इस मंदिर में डाकनी-शाकनी, यक्ष गंधर्व नहीं यहां होती है परेतिन दाई की पूजा

छत्तीसगढ़ विविधताओं वाला प्रदेश है, यहां लोक संस्कृति और मान्यताओं को आज भी लोग एक धरोहरों के रूप में सहेजे हुए हैं। इनमें कुछ किदवंतिया

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  • Publish Date - October 4, 2024 / 08:33 PM IST

परेतिन दाई नि:संतान महिलाओं की भरती हैं सूनी गोद

बालोदा। छत्तीसगढ़ विविधताओं वाला प्रदेश है, यहां लोक संस्कृति और मान्यताओं को आज भी लोग एक धरोहरों के रूप में सहेजे हुए हैं। इनमें कुछ किदवंतिया भी हैं, जहां देवी-देवताओं या डाकनी-शाकनी और यक्ष गंधर्व को छोड़कर परेतिन की पूजा(Paretin’s worship) होती है। 

देवी माता की 64 योगनियों के बारे में हर कोई जानता है पर एक ऐसा अनोखा मंदिर भी है, जिसे परेतिन दाई मंदिर(Paretin Dai Temple) के नाम से जाना जाता है। लोग पूरी श्रद्धा भक्ति के साथ परेतिन दाई की पूजा कर अपनी मनोकामना पूरी करती हैं। इस मंदिर में विराजित परेतिन दाई को झिंका सहित पूरे बालोद जिले के लोग परेतिन दाई के नाम से जानते हैं।

मंदिर में ज्योत भी जलाई गई है

नवरात्र में यहां विशेष अनुष्ठान की शुरुआत हो चुकी है और इस मंदिर में ज्योत भी जलाई गई है, वैसे तो लोग प्रेत, प्रेतात्मा या फिर डायन नाम से ही डर जाते हैं क्योंकि इसको बुरी शक्ति माना जाता है। मगर झिंका गांव के लोगों की आस्था ऐसी है कि ये डायन (परेतिन माता) को माता मानते हैं और इसकी पूजा करते हैं।

हर कोई शीश झुकाकर ही बढ़ते हैं आगे

झींका गांव की सरहद में बने परेतिन दाई मंदिर का प्रमाण उसकी मान्यता आस्था का वो प्रतीक है, जिससे आज इस मंदिर को पूरे प्रदेश में जाना जाता है। ग्रामीण गैंदलाल मिरी ने बताया कि बालोद जिले का यह मंदिर पहले एक पेड़ से जुड़ा हुआ था। माता का प्रमाण आज भी उस पेड़ पर है और उसके सामने शीश झुकाकर ही कोई आगे बढ़ता है।
आज भी लोग गुजरते हैं तो शीश नवाकर गुजरते हैं और यहां पर जो कोई भी मनोकामना मांगते हैं, वो पूरी होती ही है। विशेष रूप से नि:संतान महिलाओं को  परेतिन दाई आशीर्वाद देकर सूनी गोद को भरती हैं।

दूध नहीं चढ़ाया तो होगा खराब, मंदिर से गुजरने पर चढ़ाने की परंपरा

कहा जाता है कि गांव के यदुवंशी (यादव और ठेठवार) मंदिर में बिना दूध चढ़ाए निकल जाते हैं तो दूध फट जाता है। ऐसा कई बार हो चुका है। ग्रामीण ने बताया कि यह मंदिर काफी पुराना और बड़ी मान्यता है। गांव में भी बहुत से ठेठवार हैं, जो रोज दूध बेचने आसपास के इलाकों में जाते हैं। यहां दूध चढ़ाना ही पड़ता है। जान बूझकर दूध नहीं चढ़ाया तो दूध खराब (फट) हो जाता है।

यहां से गुजरने वाले को कुछ न कुछ दान करना ही होता है

दशकों से इस मंदिर की मान्यता है कि इस रास्ते से कोई भी मालवाहक वाहन या लोग गुजरते हैं और किसी तरह का समान लेकर जाते हैं तो उसका कुछ हिस्सा मंदिर के पास छोडऩा पड़ता है। चाहे खाने-पीने के लिए बेचने वाले सामान या फिर घर बनाने के लिए उपयोग में लाए जाने वाले सामान। आप वाहन में जो भी कुछ सामान ले जा रहे होते हैं उसमें से कुछ हिस्सा यहां चढ़ाना जरूरी है। ऐसा लोगों का मानना है कि कोई व्यक्ति अगर ऐसा नहीं करता है तो उसके साथ कुछ न कुछ अनहोनी होती है।

नवरात्र में नौ दिन की विशेष पूजा

चैत्र और क्वार नवरात्रि में परेतिन माता के दरबार में विशेष आयोजन किए जाते हैं। जहां पर ज्योति कलश की स्थापना की जाती है और नवरात्र के 9 दिन बड़ी संख्या में भक्तों का तांता लगा रहता है। भले ही मान्यता अनूठी हो लेकिन सैकड़ों वर्षों से चली आ रही परंपरा और मान्यता आज भी इस गांव में कायम है वर्तमान में 100 ज्योति कलश यहां पर प्रज्वलित किए गए हैं।