नई दिल्ली, 14 नवंबर (आईएएनएस)। देश के कई अग्रणी स्कूलों के अध्यापकों ने छात्रों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए वैपिंग डिवाइस और हीट-नॉट-बर्न प्रोडक्ट्स जैसे ई-सिगरेट के समर्थन में फैलाई जाने वाली भ्रामक सूचनाओं के खिलाफ एकजुट होने के लिए हाथ मिलाया है।
‘टीचर्स अगेंस्ट वैपिंग’ ने केंद्रीय शिक्षा और कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को पत्र लिखकर सभी प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और शिक्षकों, अभिभावकों एवं बच्चों को इस तरह के डिवाइस के निर्माण, बिक्री और यहां तक कि इन्हें अपने पास रखने को भी प्रतिबंधित करने वाले नए कानून के बारे में शिक्षित करने के लिए संचार कार्यक्रमों को संस्थागत स्वरूप देने की मांग की है।
टीचर्स अगेंस्ट वैपिंग पहल वैपिंग से जुड़े खतरों को सामने लाती है और सख्त कदम उठाने की जरूरत पर जोर डालती है। नोएडा सेक्टर 122 स्थित राघव ग्लोबल स्कूल की प्रधानाध्यापिका उपासना मित्तल ने कहा, ”वैपिंग डिवाइस और हीट-नॉट-बर्न टबैको प्रोडक्टस समेत विभिन्न प्रकार के ई-सिगरेट का तेजी से प्रसार चिंता का विषय बन गया है। विशेषरूप से यह चिंता की बात है कि स्कूल जाने वाले बच्चे इनका शिकार हो रहे हैं।
आधुनिक टेक्नोलॉजी आधारित वैपिंग डिवाइस का आकर्षण और यह भ्रम हमारे बच्चों के लिए सबसे बड़ा खतरा है कि ये उत्पाद कम हानिकारक होते हैं। इन उत्पादों के कारण स्वास्थ्य पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभावों के बारे में बच्चों, अभिभावकों और शिक्षकों को शिक्षित करने के उद्देश्य से हमें तत्काल मजबूत और सक्रिय संचार कार्यक्रमों की आवश्यकता है।”
देश में वैपिंग के खतरों के बारे में आश्चर्यजनक रूप से बहुत कम जागरूकता के कारण इनके समर्थन में भ्रामक सूचनाओं का प्रसार जारी है। भारत में स्कूली बच्चों के बीच एक हालिया सर्वेक्षण में पाया गया कि 14 से 17 साल के 89 प्रतिशत बच्चे इनके दुष्प्रभाव से अनजान हैं और 96 प्रतिशत बच्चे इस बात से अनजान हैं कि भारत में वैपिंग पर प्रतिबंध है।
नोएडा सेक्टर 132 स्थित डीपीएस गौतमबुद्ध नगर की प्रधानाध्यापिका सुप्रीति चौहान ने कहा, ”मैं टीचर्स अगेंस्ट वैपिंग पहल का तहे दिल से समर्थन करती हूं। वैपिंग और इलेक्ट्रॉनिक निकोटिन डिलीवरी डिवाइस की लत हमारे बच्चों पर दूरगामी प्रभाव डालने वाला एक संकट है। यह मुद्दा केवल स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं से नहीं जुड़ा है। यह हमारे स्कूलों में शैक्षणिक माहौल पर भी बहुत प्रभाव डालता है।
हमारे देश में ई-सिगरेट और वैपिंग डिवाइस पर प्रतिबंध के बावजूद यह गलत सूचना फैलाई जा रही है कि ई-सिगरेट कम हानिकारक हैं। यह चिंता बढ़ाने वाली बात है, क्योंकि इस भ्रामक जानकारी के कारण स्कूली बच्चे इनकी चपेट में आते हैं। हमें न केवल अपने बच्चों के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए बल्कि उनकी अच्छी पढ़ाई के लिए भी इस मुद्दे का तत्काल समाधान करने की आवश्यकता है।”
ई-सिगरेट को बहुत चतुराई से एक आकर्षक और सामाजिक रूप से स्वीकार्य आदत के रूप में पेश किया जाता है। इसके खतरों को कम करके दिखाया जाता है और इसे पारंपरिक सिगरेट छोड़ने के माध्यम के रूप में स्थापित किया जाता है। बच्चों को लुभाने के लिए इन्हें आकर्षक डिजाइन और स्ट्रॉबेरी से लेकर बबल-गम तक के ढेर सारे फ्लेवर में उपलब्ध कराया जाता है। युवाओं की वर्तमान पीढ़ी डिजिटल दुनिया से जुड़ी है और नई टेक्नोलॉजी को आसानी से अपना लेती है।
टेक्नोलॉजी के प्रति उनका यही झुकाव उन्हें अंतरराष्ट्रीय ई-सिगरेट कंपनियों की मार्केटिंग स्ट्रेटजी के प्रति ज्यादा संवेदनशील बनाता है। धूम्रपान करने वालों के बीच आम धारणा है कि ई-सिगरेट एक स्वस्थ विकल्प हैं। यह सच नहीं है। ई-सिगरेट से निकलने वाल एरोसोल हानिरहित नहीं हैं। इनमें निकोटिन, डाइएसेटाइल जैसे हानिकारक तत्व हैं, जो फेफड़ों की गंभीर बीमारी का कारण बनते हैं। इनके साथ-साथ अल्ट्राफाइन पार्टिकल और विभिन्न रसायन भी फेफड़ों के स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा करते हैं।
2.5 माइक्रोन (पीएम2.5) से छोटे पार्टिकल से भरपूर ये एरोसोल सांस से जुड़ी सेहत के लिए भी हानिकारक हैं। इसके अतिरिक्त, इनमें कैंसर पैदा करने वाले रसायन और निकल, टिन एवं सीसा जैसी भारी धातुएं भी होती हैं। कभी-कभी ऐसे ई-लिक्विड ऑयल बेस्ड भी होते हैं, जिनमें टीएचसी (टेट्राहाइड्रोकैनाबिनोल) जैसे साइको-एक्टिव कंपोनेंट भी होते हैं। ऐसे उत्पादों में असल में क्या मिला है, यह जानना भी उपभोक्ताओं के लिए किसी चुनौती जैसा है, क्योंकि निकोटिन-फ्री के रूप में प्रचारित किए जाने वाले कुछ उत्पादों में परीक्षण के बाद निकोटिन पाया गया है।