डराने वाले ‘गब्बर’ ने हंसाया भी खूब, इस फिल्म के लिए मिला था बेस्ट कॉमेडियन का पुरस्कार
By : hashtagu, Last Updated : July 27, 2024 | 1:42 pm
कितने आदमी थे…तेरा क्या होगा कालिया, जो डर गया वो समझो मर गया। ये महज डायलॉग्स नहीं बल्कि अमजद खान के करियर को परिभाषित करने वाले क्षण थे। हिंदी सिनेमा जगत को शोले के रूप में एवरग्रीन फिल्म मिली तो गब्बर के तौर पर अमजद खान जैसा खलनायक भी। अमजद ने अपने नाम के मुताबिक ही गौरव के कई पलों से सिने प्रेमियों को नवाजा।
- खुद को किरदार में नहीं बांधा। पंखों को फैलाया और कॉमेडी से गुदगुदाया भी। यही वजह थी कि उन्हें हंसाने के लिए बेस्ट कॉमेडियन का फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला। फिल्म थी 1985 में आई मां कसम। इसके अलावा भी एक फिल्म उनकी कॉमिक टाइमिंग को लेकर काफी पसंद की जाती है और वो है चमेली की शादी। जिसमें उन्होंने वकील की भूमिका निभाई थी। अमजद को विरासत में एक्टिंग मिली। उनके पिता जाने माने कलाकार जयंत थे। जयंत बंटवारे के बाद पेशावर से मुंबई शिफ्ट हो गए थे।
भारत में ही अमजद खान का जन्म हुआ। शुरुआती शिक्षा सेंट एंड्रयूज हाई स्कूल बांद्रा में हुई। इसके बाद उन्होंने आरडी नेशनल कॉलेज से पढ़ाई की। अमजद ने कम उम्र में ही थियेटर का रूख कर लिया। उन्होंने पिता जयंत के साथ अपनी पहली फिल्म 11 साल की उम्र में की, जिसका नाम नाजनीन (1951) था। छह साल बाद वह अपनी दूसरी फिल्म अब दिल्ली दूर नहीं (1957) में दिखाई दिए। उस दौरान उनकी उम्र महज 17 साल थी। फिल्म हिंदुस्तान की कसम (1973) में भी नजर आए।
अमजद खान को साल 1975 में आई रमेश सिप्पी की फिल्म शोले से अलग पहचान मिली। विलेन गब्बर सिंह का किरदार निभाकर वह रातों-रात हिंदी सिनेमा में छा गए। इसके बाद अमजद खान ने शतरंज के खिलाड़ी (1977), हम किसी से कम नहीं (1977), गंगा की सौगंध (1978), देस परदेस (1978), दादा (1979), चंबल की कसम (1980) , नसीब (1981), सत्ते पे सत्ता (1982), याराना (1981) और लावारिस (1981) जैसी फिल्मों में उन्होंने अहम भूमिका निभाई।
अमजद ने लगभग बीस वर्षों के करियर में 130 से अधिक फिल्मों में काम किया। 27 जुलाई 1992 में ‘गब्बर’ अमजद खान दुनिया को अलविदा कह गए। अपने पीछे ऐसी विरासत छोड़ गए जिस पर आज भी उनके फैंस को नाज है।