नारायणपुर। अबूझमाड़ जंगल में मुठभेड़ (Encounter in Abujhmad forest) में मारे गए बसव राजू समेत 27 नक्सलियों के शव को एयरलिफ्ट (The bodies of 27 Naxalites were airlifted) कर नारायणपुर जिला मुख्यालय लाया गया. जिला मुख्यालय में नक्सल ऑपरेशन से जुड़े तमाम बड़े अधिकारी भी इस वक्त मौजूद हैं. ऑपरेशन से जुड़ी जानकारियां अधिकारियों की ओर से मीडिया को दी जाएगी. ऑपरेशन से जुड़ा हुआ एक और वीडियो भी ग्राउंड जीरो से सामने आया है, जिसमें नक्सलियों के शव को बरामद करने के बाद जवान सफलता का जश्न मना रहे हैं।
बसवराजु पिछले दो दशकों से माओवादी संगठन का सैन्य और वैचारिक नेतृत्व कर रहा था. वह देशभर में नक्सली नेटवर्क को संचालित करने वाला मास्टरमाइंड माना जाता था.
शीर्ष माओवादी नेता नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजु को एक दिन पहले मार गिराने के बाद भी सुरक्षाबल का अभियान जारी है. गंगालूर थाना क्षेत्र अंतर्गत पीडिया के जंगलों में जारी मुठभेड़ में डीआरजी ने पांच नक्सलियों को मार गिराया है. इस दौरान दो जवानों के घायल होने की खबर है.
अबूझमाड़ ऑपरेशन अभियान के दौरान कल 21 मई को शाम लगभग 7 बजे आईईडी की चपेट में आने से DRG बीजापुर के जवान रमेश हेमला शहीद हो गए. इससे पूर्व 21 मई को ही सुबह नक्सली हमले का बहादुरी से सामना करते हुए नारायणपुर जिले के औरचा थाना क्षेत्र के ग्राम भटबेडा का निवासी डीआरजी टीम के सदस्य खोटलूराम कोर्राम शहीद हो गए थे. दोनों शहीद जवानों का पार्थिव शरीर नारायपुर जिला मुख्यालय में लाया जा रहा है, जहां सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी जाएगी. वहीं अन्य कुछ जवान घायल हुए हैं, जिन्हें तत्काल इलाज मुहैया कराया गया और सभी खतरे से बाहर हैं.
छत्तीसगढ़ सरकार ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में माओवादी गतिविधियों पर प्रभावी नियंत्रण और स्थायी समाधान के उद्देश्य से जिला रिजर्व गार्ड (DRG) का गठन किया है. यह एक विशेष बल है, जिसे स्थानीय युवाओं को शामिल कर प्रशिक्षित किया गया है, ताकि वे अपने क्षेत्र की भौगोलिक और सामाजिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए माओवादियों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई कर सकें.
डीआरजी में छत्तीसगढ़ के लोकल लोगों को भर्ती किया जाता है. प्रदेश के नक्सल इलाके ज्यादातर आदिवासी क्षेत्र में ही आते हैं. ऐसे में सुरक्षाबलों के जवानों को उनकी बोली और भाषा समझने में दिक्कत होती है. स्थानीय लोगों को यहां की भाषा, बोली और जंगल के बारे जानकारी होती है. डीआरजी के जवान तीन से चार दिन तक जंगलों में नक्सलियों की तलाशी कर सकते हैं. डीआरजी में उन नक्सलियों को भी शामिल किया जाता है जो सरेंडर करने के बाद मुख्यधारा में आते हैं. सरेंडर करने वाले नक्सली जब जवान बनते हैं तो वह नक्सलियों की रणनीति को जानते हैं जिससे जवानों को फायदों मिलता है. यही कारण है कि यह जवान नक्सलियों के सबसे बड़े दुश्मन माने जाते हैं.
डीआरजी जवान नक्सलियों के खिलाफ कई अभियानों को सफलतापूर्वक अंजाम दे चुके हैं. डीआरजी के जवान नक्सलियों की गुरिल्ला लड़ाई का उन्हीं की भाषा में जवाब देते हैं. उन्हें जंगल के रास्तों का पता होता है. उन्हें नक्सलियों की आवाजाही, आदतें और काम करने के तरीकों की भी जानकारी होती है. इलाके में नक्सलियों की मदद करने वालों के बारे में भी उन्हें पता होता है. इसकी मदद से वे नक्सलियों के खिलाफ अभियान की योजना बनाते हैं जो अक्सर सफल होते हैं.