रायपुर। क्या बताएं भाई साहब, हर बार मानसूनी बारिश (Monsoon rain) में नालियां उफान में आ जाती हैं। बस थोड़ी बारिश और शहर में चारों ओर पानी ही पानी। कहीं नाली का पानी तो कहीं ड्रेनेज का पानी। ये पानी-पानी का प्रेम इतना की नालियों (Drains)के सहारे घरों में घुस जाती है। वैसे इनका सम्मान भी करना ही पड़ता है। घर में घुसे नाली के गंदे पानी के ‘घुसपैठिए’ को भगाने के लिए लाठी नहीं, सप्रेम पूर्वक दोनों हाथों से उठाए और मन में जो आए इसके लिए जिम्मेदारों को मौन भाव कोसते हुए टब और बाल्टी से निकालें।
इससे आपकी सेहत भी बनी रहेगी और बारिश के बहाने कुछ काम शारीरिक व्यायाम भी हो जाएगा। इसी में भलाई है, क्याेंकि जब तक सिस्टम को दुश्वारियां बताएंगे, तब तक सब कुछ बेड़ागर्क हो जाएगा। अगर आपको लगे कि भारी तादात में पानी के घुसपैठिए आने वाले हैं तो दूसरी मंजिल पर चले जाए या तो कहीं अन्यंत्र स्थान पर। कुछ इसी अंदाज में एक कालोनी के एक मानिंद वासी बयां कर रहे थे। कहते हैं कि नालियों के ओवरफ्लो होने पर न रो सकते हैं और न ही हंस सकते हैं।
इस बात को सुनकर तीसरे रहवासी तो फट पड़ा। कहा, भाई साहब, सिर्फ चुनावी मौसम में पार्षद और दावेदार घर-घर आ जाते हैं। कहते हैं कि मेरा वादा है कि कभी नाली और ड्रेनेज ओवरफ्लो नहीं हो पाएगा। लेकिन चुनाव बीतने के बाद कहां वे दिखाई देंगे, हां, ये है कि अखबार में फोटो कभी कभार देने के लिए निकल पड़ेंगे, एक मिनट में थोड़ा एक्शन मारकर फोटो खींचाने के बाद ऐसे गायब होंगे, जैसे ईद के चांद। क्योंकि नेता जी चुनाव के घर-घर लोगों के पैर छू रहे थे। लेकिन अब उनके पैर जनता को छूने की नौबत आ जाती है। यानी पूरे पांच साल खेल ठेका और कमीशन के खेल में बीत जाता है।
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