कीबोर्ड पर टाइप करने की तुलना में हाथ से लिखना आपके मस्तिष्क के लिए हो सकता है अच्छा : अध्ययन

By : hashtagu, Last Updated : January 30, 2024 | 12:43 pm

लंदन,(आईएएनएस)। एक अध्ययन में मस्तिष्क (mental) कनेक्टिविटी को कैसे बढ़या जा सकता है, इसका खुलासा हुआ है। अध्ययन के अनुसार, यदि आप मस्तिष्क कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना चाहते हैं तो कीबोर्ड पर टाइप करने के बजाय हाथ से लिखें।

कीबोर्ड का उपयोग करने की अनुशंसा की जाती है क्योंकि यह अक्सर हाथ से लिखने की तुलना में तेज होता है। हालांकि, हाथ से लिखने में स्पेलिंग सटीकता और मेमोरी रिकॉल में सुधार पाया गया है।

नॉर्वे में शोधकर्ताओं ने यह पता लगाने के लिए कि क्या हाथ से अक्षर बनाने की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप अधिक मस्तिष्क कनेक्टिविटी हुई, लेखन के दोनों तरीकों में शामिल अंतर्निहित तंत्रिका (नसों के) नेटवर्क की जांच की गई।

नॉर्वेजियन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के मस्तिष्क शोधकर्ता प्रोफेसर ऑड्रे वैन डेर मीर ने कहा, “हम देखते हैं कि हाथ से लिखते समय, मस्तिष्क कनेक्टिविटी पैटर्न कीबोर्ड पर टाइप करते समय की तुलना में कहीं अधिक कठिन होता है।”

मस्तिष्क शोधकर्ता प्रोफेसर ने आगे कहा, ”इस तरह की व्यापक मस्तिष्क कनेक्टिविटी को मेमोरी फॉर्मेशन और नई जानकारी को एन्कोड करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है और इसलिए, सीखने के लिए फायदेमंद है।”

फ्रंटियर्स इन साइकोलॉजी जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में, टीम ने 36 विश्वविद्यालय के छात्रों से ईईजी डेटा एकत्र किया, जिन्हें बार-बार स्क्रीन पर दिखाई देने वाले शब्द को लिखने या टाइप करने के लिए प्रेरित किया गया था।

लिखते समय, वे टचस्क्रीन पर सीधे कर्सिव में लिखने के लिए डिजिटल पेन का उपयोग करते थे। टाइप करते समय वे कीबोर्ड पर ‘की’ दबाने के लिए एक उंगली का उपयोग करते थे।

हाई-डेंसिटी वाले ईईजी, जो एक नेट में सिलकर सिर के ऊपर रखे गए 256 छोटे सेंसरों का उपयोग कर मस्तिष्क में विद्युत गतिविधि को मापा गया, प्रत्येक संकेत के लिए पांच सेकंड के लिए रिकॉर्ड किए गए।

जर्नल फ्रंटियर्स इन साइकोलॉजी में प्रकाशित परिणामों से पता चलता है कि जब प्रतिभागियों ने हाथ से लिखा तो मस्तिष्क के विभिन्न क्षेत्रों की कनेक्टिविटी बढ़ गई, लेकिन टाइप करने पर नहीं बढ़ी।

इससे यह भी पता चलता है कि जिन बच्चों ने टैबलेट पर लिखना और पढ़ना सीखा है। उन्हें उन अक्षरों के बीच अंतर करने में कठिनाई हो सकती है जो एक-दूसरे की दर्पण इमेज हैं, जैसे ‘बी’ और ‘डी’।

मस्तिष्क शोधकर्ता प्रोफेसर ने कहा, “उन्होंने वास्तव में अपने शरीर के साथ यह महसूस नहीं किया है कि उन अक्षरों को उत्पन्न करना कैसा लगता है।”