रायपुर (छत्तीसगढ़)। राजनीति में सफल होने के किये किसी नेता की सक्रियता के साथ-साथ उसकी राजनीतिक बुद्धि और कई बार शारीरिक कद काठी भी काफी हद तक मायने रखती है,जो लोगों को आकर्षित भी करती है।ऐसा ही एक नाम कांग्रेस के युवा नेता सुबोध हरितवाल (Congress youth leader Subodh Haritwal) का आता है,जो इस सांचे में बिल्कुल फिट बैठता है।सुबोध वो शख्स हैं जिन्हें भरी भीड़ में भी आसानी से कोई भी पहचान सकता है।व्यवहार में शिष्टाचार तो राजनीति के वे तमाम गुण भी मौजूद जो वर्तमान परिवेश में लोगों की जरूरत है।
कांग्रेस पहले 15 साल और अब पांच साल सत्ता में रहने के बाद फिर से विपक्ष की भूमिका में है।प्रदेश की राजधानी रायपुर के सभी चारों विधानसभा की सीटों पर अब भाजपा का कब्जा है और यहां बात सिर्फ भाजपा के कब्जे की नहीं है बल्कि हार का जो अंतर आया वह भी अप्रत्याशित रहा। जीत कर विधायक बने भाजपा के प्रत्याशियों को भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि वे इस कदर लोकप्रिय हैं।हालांकि भाजपा प्रत्याशियों की व्यक्तिगत लोकप्रियता की वजह से ये अंतर नहीं आया और न ही किसी मोदी लहर से।अन्यथा प्रदेश के कई क्षेत्रों में कांग्रेस को एकतरफा बढ़त नहीं मिलती।रायपुर की वजह कुछ और भी रही जो आज भी कांग्रेस के लिए एक चुनौती है।ऐसे में लोकसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस के होने वाले नए जिलाध्यक्ष के लिए भी यह बड़ी चुनौती होगी कि वह अपने दम पर किस तरह की रणनीति में काम करे कि संगठन को मजबूत करने सकारात्मक रूप से इसका आम जनों का भी समर्थन पार्टी को हासिल हो सके।
रायपुर शहर जिलाध्यक्ष (Raipur City District President) के दौड़ में वैसे तो कई नामों पर चर्चा हो रही है,पर एक नाम जो सबसे ऊपर और मजबूती से लिया जा रहा है वह सुबोध हरितवाल का ही है।इसके पीछे की वजह भी साफ है कि सुबोध का नाम किसी गुट विशेष से कभी नहीं जुड़ा।मोहन मरकाम जब तक पीसीसी चीफ रहे सुबोध उनके साथ साये की तरह कवच बन कर सांगठनिक गतिविधियों में सक्रिय रहे और जो भी उन्हें जिम्मेदारी दी गई उसे उन्होंने बखूबी निभाया।दीपक बैज को जब अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिली यहां भी वे उसी भूमिका में नजर आए जो पूर्व की भांति रहा।बल्कि इस बार वे महासचिव के पद पर संगठन में अपना योगदान दे रहे हैं।
एक और फेक्टर जो सुबोध को मजबूत बनाती है वह दिल्ली का है।सुबोध युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता भी हैं जो सीधा उन्हें केंद्रीय नेतृत्व से जोड़ती है और वे इस भूमिका में भी सक्रिय रहे हैं।देश के कई प्रदेशों में वे समय-समय पर दौरा कर पार्टी संगठन की बातों को मजबूती से रखते रहे हैं। केंद्रीय नेतृत्व उन्हें विधानसभा चुनावों में बड़ी जिम्मेदारी के साथ अन्य प्रदेशों में भी ऑब्जर्वर बना कर भेजते रही है।ऐसे में सुबोध का नाम एक जाना पहचाना है और इसका लाभ राजनीति में पार्टी को मिलता ही है।
ऐसे में स्वाभाविक तौर पर यह तय माना जा रहा है कि सुबोध रायपुर शहर जिलाध्यक्ष के लिए दीपक बैज के भी पहली पसंद हो सकते हैं।अब देखना होगा कि यह फेरबदल कब तक होती है और राजधानी के चुनौती पूर्ण वातावरण में किस तरह का निर्णय लिया जाता है।इसलिए कि कांग्रेस संगठन रायपुर शहर में किस तरह की मूमेंट चलाती है उसका संदेश पूरे प्रदेश में जाता है और जब यहां अपने एक भी विधायक न हों तो यह और भी चुनौती पूर्ण हो जाती है।
इनपुट (बृजेश सतपथी)
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