नई दिल्ली, 19 फरवरी (आईएएनएस)। आयुर्वेद (Ayurved) में फूलों का विशेष स्थान है। कई ऐसे पुष्प हैं, जो न केवल प्राकृतिक सौंदर्य को बढ़ाते हैं, बल्कि औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं और संपूर्ण स्वास्थ्य का ख्याल रखते हैं। इनमें शंखपुष्पी, कचनार, गुड़हल, पलाश और केवड़ा अहम हैं।
चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में भी इन फूलों के औषधीय गुणों का उल्लेख मिलता है। मानसिक शांति से लेकर पाचन सुधार, त्वचा रोगों से राहत और दिल का ये फूल ख्याल रखते हैं।
शंखपुष्पी को आयुर्वेद में विशेष स्थान प्राप्त है। यह मुख्य रूप से मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत करने और स्मरण शक्ति बढ़ाने में सहायक होती है। इसका उपयोग प्राचीन काल से मस्तिष्क को शांत करने, तनाव दूर करने और अनिद्रा की समस्या को ठीक करने के लिए किया जाता रहा है। चरक संहिता के अनुसार, शंखपुष्पी ब्रह्म रसायन के रूप में जानी जाती है और मिर्गी जैसी मानसिक समस्याओं में भी फायदेमंद मानी जाती है। इसके सेवन से दिमागी क्षमता बढ़ती है और यह नसों को शांत करने में मदद करती है। साथ ही, यह कुष्ठ, कृमि और विष के प्रभाव को कम करने में भी प्रभावी होती है।
शंखपुष्पी का उपयोग केवल मानसिक स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है, बल्कि यह संपूर्ण शरीर के लिए लाभदायक है। इसका सेवन पेट की समस्याओं से राहत दिलाने के लिए भी किया जाता है। इसकी जड़ का उपयोग विषाक्त पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने के लिए किया जाता है। नियमित सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है और खांसी, सांस की बीमारियों और रक्त संचार को बेहतर बनाने में सहायक होती है। चरक संहिता में भी इसे तिक्त गण में रखा गया है और बच्चों के स्वास्थ्य सुधार के लिए इसके चूर्ण के उपयोग की सलाह दी गई है। इस औषधि का इस्तेमाल बालों को लंबा और चमकदार बनाने के लिए भी होता है।
अब बात उस फूल की जिसे वसंत का संदेशवाहक कहा जाता है। नाम है कचनार! अपनी खूबसूरत कली और छाल के कारण विशेष रूप से जाना जाता है। यह पाचन तंत्र को मजबूत बनाने में सहायक होता है और कब्ज, पेट फूलने जैसी समस्याओं को दूर भगाता है। इसके सेवन से गैस्ट्रिक रस का संतुलन बना रहता है और पाचन क्रिया बेहतर होती है। इसके अलावा, कचनार की छाल को थायरॉइड संतुलन बनाए रखने में अत्यधिक उपयोगी माना जाता है। कचनार गुग्गुल, जो कि कचनार की छाल से बनाई जाती है, आयुर्वेद में थायरॉइड की समस्या के लिए एक प्रभावी औषधि मानी जाती है।
इसे त्वचा रोगों से मुक्ति दिलाने के लिए भी प्रयोग में लाया जाता है। इसकी पत्तियों और छाल में मौजूद एंटीसेप्टिक गुण त्वचा संबंधी समस्याओं, जैसे खुजली, दाद और एलर्जी में राहत दिलाते हैं। एक सबसे जरूरी बात अगर वजन कम करना है तो भी इस फूल को दैनिक सेवन का हिस्सा बना लें। चरक संहिता के अनुसार इसकी छाल और पत्तियों से बना काढ़ा शरीर में जमा अतिरिक्त चर्बी को कम करने में मदद करता है। यह रक्त को शुद्ध करने और महिलाओं के हार्मोनल संतुलन को बनाए रखने में भी सहायक होता है। मासिक धर्म की अनियमितता में भी इसका उपयोग लाभदायक होता है।
गुड़हल जिसे हिबिस्कस कहते हैं में आयरन की मात्रा भरपूर होती है। विटामिन सी, कैल्शियम और एंटीऑक्सीडेंट भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, इसका उपयोग त्वचा और बालों की देखभाल के लिए भी किया जाता है। इसके फूलों का रस लगाने से बालों का झड़ना कम होता है और डैंड्रफ की समस्या दूर होती है। इसके अलावा, यह रक्त संचार को बेहतर बनाकर हृदय को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करता है।
सुश्रुत संहिता के अनुसार गुड़हल का सेवन वजन घटाने में भी सहायक होता है। इसकी चाय मेटाबॉलिज्म को तेज करने में मदद करती है, जिससे शरीर की अतिरिक्त चर्बी कम होती है। यह लिवर को डिटॉक्स करने और शरीर से हानिकारक तत्वों को बाहर निकालने में भी मदद करता है। इसके एंटीबैक्टीरियल गुण शरीर को संक्रमण से बचाते हैं और शरीर की कोशिकाओं को स्वस्थ रखते हैं।
पलाश का फूल अपनी चमकदार लाल रंगत के कारण ‘जंगल की ज्वाला’ के रूप में जाना जाता है, के औषधीय गुण भी किसी से कम नहीं हैं। पेट की कीड़ों को समाप्त करने में इसका कोई सानी नहीं है। इसके कृमिनाशक गुण पाचन तंत्र को मजबूत बनाते हैं और आंतों की सफाई में मदद करते हैं। यूटीआई को ट्रीट करने में भी सहायक होता है।
चरक संहिता और अन्य आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसे संजीवनी बूटी के रूप में वर्णित किया गया है, जो शरीर की संपूर्ण कार्यक्षमता को बनाए रखने में मदद करती है।
केवड़े का फूल भगवान भोले नाथ पर भी अर्पित किया जाता है। अपनी सुगंध के लिए पहचाना जाता है, लेकिन इसके औषधीय गुण भी कम नहीं हैं। यह तनाव को दूर करने और मानसिक संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। इसके तेल की मालिश सिर दर्द को तुरंत कम करने में प्रभावी होती है। यह जोड़ों के दर्द और गठिया जैसी समस्याओं में राहत देता है। आयुर्वेद में केवड़ा के अर्क को भूख बढ़ाने और पाचन सुधारने के लिए भी उपयोगी माना गया है।
केवड़ा का उपयोग बुखार और शरीर की थकावट को दूर करने के लिए किया जाता है। इसके एंटीऑक्सीडेंट गुण कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से बचाव में सहायक होते हैं। यह शरीर को शुद्ध करने और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में भी मदद करता है।
आयुर्वेद में फूलों को केवल सौंदर्य का प्रतीक नहीं माना गया, बल्कि उन्हें संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए उपयोगी माना गया है। चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में इनका विस्तृत वर्णन मिलता है, जो यह दर्शाता है कि हमारी पारंपरिक चिकित्सा पद्धति कितनी समृद्ध और वैज्ञानिक है। नख से शिखा तक, ये फूल संपूर्ण शरीर का ख्याल रखते हैं और प्राकृतिक चिकित्सा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बने हुए हैं।