‘शरद यादव’ की इच्छा थी, बेटी दे मुखाग्नि, मध्यप्रदेश में अंतिम संस्कार

'पापा (शरद यादव) बेटा-बेटी में फर्क नहीं समझते थे। हमेशा उन्होंने बेटे जैसा ही बेटी को समझा और आगे बढ़ाया।

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  • Updated On - January 15, 2023 / 09:02 AM IST

नर्मदापुरम। ‘पापा (शरद यादव) बेटा-बेटी में फर्क नहीं समझते थे। हमेशा उन्होंने बेटे जैसा ही बेटी को समझा और आगे बढ़ाया। उनकी अंतिम इच्छा थी कि जब भी उनका निधन हो, अंतिम संस्कार केवल गांव के स्वयं के बगीचे में हो। मुखाग्नि बेटा-बेटी मिलकर दें, इसलिए उनकी इच्छा को हमने पूरा किया है।’

पूर्व केंद्रीय मंत्री और  (जनता दल यूनाइटेड ) के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष (Sharad Yadav) शरद यादव शनिवार शाम पंचतत्व में विलीन हो गए। पैतृक गांव एमपी के आंखमऊ (नर्मदापुरम) में उनका अंतिम संस्कार (Funeral) किया गया। बेटी सुभाषिनी और बेटे शांतनु दोनों ने एक साथ उन्हें मुखाग्नि दी। उन्हें राजकीय सम्मान के साथ गार्ड ऑफ ऑनर भी दिया गया।

बेटी सुभाषिनी की जुबानी…

आज हमारे लिए शोक का दिन है। देश के लिए भी शोक का दिन है, जो देश ने एक ऐसा नेता खोया, जिन्होंने औरों के लिए सोचा, काम किया। पिछड़े, गरीब, दलित समाज के लिए काम किया। जो अंतिम पायदान के लोग थे, वे उनके लिए खड़े रहे। परिवार को भी महत्व नहीं दिया। जब वे सक्रिय राजनीति में थे, तब उनके परिवार से कोई भी राजनीति में नहीं था और न राजनीति करने की इच्छा थी। मैं राजनीतिक तौर पर नहीं, बल्कि इंसान की विरासत भी आगे बढ़ाने की बात कहती हूं।

मैं सोचती हूं कि अगर पिताजी की दी हुई विरासत को केवल उनके बच्चे ही नहीं, उन्हें चाहने वाले भी उनके विचारों को आगे बढ़ाकर चले, तो उसी से उनका नाम जिंदा रहेगा। पिताजी को मैं स्वयं अपना नेता मानती हूं। वो हमारे लिए प्रेरणा हैं। उनका संघर्ष, अच्छी नीयत, सच्चाई, प्रेमभाव ही हमारे लिए कमाई है। जिसे लेकर हम आगे बढ़ रहे हैं। पिता ने देश की राजनीति की है। जबलपुर, बदायूं, मधेपुरा ही नहीं पूरे देश में उन्होंने राजनीति की है। उनके चाहने वाले सभी जगह हैं।

अंतिम इच्छा- गांव में अंतिम संस्कार, बेटा-बेटी दे मुखाग्नि

सुभाषिनी ने बताया पिता की दो इच्छाएं थीं.. मेरे निधन पर मुझे गांव ले जाना और बेटा-बेटी दोनों के हाथों मुखाग्नि दी जाए। उन्होंने कहा- ५० साल के राजनीति जीवन में उनका समर्पण केवल देश और जनता के लिए रहा। वे खुद का घर भी नहीं बना पाए। गांव (आंखमऊ) और मधेपुरा (बिहार) में ही घर है। जहां उनकी कर्मभूमि है। जन्मभूमि और कर्मभूमि दोनों में संतुलन बनाकर रखा। अपना आशियाना नहीं बसाया, केवल दूसरों के बारे में सोचा। वे समाज में एक संदेश देना चाहते थे कि लड़का और लड़की बराबर है। हमने पिताजी की दोनों इच्छाएं पूरी कीं।

गांव से था लगाव, हर आदमी संभालेगा उनकी विरासत

पिताजी पैतृक गांव आंखमऊ से लगाव रखते थे। वो एक-दो साल में हमेशा गांव आते थे। हम लोगों को भी साथ लेकर आते थे, ताकि शहर से हटकर गांव की जिंदगी जीना सीखा सकें। उसमें हमारे पिता कामयाब रहें। हम लोगों को गांव का कल्चर सब कुछ पता है। अपनी जमीन से जुड़े हैं। मैं ही नहीं, एक-एक आदमी जो शरद यादव में विश्वास रखता है, वो उनकी विरासत को संभालेगा।

मधेपुरा सीट से भाई कर रहा तैयारी

बिहार के मधेपुरा सीट से सांसद रहे शरद यादव के निधन के बाद, अब उस क्षेत्र में उनका बेटा शांतनु यादव सक्रिय है। सुभाषिनी ने बताया पिता की कर्मभूमि मधेपुरा सीट रही है। वहां से मेरा भाई सक्रिय है। आज का दिन राजनीति की बातें करने का नहीं है।

अंतिम संस्कार में पहुंचे एमपी-बिहार के नेता

दिल्ली से चार्टर्ड फ्लाइट के जरिए पार्थिव देह को शनिवार को राजाभोज एयरपोर्ट भोपाल लाया गया। जहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने श्रद्धांजलि दी। दोपहर ३ बजे पार्थिव देह उनके पैतृक गांव आंखमऊ पहुंची। पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह भी आंखमऊ तक साथ आए। शरद यादव को श्रद्धांजलि व अंतिम संस्कार में शामिल होने केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल, सांसद राव उदय प्रताप सिंह, सोहागपुर विधायक विजय पाल, विधायक संजय शर्मा, पूर्व मंत्री सुरेश पचौरी, रामेश्वर नीखरा, पुष्पराज पटेल, बिहार के क्षेत्रीय दल विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के प्रमुख और पूर्व मंत्री मुकेश सहनी समेत कांग्रेस, भाजपा, जेडीयू के कई नेता भोपाल, जबलपुर, इंदौर, देवास, यूपी, महाराष्ट्र, बिहार से आंखमऊ पहुंचे।

शिवराज बोले- शरद यादव ने नैतिकता की राजनीति की

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा, वे अचानक चले गए। मेरे तो वे पड़ोसी थे। मेरा गांव नर्मदा के इस पार था, उनका गांव नर्मदा के उस पार था। बचपन से प्रखर और जुझारू थे। अन्याय के खिलाफ लड़ने वाले शरद भाई छात्र जीवन में ही राष्ट्रीय राजनीति में छा गए थे। वे जेपी के आंदोलन के प्रमुख स्तंभ थे। वे जेल में रहते हुए चुनाव जीते। भारत की राजनीति पर छा गए। उन्होंने ८०-९० के दशक में राष्ट्रीय राजनीति की दशा बदली। मंडल कमीशन लागू कराने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका थी। समाज के कमजोर और पिछड़े वर्ग के कल्याण के लिए उन्होंने अपने जीवन को होम दिया था। वे ऐसे नेता थे कि जो गलत होता था, उसका विरोध करते थे। उन्होंने नैतिकता की राजनीति की। जब इंदिरा जी ने इमरजेंसी लगाई और संसद का कार्यकाल ६ साल कर दिया था, तब शरद जी ने संसद से इस्तीफा देकर कहा था कि जनता ने हमें ५ साल के लिए चुना है, ६ साल के लिए नहीं।