रायपुर। छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले(Kawardha district) में एक परिवार ऐसा है, जो नाम को लेकर ज्यादा फर्क नहीं करता। नाम चाहे राम हो या रावण, लोग अपने कर्म पर ही ज्यादा विश्वास करते हैं। इस वजह से पिता ने अपने बेटे का नाम रावण(Ravana) रखा। उसके स्कूल में, आधार कार्ड में नाम रावण ही लिखा है। इससे उनको कोई परेशानी नहीं हुई. यहां तक कि घर का नाम लंकेश निवास, मोहल्ले का नाम लंकेश नगर है।
किसी व्यक्ति का नाम रावण हो तो आज के दौर ये जरूर कुछ लोगों को अटपटा जरूर लगेगा. हालांकि छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले के नगर पंचायत बोड़ला में रहने वाले एक परिवार को इस नाम से कोई आपत्ति नहीं है. पेशे से शिक्षक पुनाराम पनागर ने अपने बेटे का नाम ही रावण पनागर रखा है. इतना ही नहीं युवक को भी अपने इस नाम से कोई आपत्ति नहीं थी। स्कूल में, आधार कार्ड में यही नाम दर्ज है। पिता के रखे नाम को बेटे ने कभी बदलने की भी कोशिश नहीं की। बड़ा होकर वह इस नाम पर गर्व महसूस करता है।
रावण पनागर का कहना है कि रावण नाम से बचपन में बच्चे, उसके साथी काफी चिढ़ाते थे. लेकिन बाद में सभी ने मेरे नाम को स्वीकार कर लिया. वो रावण को आदर्श नहीं मानता, आदर्श तो उसके श्रीराम ही हैं, लेकिन रावण की अच्छाई को भी वे स्वीकार करते हैं. वे पूजा में विश्वास करता हैं। रामायाण, गीता, हनुमान चालिसा, शिव तांडव स्त्रोत का पाठ करते है. फिलहाल पनागर श्रीमद्भगवत गीता का अध्ययन कर रहे हैं।
पिता को भी अपने बेटे के कर्म पर पूरा भरोसा है। रावण की मां प्रमिला का कहना है कि बच्चों के नाम रखने का अधिकार माता-पिता का होता है। वो अपने हिसाब से बेहतर से बेहतर नाम रखने का प्रयास करते हैं, जिस पर बड़ा होकर बच्चों को कोई आपत्ति न हो। लेकिन स्कूल में एक बार जो नाम दर्ज हो जाता है, वो बदलता नहीं है।
रावण पनागर के माता-पिता ने जो नाम रखा है, उसे उससे कोई दिक्कत नहीं है। रावण पनागर की मां कहती है कि नाम में क्या रखा है, जो बेहतर करेगा, वो सही है। नाम के अनुरूप इस कलयुग में काम नहीं रह गया है। रावण नाम आज के दौर में प्रासंगिक नहीं लगता है, लेकिन कवर्धा के पनागर परिवार को इससे कोई परेशानी महसूस नहीं होती है। कोई अपने बच्चे का नाम रावण नहीं रखना चाहता, लेकिन इस परिवार ने अपने बेटे का नाम ही रावण रख दिया। पिता पुनाराम पनागर मानते हैं कि जिनके नाम राम, कृष्ण हैं, वे क्या कुछ खास कर सकते है। नाम से कुछ नहीं होता, कर्म प्रधान समाज में रावण नाम का व्यक्ति भी बेहतर कर सकता है। रावण की अच्छाई को अपनाया जा सकता है। बुराई का त्याग करना सही है