एमपी के छह मंडलों में से प्रत्येक में गलाकाट प्रतिस्पर्धा

हालांकि कांग्रेस को 2018 में विंध्य क्षेत्र में बड़ा झटका लगा था, लेकिन उसने क्षेत्र में मतदाताओं की भावनाओं का चालाकी से उपयोग किया और 30 साल बाद रीवा के मेयर पद पर जीत हासिल की।

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  • Publish Date - June 18, 2023 / 11:36 AM IST

भोपाल, 18 जून | मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में विधानसभा चुनाव में महज पांच महीने शेष हैं, ऐसे में भाजपा और कांग्रेस के बीच गलाकाट लड़ाई शुरू हो गई है। राज्य में सीधी टक्कर में दोनों राष्ट्रीय दलों के बीच कर्नाटक की तरह हाई-वोल्टेज चुनाव प्रचार देखने की संभावना है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिहाज से विधानसभा चुनाव के नतीजे अहम होंगे

2019 में, सत्तारूढ़ भाजपा ने राज्य की 29 लोकसभा सीटों में से 28 पर जीत हासिल की थी।

छह डिवीजनों (क्षेत्र और भूगोल के अनुसार) में विभाजित राज्य में कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, शिवराज सिंह चौहान, कांतिलाल भूरिया, ज्योतिरादित्य सिंधिया, राजेंद्र शुक्ला, और नरेंद्र सिंह तोमर जैसे राजनीतिक दिग्गजों का अपने-अपने क्षेत्रों व जातियों में मजबूत प्रभाव है।

कमोवेश इनमें से हर एक राजनेता का मध्य प्रदेश की राजनीति में मजबूत दबदबा है।

मसलन, 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने विंध्य क्षेत्र की 30 में से 24 सीटों पर जीत हासिल की थी। दो बार के पूर्व मंत्री और रीवा के विधायक राजेंद्र शुक्ल की चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका थी, हालांकि, वे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में अपने लिए जगह सुरक्षित नहीं कर सके। रीवा जिले की सभी आठ सीटों पर भगवा पार्टी ने जीत हासिल की थी।

हालांकि कांग्रेस को 2018 में विंध्य क्षेत्र में बड़ा झटका लगा था, लेकिन उसने क्षेत्र में मतदाताओं की भावनाओं का चालाकी से उपयोग किया और 30 साल बाद रीवा के मेयर पद पर जीत हासिल की।

सतना के एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता राजेंद्र सिंह ने दावा किया, विंध्य क्षेत्र में एक करीबी मुकाबला होगा, और कांग्रेस वर्तमान परिदृश्य के अनुसार 10-12 सीटें जीतेगी।

ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में, दो केंद्रीय मंत्रियों- ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर के गढ़ में, कांग्रेस ने 2018 में 34 विधानसभा सीटों में से 27 पर जीत हासिल की थी। तब सिंधिया कांग्रेस के साथ थे। हालांकि, उन्होंने और उनके 22 वफादार विधायकों ने कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को छोड़कर हुए भाजपा का दामन थाम लिया।

हाल ही में मुरैना में जिला पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक की अध्यक्षता करते हुए नरेंद्र सिंह तोमर ने दावा किया कि वह और सिंधिया मिलकर काम कर रहे हैं, ताकि इस साल ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में भाजपा कम से कम 26 सीटें जीत सके। तोमर ने कहा, हम ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में कम से कम 26 सीटें जीतेंगे और भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आएगी।

इसी तरह महाकौशल अंचल में कांग्रेस का प्रदर्शन शानदार रहा। 2018 के विधानसभा चुनावों में ग्रैंड ओल्ड पार्टी ने 38 सीटों में से 24 सीटें हासिल कीं। इस क्षेत्र में जबलपुर और छिंदवाड़ा शामिल हैं, जो पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ का गढ़ है।

महाकौशल क्षेत्र में आठ जिलों में 15 अनुसूचित जनजाति की आरक्षित सीटें हैं। कांग्रेस ने उनमें से 13 पर जीत हासिल की, जबकि भाजपा ने 2018 के चुनावों में शेष दो सीटें जीतीं। यही वजह है कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने जबलपुर से पार्टी के चुनाव प्रचार की शुरुआत की, जबकि दो दिन पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लाडली बहना योजना की पहली किस्त वहीं से जारी की।

मालवा और निमाड़ क्षेत्र, जिसमें राज्य के दो बड़े शहर इंदौर और उज्जैन हैं, में 66 सीटें हैं। इनमें से 2018 में कांग्रेस को 35 सीटें मिलीं (उज्जैन संभाग की 29 में से 11 सीटें और इंदौर संभाग की 37 में से 24 सीटें)।

भोपाल संभाग, जिसमें मुख्यमंत्री चौहान के गृह जिले रायसेन, विदिशा और सीहोर शामिल हैं, में 25 विधानसभा सीटें हैं, इनमें से 17 भाजपा के पास और आठ कांग्रेस के पास हैं, इनमें भोपाल जिले की तीन सीटें शामिल हैं। इसी तरह, होशंगाबाद, जिसका नाम पिछले साल नर्मदापुरम रखा गया था, में 11 विधानसभा सीटें हैं, इनमें से सत्तारूढ़ भाजपा ने सात सीटें जीतीं और शेष चार कांग्रेस ने हासिल कीं।

मध्य प्रदेश विधानसभा में सदस्यों की संख्या 230 है। 2018 के पिछले चुनावों में कांग्रेस ने 114 सीटें जीतीं, जबकि भाजपा ने 109 सीटों पर जीत हासिल की थी। (आईएएनएस)