई नई बात नहीं है लेकिन सरकार की...

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  • Updated On - July 7, 2023 / 08:44 PM IST

छत्तीसगढ़ में एक और स्वागत विहार

रायपुर (प्रफुल्ल पारे)। बढ़ते हुए शहरीकरण और विकास की आड़ में शासकीय तंत्र किस तरह आम जनता के निजी घरौंदों के ख्वाब को कुचलता है ये कोई नई बात नहीं है लेकिन सरकार की तमाम कोशिशों के बाद भी यह कुत्सित कोशिश काबू में नहीं हैं यह चिंता की बात है। घर… एक आम आदमी का सपना होता है और सरकार भी इस सपने को पूरा करने में जुटी होती है लेकिन किस तरह बिल्डर सरकारी महकमों के साथ मिलकर उन सपनों को चूर चूर कर देते हैं ऐसे मामले आये दिन सामने आते हैं। छत्तीसगढ़ के प्रमुख शहर राजनांदगांव (Rajnandgaon) में एक ऐसी ही भ्रष्टाचार की कहानी आकार ले चुकी है, जिसमें शासन के नगर तथा ग्राम निवेश विभाग (Rural Investment Department), नगर निगम राजनांदगांव और आवास के लिए कर्ज देने वाली बैंक ने भी मिलकर शासन के नियमों की धज्जियाँ उड़ाई और अपनी मनमानी की एक बस्ती बसा दी। यह मामला दूसरों से थोड़ा भिन्न इसलिए है कि इस जिले के हुक्मरानों ने नियमों के खिलाफ जाकर आधी से अधिक आवासीय कालोनी को शॉपिंग काम्प्लेक्स में बदल दिया। भ्रष्टाचार की इस परियोजना का नाम है सत्यम परिवेश।

कहानी कुछ यूँ है

राजनांदगांव के नंदई ग्राम क्षेत्र में सत्यम परिवेश कालोनी का प्रस्ताव नगर तथा ग्राम निवेश विभाग के उप संचालक के कार्यालय में लगभग एक वर्ष पूर्व आवासीय कालोनी के लिए प्रस्तुत किया गया। जिसमें कुल 28 खसरों में 2.9011 हेक्टेयर भूमि पर विभाग ने आवासीय कालोनी की अनुमति दी। चूँकि इस भूमि का भू उपयोग आवासीय था इसलिए कालोनी निर्माण की सभी शर्तों के साथ बिल्डर को यह अनुमति प्रदान की गई। बिल्डर ने आवासीय प्रयोजन के लिए रेरा में भी पंजीयन कराया और आवासीय प्रयोजन के लिए ही बैंक से भी प्रोजेक्ट को ऋण की मंजूरी दी गई। इस परियोजना के 70 भूखंड धारकों की रजिस्ट्री भी आवासीय प्रयोजन के नाम पर हुई लेकिन अंत में नगर पालिक निगम ने इन आवासीय भूखंडों पर व्यावसायिक भवन निर्माण की अनुमति भूखंड धारकों को प्रदान कर दी। इसमें दिलचस्प बात ये है कि राजनांदगांव की छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण बैंक की बसंतपुर शाखा ने सभी 70 भूखंड मालिकों को आवासीय ऋण प्रदान कर दिया। सीधी सपाट कहानी इतनी सी है कि जिस जमीन का भू उपयोग आवासीय है वहां व्यावसायिक काम्प्लेक्स बनाने की अनुमति नगर पालिक निगम कैसे दे सकता है और बैंक की उदासीनता देखिये कि जिन आवासीय भूखंडों पर उसने आवास के लिए सस्ती ब्याज दर पर कर्ज दिया वहां व्यावसायिक निर्माण हो रहा है और बैंकों को इसकी भनक तक नहीं है।

सवाल जिनका जवाब कोई नहीं दे रहा

सवाल एक —– छत्तीसगढ़ नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम की धारा 1973 की धारा 30 (3) एवं छत्तीसगढ़ भूमि विकास नियम 1984 के नियम 27 के अंतर्गत प्रदान की गई अनुज्ञा को नगर पालिक निगम कैसे और किस अधिकार के तहत बदल सकता है।

सवाल दो ——- जब इस मामले की शिकायत नगर तथा ग्राम निवेश विभाग के उप संचालक को की गई तब इस विभाग ने नगर पालिक निगम के विरुद्ध कोई भी कार्रवाई नहीं की और ना ही भवन निर्माण अनुज्ञा को निरस्त करने के लिए कोई नोटिस जारी किया। इस मसले पर नगर पालिक निगम के अधिकारी कहते हैं कि स्वीकार्य उपयोग के अंतर्गत अगर सड़क चौड़ी हो तो इस प्रकार की अनुमति दी जा सकती है जबकि स्वीकार्य उपयोग की शक्तियां केवल और केवल नगर तथा ग्राम निवेश विभाग के पास ही होती हैं। इस आशय का पत्र नगर तथा ग्राम निवेश विभाग के तात्कालिक संचालक उमेश अग्रवाल और प्रमुख सचिव आवास पर्यावरण विभाग के द्वारा पूर्व के वर्षों में जारी किया जा चुका है फिर निगम के पास कौन सा अधिकार था? होना तो यह चाहिए था कि मामले के संज्ञान में आते ही कालोनाइजर के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जानी थी।

सवाल तीन ———- शासकीय नियम यह भी कहते हैं कि भूखंड विकास अनुज्ञा सशर्त जारी की जाए और स्थल पर उसकी जांच भी की जाए कि विकास नियमों और शर्तों के अनुरूप हो रहा है या नहीं? लेकिन इस मामले में ऐसा भी कुछ नहीं किया गया। इसके अलावा स्वीकृत परियोजना का विकास अनुमोदित अनुज्ञा के अनुरूप किया जाए यह दायित्व भी नगर निगम का होता है लेकिन यहाँ तो नगर पालिक निगम ही नियमों का दुश्मन बन गया है। विभाग के जानकारों का कहना है कि राजनांदगांव की सत्यम परियोजना छत्तीसगढ़ नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम की धारा 30 (क) और धारा 25 का स्थनीय निकाय द्वारा किया गया घोर उल्लंघन है और यह उल्लंघन कालोनाइजरों को लाभ पहुँचाने की नीयत से किया गया कार्य माना जायेगा।

सवाल चार——– यह साफ़ और पूर्णतः स्पष्ट है कि नगर तथा ग्राम निवेश विभाग द्वारा जारी भवन निर्माण अनुज्ञा में फेरबदल का अधिकार नगर पालिक निगम को नहीं है। वहीँ छत्तीसगढ़ भूमि विकास नियम भी यही कहता है कि भवन निर्माण अनुज्ञा और भू उपयोग के विरुद्ध कोई निर्माण हो रहा है तो उस निर्माण को दस दिन के भीतर रोकने या बंद करने का जिम्मा नगर पालिक निगम का भी है तो आज एक बरस बीतने को है निगम इस निर्माण को रोकने की बजाय इसे जारी रखने पर क्यों आमादा है।

सवाल पांच ——— अब एक और महत्वपूर्ण नियम को जान लीजिए ….. शहरीकरण तथा आवासीय विकास के लिए स्थापित मार्गदर्शी सिद्धांत में कमजोर वर्ग के लिए किये गए प्रावधानों में साफ़ उल्लेख है कि 15 प्रतिशत ews भूमि जो निशुल्क प्रदान की जाती है अगर वह भूमि कालोनाइजर को चाहिए तो उसे कालोनी परिसर में एक प्रतिशत के स्थान पर दो प्रतिशत भूमि पर व्यावसायिक उपयोग की सुविधा उपलब्ध करानी होगी। राजनांदगांव नगर पालिक निगम ने इन प्रावधानों की भी धज्जियाँ उड़ाते हुए कालोनी के करीब पचास प्रतिशत भूखंडों पर व्यावसायिक भवन निर्माण की अनुज्ञा जारी कर दी। कालोनी के भूखंड स्वामी श्री रितेश जैन, श्री रेखचंद सुराणा, श्री चंद्रेश जैन, श्री अजय जैन, श्री महावीर कोठारी और श्रीमती सोनिया गिरिया जैसे अनेकों को लोगों को आवासीय भूमि पर व्यावसायिक भवन निर्माण अनुज्ञा जारी कर दी गई।

सवाल छह ——— सत्यम परिवेश ने आवासीय कालोनी के प्रयोजन हेतु कुल 28 खसरों के 2.9011 हेक्टेयर भूमि पर प्रस्ताव पेश किया जिसमें स्पष्ट उल्लेख है कि सत्यम परिवेश का भू व्यपवर्तन अनुविभागीय अधिकारी राजस्व द्वारा आवासीय प्रयोजन के लिए किया गया है। इसमें यह भी साफ़ साफ़ लिखा है कि अनुज्ञा प्राप्त प्रयोजन से भिन्न उपयोग इस भूमि का होता है तो आरोपित शर्त क्रमांक 4 के तहत अनुमति स्वतः समाप्त मानी जाएगी। तो क्या नगर पालिक निगम राजनांदगांव द्वारा सत्यम परिवेश को दी गई व्यावसायिक अनुज्ञा को अधीक्षक भू अभिलेख के आदेश का उल्लंघन नहीं माना जाना चाहिए यदि ये उल्लंघन है तो निर्माण चल कैसे रहा है।

सवाल सात ——— अब आइये राजनांदगांव के छत्तीसगढ़ ग्रामीण बैंक शाखा बसंतपुर की करतूत पर…..सत्यम परिवेश के लगभग 70 भूखंड धारकों ने आवासीय ऋण प्राप्त किया और निर्माण किया व्यावसायिक.. तो क्या बैंक और ऋण लेने वालों पर भारतीय दंड विधान की धारा 420 के तहत प्रकरण दर्ज नहीं होना चाहिए ?? आवासीय और व्यावसायिक कार्यों के लिए बैंक की ब्याज दर अलग अलग होती है तो बैंक को जो ब्याज की हानि हुई उसका जिम्मेदार कौन?? राजस्व विभाग को और पंजीयन विभाग को जो करोड़ों का चूना लगा उसका जिम्मेदार कौन??? भवन निर्माण अनुज्ञा आवासीय है तो शुल्क भी आवासीय होगा मतलब आवासीय शुल्क जमाकर निर्माण व्यावसायिक होगा तो करोड़ों की हानि राजस्व की भी होगी इसका जवाब कौन देगा ?? पंजीयक विभाग से भूखंड का पंजीयन कराया आवासीय और निर्माण किया व्यावसायिक…तो मुद्रांक शुल्क में छत्तीसगढ़ शासन को करोड़ों रुपए की क्षति हुई उसका दोषी कौन??

गौरतलब बात यह है कि बिल्डरों, नगर तथा ग्राम निवेश, स्थानीय निकाय और बैंक मिलकर ऐसे नियम विरुद्ध कार्य हमेशा से करते आये हैं इसे रोकने और साधारण लोगों को इस धोखाधड़ी से बचाने के लिए ही पूरे देश में रेरा का गठन किया गया है लेकिन अब ये कालोनाइजर रेरा को भी गुमराह कर रहे हैं। जानकर बताते हैं कि राजनांदगांव के सत्यम परिवेश प्रकरण में छत्तीसगढ़ नगर पालिक निगम अधिनियम 1985 की धारा (क) के प्रावधानों के तहत सभी व्यावसायिक अनुज्ञा को निरस्त किया जाना चाहिए और बैंकों से हो रहे लोन पर भी रोक लगनी चाहिए साथ ही रेरा को भी इस कालोनाइजर का पंजीयन निरस्त करने के साथ साथ क़ानूनी कार्रवाई करनी चाहिए और सबसे बड़ी बात शासन को पूरा प्रोजेक्ट अपने नियंत्रण में लेना चाहिए जिससे कि लोगों को धोखाधड़ी से बचाया जा सके।

प्रदेश की राजधानी रायपुर में भ्रष्टाचार और ठगी का एक प्रकरण पहले भी हो चूका है जो स्वागत विहार के नाम से चर्चित हुआ। अब यह दूसरा स्वागत विहार राजधानी से अस्सी किलोमीटर दूर राज्य के एक प्रमुख शहर राजनांदगांव में सत्यम परिवेश के नाम से आकर ले रहा है या कहिये ले चुका है। तमाम शिकायतों के बाद भी शासन और सत्ता के गलियारों में केवल चुप्पी छाई हुई है… मुख्यमंत्री, नगरीय प्रशासन मंत्री, आवास एवं पर्यावरण मंत्री, मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक, रेरा, कलेक्टर, कमिश्नर, आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो, ए सी बी सहित तमाम निर्णायक प्रतिष्ठानों में शिकायत के बाद भी धोखे और भ्रष्टाचार का यह रुकने की बजाय अपनी पूर्णता की ओर बढ़ रहा है।

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