‘आरक्षण’ पर आदिवासी समाज को Supreme court का झटका, जानें, फैसला

आरक्षण कानून रद्द होने के खिलाफ उच्चतम न्यायालय पहुंचे आदिवासी समाज को राहत मिलती नजर नहीं आ रही है।

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  • Updated On - January 17, 2023 / 11:07 AM IST

छत्तीसगढ़। (reservation law) आरक्षण कानून रद्द होने के खिलाफ उच्चतम न्यायालय (Supreme court) पहुंचे आदिवासी समाज को राहत मिलती नजर नहीं आ रही है। सोमवार को सुनवाई के बाद न्यायालय ने ५८ प्रतिशत आरक्षण को जारी रखने की अंतरिम राहत देने से इन्कार कर दिया। अदालत ने सभी पक्षकारों को ४ मार्च तक लिखित जवाब पेश करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई अब २२ मार्च को होगी।

उच्चतम न्यायालय में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी वाले फैसले को लेकर ११ स्पेशल लीव पिटीशन दायर हुई हैं। इसमें से एक याचिका राज्य सरकार की, तीन आदिवासी संगठनों की, तीन आदिवासी समाज के व्यक्तियों की और चार याचिकाएं सामान्य वर्ग के व्यक्तियों की हैं। इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने नोटिस भी जारी किया हुआ है। सोमवार को सुनवाई में आदिवासी समाज के दो व्यक्तियों योगेश ठाकुर और विद्या सिदार की ओर से कोई वकील पेश नहीं हो पाया।

बताया जा रहा है, ऐसा आर्थिक दिक्कतों की वजह से हुआ है। वहीं अनुसूचित जनजाति शासकीय सेवक विकास संघ की ओर से पेश अधिवक्ता ने ५८त्न आरक्षण जारी रखने की अंतरिम राहत देने की राज्य सरकार की मांग का समर्थन किया। संक्षिप्त सुनवाई के बाद उच्चतम न्यायालय ने अंतरिम राहत देने से साफ इन्कार कर दिया है। अदालत ने चार मार्च तक सभी पक्षकारों को नोटिस का जवाब पेश करने को कहा है। मामले की सुनवाई अब २२-२३ मार्च को तय हुई है।

उच्च न्यायालय का प्रशासनिक आदेश भी पेश हुआ

सामान्य वर्ग के दो व्यक्तिगत याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता कौस्तुभ शुक्ला ने सोमवार को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय का एक प्रशासनिक आदेश पेश किया। इस आदेश के जरिये उच्च न्यायालय की भर्तियों में ५०त्न आरक्षण का फॉर्मुला लागू किया गया है। यानी अनुसूचित जाति को १६त्न,अनुसूचित जनजाति को २०त्न और अन्य पिछड़ा वर्ग को १४त्न का आरक्षण। यह आरक्षण २०१२ का वह अधिनियम लागू होने से पहले लागू था, जिसको उच्च न्यायालय ने असंवैधानिक बताकर रद्द कर दिया था।