छत्तीसगढ़। चुनावी शतरंज पर इस समय आरक्षण के मुद्दे की बिसात बिछ गई है। (Chhattisgarh) छत्तीसगढ़ राज्य ही नहीं कमोवेश कर्नाटक भी इस रास्ते पर है। जहां BJP और कांग्रेस में ठनी है। लेकिन हालात इससे अलग-अलग हैं। कर्नाटक में आरक्षण (Reservation) को राज्यपाल ने मंजूरी दे दी, पर हाईकोर्ट कोर्ट में ममला अटक गया हैंं। लेकिन इधर छत्तीसगढ़ में 76 प्रतिशत आरक्षण विधानसभा में भूपेश सरकार ने पारित करा दिया है।
इसके बावजूद आज 44 दिन बाद भी अभी तक राज्यपाल ने बिल पर हस्ताक्षर नहीं किए है। इससे यहां सरकार और राजभवन में टकराव बढ़ गया है। पहले राज्यपाल ने 10 सवाल भूपेश सरकार को भेजे थे, उसके जवाब भी मिल गए। इससे भी राज्यपाल संतुष्ट नहीं हुईं। अब वे विधिक सलाहकार से सलाह ले रही हैं। जिसको लेकर कांग्रेस राज्यपाल के बारे में तमाम टिप्पणियां कर रही है। वहीं छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा था, जब कर्नाटक सहित भाजपा शासित राज्यों में आरक्षण जो बढ़ाए गए हैं, वहां तो राज्यपाल ने हस्ताक्षर कर दिए लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा, भाजपा की आरक्षण विरोधी नीति के चलते ही अभी तक विधेयकों पर राज्यपाल के हस्ताक्षर नहीं हो पाए हैं। जिस राज्य में भाजपा सत्ता में नहीं है वहां वह राजभवन के पीछे छिपकर राजनीतिक षडयंत्र करती है। मोहन मरकाम ने कहा, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा, मध्यप्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल, दिल्ली सहित सभी गैर भाजपा शासित राज्यों में जिस प्रकार से राजभवन की भूमिका है पूरा देश देख रहा है। छत्तीसगढ़ में भी यही हो रहा है।
२ दिसंबर को विधानसभा के विशेष सत्र में आरक्षण भी पारित हुआ था। उसी दिन राजभवन में हस्ताक्षर हेतु भेजा गया लेकिन आज भी आरक्षण बिल पर हस्ताक्षर नहीं होना दुर्भाग्य जनक है। आरक्षण बिल में हस्ताक्षर नहीं होने के चलते प्रदेश के इंजीनियरिंग कॉलेज ,फार्मेसी सहित कई शैक्षणिक संस्थानों के सीट आज रिक्त पड़ी हुई है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा, आरक्षित वर्ग भाजपा के इस चरित्र को पहचान चुका है।
जिस प्रकार से केंद्र की सरकार सरकारी संस्थाओं का निजीकरण कर रही है उनका मूल उद्देश्य सरकारी सेवाओं से आरक्षण को खत्म करना है। भाजपा की हिडन एजेंडा है चंद पूंजीपतियों के हाथों में पूरे देश की संपत्ति और जनता को सौंपना। आरक्षित वर्ग मजबूत होगा, नेतृत्व करेगा, अपना अधिकार मांगेगा तो भाजपा अपने एजेंडे को पूरा करने में नाकाम साबित होगी। इसीलिए भाजपा हर स्तर पर आरक्षण को रोकना चाहती है और आरक्षित वर्गों को उनके अधिकार से वंचित रखना चाहती है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा कि भाजपा से जुड़े आरक्षित वर्ग के नेताओं को अपने समाज के सामने अपनी मंसा स्पष्ट करनी चाहिए। उन्हें बताना चाहिए कि वे ७६त्न आरक्षण के पक्ष में हैं कि विरोध में। अगर पक्ष में हैं तो वह कब राजभवन जाकर उस आरक्षण बिल पर हस्ताक्षर करने की मांग करने जाएंगे। यदि वे आरक्षण बिल पर हस्ताक्षर नहीं करा सकते तो उन्हें भाजपा में रहने का अधिकार नहीं है।
मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने शनिवार को कहा कि उनकी सरकार आरक्षण के मुद्दे पर प्रतिद्धता के साथ काम कर रही है। बोम्मई का यह बयान तब आया है जब हाल ही में पंचमसालियों ने खुद को ओबीसी आरक्षण मैट्रिक्स की 2ए श्रेणी में शामिल करने की मांग के साथ विरोध प्रदर्शन किया है। पंचमसाली समुदाय, राज्य में लिंगायत जाति का एक प्रमुख उप-संप्रदाय है। बोम्मई ने आरोप लगाया कि कांग्रेस जाति की राजनीति से फायदा उठाने की कोशिश कर रही है। पंचमसाली समुदाय अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण मैट्रिक्स की श्रेणी 2ए (15 फीसदी) में शामिल होना चाहता है। वे अभी 3बी (फीसदी) श्रेणी में आते हैं।
हालांकि, कर्नाटक मंत्रिमंडल ने बीते साल 29 दिसंबर को वोक्कालिगाओं और लिंगायतों के लिए दो नई ओबीसी श्रेणी बनाने का फैसला किया था। मंत्रिमंडल ने कहा था कि उसने दस फीसदी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) आरक्षण के एक हिस्से का उपयोग करके उनकी आरक्षण मांग को पूरा करने की योजना बनाई है।
मंत्रिमंडल के फैसले के अनुसार, ओबीसी सूची की श्रेणी 3ए के तहत आने वाले वोक्कालिगाओं को अब नई श्रेणी 2सी में रखा जाएगा, जबकि 3बी के तहत आने वाले वीरशैव-लिंगायत को श्रेणी 2 डी में रखा जाएगा। मौजूदा श्रेणी 3ए और 3बी को खत्म कर दिया जाएगा।” कैबिनेट के इस फैसले पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी। कोर्ट ने इस मामले में यथास्थिति को बनाए रखने का आदेश दिया था।
बोम्मई ने कहा, “सरकार आरक्षण के मुद्दे पर प्रतिबद्धता के साथ काम कर रही है। पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा रिपोर्ट प्रस्तुत करने के एक हफ्ते के भीतर इसे कैबिनेट के समक्ष रखा गया था और इसे सैद्धांतिक रूप से मंजूरी दे दी गई थी। मांगों के आधार पर उन समुदायों को दो श्रेणी में शामिल करने और उनका आरक्षण बढ़ाने की घोषणा की गई थी।
बोम्मई ने कहा कि यह सरकार पर एक बड़ी जिम्मेदारी है। सभी समुदायों के साथ न्याय होना चाहिए और किसी के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए। उनसे जब सवाल किया गया कि सत्ता में रहते हुए कांग्रेस ने पंचमसालियों की मांग को पूरा क्यों नहीं किया, तो उन्होंने कहा, “जब सिद्धारमैया मुख्यमंत्री थे और लिंगायत पंचमसाली महासाभा के प्रमुख विजयानंद कशप्पनवार कांग्रेस विधायक थे, कंथाराज की अध्यक्षता वाले पिछड़ा वर्ग आयोग ने 2016 में पंचमसालियों को श्रेणी 2ए में शामिल करने के उनके आवेदन को खारिज कर दिया था।”