वैज्ञानिकों ने विकसित की फेफड़ों को स्कैन करने की एक नई विधि

रेडियोलॉजी और जेएचएलटी ओपन में प्रकाशित अध्ययन में टीम ने बताया वे परफ्लुओरोप्रोपेन नामक एक विशेष गैस का उपयोग कैसे करते हैं, जिसे एमआरआई स्कैनर पर देखा जा सकता है।

  • Written By:
  • Publish Date - December 25, 2024 / 03:42 PM IST

नई दिल्ली, 25 दिसंबर (आईएएनएस)। वैज्ञानिकों की एक टीम ने फेफड़ों को स्कैन करने की एक नई विधि विकसित की है, ऐसी विधि जो देख सकेगी कि रियल टाइम में प्रत्यारोपित फेफड़े (lungs) ठीक से काम कर रहे हैं या नहीं।

स्कैन विधि की सहायता से ब्रिटेन के न्यूकैसल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में टीम यह देख सकी कि अस्थमा, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) तथा लंग्स ट्रांसप्लांट वाले मरीजों के सांस लेते समय हवा फेफड़ों के अंदर और बाहर किस प्रकार आती-जाती है।

न्यूकैसल हॉस्पिटल्स एनएचएस फाउंडेशन ट्रस्ट और न्यूकैसल यूनिवर्सिटी यूके में रेस्पिरेटरी ट्रांसप्लांट मेडिसिन के प्रोफेसर एंड्रयू फिशर ने कहा, “हमें उम्मीद है कि इस नए प्रकार के स्कैन से हम प्रत्यारोपित फेफड़ों में होने वाले बदलावों को सामान्य ब्लोइंग परीक्षणों में नुकसान के लक्षण दिखने से पहले ही पहले ही देख पाएंगे। इससे उपचार जल्दी शुरू हो पाएगा और प्रत्यारोपित फेफड़ों को और अधिक नुकसान से बचाने में मदद मिलेगी।”

रेडियोलॉजी और जेएचएलटी ओपन में प्रकाशित अध्ययन में टीम ने बताया वे परफ्लुओरोप्रोपेन नामक एक विशेष गैस का उपयोग कैसे करते हैं, जिसे एमआरआई स्कैनर पर देखा जा सकता है।

गैस को रोगी सुरक्षित रूप से सांस के साथ अंदर और बाहर ले सकते हैं, और फिर फेफड़ों में गैस कहां तक पहुंची है, यह देखने के लिए स्कैन किया जाता है।

न्यूकैसल विश्वविद्यालय में परियोजना प्रमुख प्रोफेसर पीट थेलवाल ने कहा कि हमारे स्कैन से पता चलता है कि फेफड़े की बीमारी से जूझ रहे मरीजों में कहां पर वेंटिलेशन ठीक से नहीं हो रहा है और यह भी पता चलता है कि उपचार से फेफड़े के किस हिस्से में सुधार हुआ है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक भविष्य में लंग ट्रांसप्लांट मामलों और अन्य फेफड़ों की बीमारियों के नैदानिक ​​प्रबंधन में इस स्कैन विधि का उपयोग किए जाने की संभावना है।