छत्तीसगढ़ में बाघ का कुनबा बढ़ाना बनी चुनौती
By : hashtagu, Last Updated : April 8, 2023 | 1:38 pm
सरकारी आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि तीनों टाइगर रिजर्व में तीन वर्षों की अवधि में 183 करोड़ रुपए खर्च किए गए। यह राशि बाघों के संरक्षण, उनके लिए बेहतर सुविधाएं विकसित करने के मकसद से जंगल में वृद्धि और शाकाहार जंतुओं के इजाफे पर खर्च किए गए। एक तरफ जहां यह राशि खर्च की गइर्, वही दूसरी ओर बाघों की संख्या कम होती जा रही है।
सरकार की ओर से जारी आंकड़े बताते हैं कि तीन साल में जहां 183 करोड़ रुपए खर्च किए गए, वही भाजपा के शासन काल के तीसरे कार्यकाल में चार साल में 229 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे, उसके बावजूद बाघों की संख्या कम हुई थी।
बाघों पर खर्च हो रही राशि की गणना की जाए तो हर साल 60 करोड़ रुपये का खर्च आता है, एक माह में पांच करोड़। देश के अन्य टाइगर रिजर्व में एक बाघ पर हर साल औसतन एक करोड़ रुपये खर्च होता है। इस तरह इस राज्य में खर्च होने वाली राशि के लिहाज से 60 बाघ होने चाहिए। लेकिन यहां सिर्फ 19 बाघ ही पाए गए थे। उसके बाद दो बाघों की मौत भी हो गई।
राज्य के इन तीन टाइगर रिजर्व में से दो, इंद्रावती व सीता नदी उदंती उन इलाकों में हैं, जहां माओवादियों का प्रभाव है। इन स्थितियों में वन विभाग का अमला भी दोनों टाइगर रिजर्व के बड़े इलाके में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने से बचता है।
नेचर क्लब के सदस्य और पर्यावरण विशेषज्ञ प्रथमेष मिश्रा का कहना है कि राज्य में बाघों की संख्या में वृद्धि न होने का कारण जंगलों में उनकी निजता का अभाव है। जंगलों में पर्यटन के नाम पर लोगों की आवाजाही बहुत ज्यादा बढ़ रही है। इसके अलावा जंगली इलाकों में बढ़ती बसाहट भी बाघों की वंश वृद्धि रोकने का बड़ा कारण बन रही है। सरकार की ओर से टाइगर रिजर्व पर, जिस राशि को खर्च किया जाना बताया जा रहा है, वह आसानी से कोई भी स्वीकार नहीं कर सकता। आज जरूरत इस बात की है कि टाइगर रिजर्व के कोर एरिया में बसे लोगों को हटाने की दिशा में सख्त कदम उठाए जाएं साथ ही पर्यटन को ज्यादा बढ़ावा देने की बजाय बाघों को प्राइवेसी सुलभ कराई जाए, अगर ऐसा नहीं होता है तो यह संख्या और भी घट सकती है।