बस्तर। दुनिया में सबसे लंबे वक्त तक मनाए जाने वाले बस्तर दशहरे पर्व की शुरुआत हो चुकी हैं. अश्विन अमावस में पाट जात्रा से इसकी शुरुआत की गई है. विश्व प्रसिद्ध बस्तर दहशरे का हर रस्म अपने आप में खास होता है. 75 दिनों तक चलने वाले इस महापर्व में हर रस्मों को काफी विधि विधान से पूरा किया जाता है।
बस्तर दशहरा पर्व (Bastar Dussehra festival) का हर रस्म पूरे विधी विधान से पूरा किया जाता है. इसके लिए मां काछन देवी से अनुमति ली जाती है. लगभग 600 सालों से भी अधिक समय से चली आ रही परंपरा को पूरा करने आज भी पूरे लाव लश्कर के साथ बस्तर महाराजा मां काछन देवी (Bastar Maharaja Maa Kachan Devi) से अनुमती लेने काछन गुड़ी पहुंचते हैं।
माता से आशीर्वाद मांगते है कि बस्तर सहित प्रदेश में खुशहाली बना रहे और दशहरा पर्व बिना किसी विघ्नन के पूरा हो सके. माता से अनुमति लेने बस्तर दशहरा की शुरुआत की जाती है. छत्तीसगढ़ का बस्तर दशहरा 2 खास वजहों से काफी फेमस है. पहला यहां दशहरा 75 दिनों का होता है. तो दूसरा इसमें रावण का दहन नहीं किया जाता. यहां रथ की परिक्रमा की परंपरा है।
आपको बता दें कि काछन देवी एक 6 साल की कन्या पर सवार होती हैं और वह पंनका जाती की होती, जिसे रण की देवी कहा जाता है. ये पंरपरा सदियों से चली आ रही है और इसे आज भी पूरे विधि विधान के साथ पूरा किया जाता है।
बस्तर राजपरिवार के सदस्य कमल चंद भंजदेव ने बताया कि सैकड़ों सालों से चली आ रही पंरपरा को राज परिवार निभाते आ रहा है. माता से पूरे प्रदेश सहित बस्तर की खुशहाली की कामना करती हैं. बस्तर सांसद महेश कश्यप ने कहा कि बस्तर की संस्कृति और अनूठी परम्परा का संगम बस्तर दशहरा में देखने को मिलता हैं. इसे देखने कई पर्यटक भी यहां आते हैं।
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