आर्मी हॉस्पिटल में सात साल के बच्चे का दुर्लभ बोन मैरो ट्रांसप्लांट

पहली बार सात साल के एक बच्चे (Seven year old child) का दुर्लभ बोन मैरो ट्रांसप्लांट (Rare bone marrow transplant) किया गया है।

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  • Updated On - December 18, 2023 / 05:10 PM IST

नई दिल्ली, 18 दिसम्बर (आईएएनएस)। पहली बार सात साल के एक बच्चे (Seven year old child) का दुर्लभ बोन मैरो ट्रांसप्लांट (Rare bone marrow transplant) किया गया है। यह ट्रांसप्लांट आर्मी हॉस्पिटल आर एंड आर दिल्ली कैंट में किया गया। यह ट्रांसप्लांट मास्टर सुशांत पौडेल पर किया गया। सुशांत प्राथमिक प्रतिरक्षा क्षमता विकार (इम्यूनोडिफीसिअन्सी डिसऑर्डर) से पीड़ित था।

रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, इस अभूतपूर्व प्रक्रिया ने इसी प्रकार की स्वास्थ चुनौतियों का सामना करने वाले बच्चों और उनके परिवारों के लिए भी आशा के नए दरवाजे खोल दिए हैं।

  • सिपाही प्रदीप पौडेल के 7 साल के बेटे सुशांत का एक साल की उम्र में ही एआरपीसी1बी से ग्रस्त होने का पता चला था, जो इम्यूनोडेफिशियेंसी का एक बहुत ही दुर्लभ रूप है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसने उसकी प्रतिरक्षा प्रणाली को गंभीर रूप से प्रभावित कर दिया था, जिसके कारण उसे बार-बार जीवन-घातक संक्रमण और अन्य जटिलताओं का सामना करने का खतरा हो गया था। उसे छह महीने पहले आर्मी हॉस्पिटल (आर एंड आर) में रेफर किया गया था, लेकिन उनके पास एचएलए मैचिंग सिबलिंग डोनर उपलब्ध नहीं था।

अस्पताल की हेमेटोलॉजी विभाग की टीम ने एक उपयुक्त डोनर को तलाशने और सावधानीपूर्वक बोन मैरो ट्रांसप्लांट करने की व्यवस्था करने के लिए एक कठिन यात्रा शुरू की। 30 नवंबर 2023 को किए गए मैच्ड अनरिलेटेड डोनर (एमयूडी) ट्रांसप्लांट में उस एचएलए उपयुक्त डोनर से स्वस्थ स्टेम कोशिकाओं को निकाला गया, जो इस मामले में एक स्वैच्छिक असंबंधित डोनर था, और उन स्टेम सेल्स को सुशांत पौडेल के रक्तप्रवाह में डाला गया।

इसके बाद कीमोथेरेपी की बहुत ऊंची खुराक से उसकी स्वयं की दोषपूर्ण कोशिकाओं को नष्ट कर दिया गया। इस प्रक्रिया का उद्देश्य दोषपूर्ण प्रतिरक्षा कोशिकाओं को स्वस्थ कोशिकाओं से बदलना था, जिसके द्वारा उस रोगी बच्चे को एक स्वस्थ और जीवंत जीवन का नया मौका उपलब्ध कराना था।

इस सफल प्रत्यारोपण के बाद, एएचआरआर के कमांडेंट लेफ्टिनेंट जनरल अजित नीलकांतन ने कहा, “यह एएचआरआर में संपूर्ण चिकित्सा बिरादरी के लिए बहुत गौरव और संतुष्टि का पल है और टीम के प्रयासों के कारण ही इस रोगी के इलाज में सफलता अर्जित हुई है।”

  • हेमेटोलॉजी विभाग के विभाग प्रमुख ब्रिगेडियर राजन कपूर ने अनुसार, सुशांत पौडेल की यह यात्रा किसी चमत्कार से कम नहीं है। यह उपलब्धि समर्पित चिकित्सा टीम के मिले-जुले प्रयासों और सुशांत के परिवार के अटूट समर्थन तथा डोनर की उदारता का जीवंत प्रमाण है।

कपूर का कहना है कि भारत में इस इम्युनोडेफिशिएंसी डिसआर्डर में किया गया यह ऐसा पहला प्रत्यारोपण है। हेमेटोलॉजी विभाग के कर्नल राजीव कुमार के मुताबिक केवल पांच मरीजो में से एक के भाई-बहन का पूरा एचएलए मैच करता है। इस मरीज में दातरी से मिले एचएलए मैच्ड गैर- संबंधित डोनर की स्टेम कोशिकाओं की उपलब्धता वास्तव में जीवन-घातक इम्यूनोडेफिशियेंसी विकार से ग्रस्त ऐसे मरीजों के लिए एक गेम चेंजर है।