मोटे लोगों के प्रति अब नजरिया बदलने का समय: शिक्षाविद
By : hashtagu, Last Updated : July 9, 2024 | 12:33 pm
अमेरिका के अलबामा विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र की एसोसिएट प्रोफेसर रेखा नाथ ने अपनी किताब ‘व्हाय इट्स ओके टू बी फैट’ में समाज में मोटापे के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव की वकालत की है।
उन्होंने लिखा, “मोटा होना अनाकर्षक होने के साथ ही बेहद खराब माना जाता है। हम मोटापे को कमजोरी, लालच और आलस्य की निशानी मानते हैं।”
नाथ ने कहा, “ हमने स्वास्थ्य, फिटनेस, सुंदरता और अनुशासन से जुड़ी पतले होने की चाहत को एक नैतिक प्रयास बना दिया है। मोटापे से बचने के लिए ‘सही’ जीवनशैली के विकल्प को चुनना एक कर्तव्य के तौर पर देखा जाता है।”
किताब के अनुसार पिछले 50 वर्षों में वैश्विक मोटापे की दर तीन गुना बढ़ गई है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बचपन के मोटापे को 21वीं सदी की सबसे गंभीर वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक माना है।
नाथ के अनुसार, मोटापे से छुटकारा पाने की एक विशेषता के रूप में देखना बंद कर देना चाहिए, तथा इसके बजाय इसे सामाजिक समानता के नजरिए से देखना चाहिए, तथा उन व्यवस्थित तरीकों पर ध्यान देना चाहिए जिनसे समाज मोटे लोगों को उनके शारीरिक आकार के लिए दंडित करता है।
ऐसा देखा जाता है कि मोटापे को लेकर आम स्टीरियोटाइप के शिकार डॉक्टर और नर्स मोटे लोगों को धमकाते हैं या परेशान भी करते हैं। इसी आधार पर उन्हें खराब स्वास्थ्य सेवाएं भी मिलती है।”
लेखक ने कहा, ”मोटे छात्रों का सहपाठियों और शिक्षकों द्वारा भी उपहास उड़ाया जाता है। कार्यस्थल पर मोटे लोगों को बड़े पैमाने पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है।”
एक समूह का सर्वेक्षण करते हुए नाथ ने कुछ चीजों पर फोकस किया। स्टडी में पता चला कि वजन से ज्यादा आहार और फिटनेस का सेहत पर प्रभाव पड़ता है।
उदाहरण के लिए, 2010 में 36 अध्ययनों की व्यवस्थित समीक्षा में पाया गया कि स्वस्थ, मोटे व्यक्तियों की असमय मृत्यु की संभावना अस्वस्थ सामान्य वजन वाले व्यक्तियों की तुलना में कम होती है।
नाथ ने एक और बात की ओर ध्यान आकर्षित कराया। उन्होंने कुछ प्रमाण सामने रख साबित किया कि मोटे लोगों पर अतिरिक्त वजन कम करने के लिए दी जाने वाली सलाह, जैसे खाना कम करना, अधिक चलना- नुकसानदायक भी हो सकता है।
कई अध्ययनों से पता चलता है कि जो लोग वजन को कलंक मानते हैं, उनमें अवसाद और घटते आत्मसम्मान की आशंका बढ़ जाती है।
अंत में उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि “मोटा होना ठीक है और इसमें कुछ गलत भी नहीं है।”