नई दिल्ली: डिजिटल युग (digital world) में बच्चे मोबाइल, गेमिंग, ऑनलाइन क्लास और वीडियो स्ट्रीमिंग जैसे प्लेटफॉर्म्स के बीच लगातार व्यस्त रहते हैं—even होमवर्क ब्रेक या सोने से पहले भी। लेकिन अब एक नई स्टडी ने चेतावनी दी है कि सिर्फ मानसिक एकाग्रता या मूड ही नहीं, बल्कि बच्चों का दिल भी इस लगातार स्क्रीन एक्सपोजर से खतरे में है।
अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के जर्नल में प्रकाशित एक हालिया शोध में बताया गया है कि हर अतिरिक्त घंटे की स्क्रीन टाइम बच्चों और किशोरों में हृदय रोगों का जोखिम बढ़ा सकता है। यह अध्ययन खासतौर पर भारतीय परिवारों के लिए अहम है, जहां बच्चों का समय स्कूल, ट्यूशन और डिजिटल डिवाइसेज़ में बंटा रहता है।
इस अध्ययन में 1,000 से अधिक बच्चों और किशोरों (6–18 वर्ष) और उनकी माताओं को शामिल किया गया। डेटा डेनमार्क की दो लॉन्गिट्यूडिनल स्टडीज़ (COPSAC2010 और COPSAC2000) से लिया गया।
🔹 स्क्रीन टाइम माता-पिता या बच्चों द्वारा रिपोर्ट किया गया था।
🔹 नींद और शारीरिक गतिविधि की माप दो हफ्तों तक पहनाए गए एक्सेलेरोमीटर से की गई।
🔹 कार्डियोमेटाबोलिक रिस्क (CMR) को 5 मार्कर्स के आधार पर आंका गया:
कमर की चौड़ाई
सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर
HDL (अच्छा कोलेस्ट्रॉल)
ट्राइग्लिसराइड्स
ब्लड ग्लूकोज
हर अतिरिक्त घंटे की स्क्रीन टाइम से
6–10 साल के बच्चों में CMR करीब 0.08 SD बढ़ा।
18 साल के किशोरों में यह जोखिम लगभग 0.13 SD तक बढ़ा।
नींद की भूमिका अहम:
कम या देर से सोने वाले बच्चों में दिल की बीमारियों का जोखिम ज़्यादा पाया गया।
बेहतर नींद से स्क्रीन टाइम के नुकसान को करीब 12% तक कम किया जा सकता है।
ब्लड बायोमार्कर सिग्नेचर:
शोधकर्ताओं ने 37 प्रकार के रक्त-आधारित बायोमार्कर का एक खास पैटर्न पाया जो यह दर्शाता है कि स्क्रीन टाइम कैसे शरीर के मेटाबोलिज्म को प्रभावित करता है।
इस पैटर्न के आधार पर किशोरों में भविष्य के 10 साल में दिल की बीमारी का अनुमान भी लगाया जा सकता है।
ध्यान दें: यह स्टडी ऑब्जर्वेशनल है यानी यह कारण और प्रभाव को सिद्ध नहीं करती, लेकिन स्क्रीन टाइम और हृदय जोखिम के बीच मजबूत संबंध को दर्शाती है।
स्क्रीन का समय सीमित करें:
6–10 वर्ष: दिन में 1 घंटे से अधिक न दें।
किशोर: पढ़ाई के अलावा स्क्रीन टाइम को 2 घंटे के भीतर सीमित रखें।
“नो स्क्रीन” रूल बनाएं:
खाना खाते समय और सोने से 1 घंटा पहले स्क्रीन बिल्कुल बंद।
स्लीप रूटीन पर फोकस करें:
बच्चों को रोज़ाना 9–11 घंटे की नींद सुनिश्चित करें।
स्क्रीन टाइम को एक्टिव टाइम में बदलें:
गेम्स की जगह आउटडोर एक्टिविटीज़ और परिवार के साथ खेलें।
रोल मॉडल बनें:
खुद भी स्क्रीन पर समय सीमित करें। बच्चों पर इसका सीधा प्रभाव पड़ता है।
बच्चों का स्क्रीन टाइम अब केवल आंखों या पढ़ाई पर असर करने वाली चीज़ नहीं रही—यह उनके भविष्य के दिल की सेहत से भी जुड़ गई है। भारतीय परिवारों को अब जागरूक होकर, छोटे लेकिन असरदार बदलाव लाने की ज़रूरत है। बेहतर नींद, संतुलित स्क्रीन टाइम और सक्रिय जीवनशैली से बच्चों का दिल दशकों तक सुरक्षित रह सकता है।