police के ‘परिजन’ बोलेंगे ‘हल्ला बोल’, जानें, इसके सियासी मायने

By : madhukar dubey, Last Updated : January 3, 2023 | 12:55 pm

छत्तीसगढ़। क्या आपने सुना है कि कोई ऐसी नौकरी जो 24 घंटे की हो, इतनी ही नहीं हफ्ते में एक भी सप्ताहिक अवकाश तक नहीं। अब समझिए इन हालातों में नौकरी करने वाले परिजनों का क्या हाल होता होगा। ऐसे में जाहिर है कि काम की जिम्मेदारी के घर के काम नहीं निपटा पाने के कारण, घर का माहौल अशांत होगा। ऐसा ही हाल, यहां छत्तीसगढ़ पुलिस (chhattisgarh police)  और उनके परिजनों का है। बता दें, पूर्ववर्ती सरकार भाजपा के समय भी पुलिस के परिजनों ने सप्ताहिक अवकाश, रिस्पांस अवकाश जैसे अन्य मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन (performance) किया था। लेकिन नतीजा शून्य रहा।

वैसे कांग्रेस की सरकार आने के बाद पुलिस के परिजनाें में आस जगी थी, शायद उनकी मांगें मान ली जाएंगी। लेकिन भूपेश सरकार के 4 साल बीतने के बावजूद उनकी मांगें पूरी नहीं हुई। नतीजा वे एक बार फिर नाराज परिजन एक बार फिर ८ जनवरी से बूढ़ा तालाब में धरना देंगे। इस दिन एक महासम्मेलन के साथ ही आंदोलन शुरू करने की योजना है। इस बार के आंदोलन में स्ढ्ढ अभ्यर्थी, संविदा और अनियमित कर्मचारी अन्य कई संगठनों के कर्मचारियों को भी आमंत्रित किया गया है। जिससे आंदोलन का स्तर बड़ा दिखे।

अगर सरकार मांगों को पूरा करेगी तो देंगे वोट

ये तो सच है कि हर किसी बेटा-बेटी की चाहत होती है। पापा कम से कम एक दिन तो साथ में रहें। और उनको कहीं घुमाएंं। लेकिन इनके पूरे नहीं होने पर बच्चों के मन मष्तिक पर इसका दुष्प्रभाव पड़ता है। ऐसे में आए दिन पति-पत्नी में मन मुटाव पैदा हो जाते हैं। यही ये परिवार है जो हमारे पुलिस के जवानों को हर दिन एक नई ऊर्जा देकर उन्हें लोगों की सेवा करने के लिए फिल्ड में भेजता है। लेकिन इनके दर्द को नहीं समझने पर अब पुलिस के परिजनों में सरकार के प्रति भी आक्रोश है। ये तो तय है कि पुलिस के परिवारों की मांगों को पूरा नहीं होने पर कांग्रेस के वोट बैंक में बड़े पैमाने में सेंध लगेगी।

जैसा, पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ हुआ था। बहरहाल, वोट नहीं देने के बात किसी पुलिस के परिजन ने कही है। ये ताे व्यवहारिक बातें हैं कि जो मांगें पूरी करेगा, उसके साथ सहानुभूति तो रहेगी ही।

उज्जवल दीवान नाम के एक सिपाही ने की थी आंदोलन की शुरूआत

उज्जवल दीवान नाम के एक सिपाही ने साल २०१८ में कई विषयों को लेकर आंदोलन की शुरुआत की थी। इस प्रदर्शन में पूरे प्रदेश भर के पुलिसकर्मियों के परिजनों ने हिस्सा लिया था। जिसके बाद पुलिसवालों के लिए साप्ताहिक अवकाश लेने का निर्णय पुलिस अधीक्षक (स्क्क) के ऊपर सौंपा गया। लेकिन इस आदेश का पालन सही तरीके से नहीं हो सका। इसके अलावा पुलिसकर्मियों के हितों को लेकर कई अन्य मांग ठंडे बस्ते में चली गई। इसके बाद से लगातार पुलिस परिवार के लोगों में नाराजगी बनी है।

बनी कमेटी लेकिन रिजल्ट आया जीरो

आंदोलन के बाद ८ दिसंबर २०२१ को एडीजी के नेतृत्व में समिति का गठन किया गया। इस समिति द्वारा शुरुआती दौर में कुछ फैसले भी लिए गए। लेकिन उसका सही से पालन नहीं हो सका। पुलिस परिजनों का आरोप है रिस्पॉन्स भत्ता में भेदभाव बना हुआ है। वीक ऑफ के लिए भी कई तरह की दिक्कतें बनी हुई है। इसके पहले पुलिस परिजनों के आंदोलनों को दबाने प्रशासन ने हर संभव प्रयास किए थे। इसमें दर्जनों महिलाओं की गिरफ्तारी भी हुई थी।