हैशटैगयू डेस्क। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ (Indore Bench of Madhya Pradesh High Court) ने केंद्रीय कर्मचारियों पर आरएसएस में शामिल (Join RSS on central employees) होने पर लगे प्रतिबंध को हटाने का फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि यह प्रतिबंध बिना किसी जांच के लगाया गया था और इससे मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा था। केंद्र सरकार ने 9 जुलाई 2024 को प्रतिबंध हटा दिया है।
1-इंदौर कोर्ट ने 1966 से आरएसएस पर लगे प्रतिबंध को हटाया।
2-प्रतिबंध नागरिकों के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
3-किसी भी संगठन पर प्रतिबंध से पहले जांच की आवश्यकता।
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने गुरुवार, 25 जुलाई को राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से जुड़ी एक याचिका पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा-खेद की बात है कि केंद्र सरकार को अपनी गलती का अहसास होने और यह स्वीकार करने में 5 दशक का समय लग गया कि उसने राष्ट्रीय स्वंयसेवक जैसे अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध संगठन को गलत तरीके से ऐसे प्रतिबंधित संगठन की सूची में रखा था, जिसकी गतिविधियों में केंद्रीय कर्मचारी शामिल नहीं हो सकते।
इसके अलावा हाईकोर्ट ने यह भी निर्देश दिए कि प्रतिबंध को लेकर पूर्व में जारी आदेशों में 9 जुलाई 2024 को जो संशोधन किया गया है, उसकी सूचना केंद्र सरकार के सभी विभाग अपनी वेबसाइट के मुख्य पेज पर प्रमुखता से जारी करें। मप्र हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने गुरुवार को उस याचिका का निराकरण कर दिया, जो केंद्र सरकार के अधिकारियों और कर्मचारियों के राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ की गतिविधियों में शामिल होने पर लगे प्रतिबंध के खिलाफ दायर की गई थी।
केंद्र सरकार के सेवानिवृत्त अधिकारी इंदौर निवासी पुरुषोत्तम गुप्ता ने एडवोकेट मनीष नायर के माध्यम से मप्र हाईकोर्ट की इंदौर पीठ के समक्ष एक याचिका दायर की थी।
इसमें कहा था कि आरएसएस द्वारा की जाने वाली सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियों से प्रभावित होकर याचिकाकर्ता एक सक्रिय सदस्य के रूप में आरएसएस में शामिल होना चाहते हैं, लेकिन केंद्र सरकार ने वर्ष 1966 से ही केंद्रीय कर्मचारियों (जिसमें सेवानिवृत्त कर्मचारी भी शामिल हैं) के आरएसएस की गतिविधियों में शामिल होने पर प्रतिबंध लगा रखा है।
–याचिका की सुनवाई के दौरान ही केंद्र सरकार की तरफ से एडवोकेट हिमांशु जोशी ने कोर्ट में जानकारी दी थी कि केंद्र ने वर्ष 1966,1975,1980 में पारित आदेशों में संशोधन कर दिया है और केंद्रीय कर्मचारियों के आरएसएस की गतिविधियों में सम्मलित होने पर लगा प्रतिबंध हटा दिया गया है। अब केंद्रीय कर्मचारियों, अधिकारियों (जिनमें सेवानिवृत्त कर्मचारी भी शामिल हैं) के आरएसएस की गतिविधियों में शामिल होने पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
वर्ष 1966,1970, 1980 में आदेश जारी कर राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ को प्रतिबंधित संगठनों की सूची में डाला गया। यह मामला विशेष रूप से सबसे बड़े स्वैच्चिक गैर सरकारी संगठन में से एक से जुड़ा है।
विस्तृत टिप्पणी जरूरी है, क्योंकि भविष्य में राष्ट्रीय हित में काम करने वाले किसी सार्वजनिक संगठन को सरकार की सनक और पसंद के आदेश से सूली पर नहीं चढ़ाया जाए, जैसे कि आरएसएस के साथ हुआ।
यह स्पष्ट नहीं है कि 1960 और 1990 के दशक में आरएसएस की गतिविधियों को किस आधार पर सांप्रदायिक माना गया और वह कौन सी रिपोर्ट थी, जिसके आधार पर सरकार इस फैसले पर पहुंची। आरएसएस पर प्रतिबंध लगाने का अाधार क्या था, यह भी नहीं पता।
–इस तरह की कोई रिपोर्ट होई कोर्ट के पटल पर प्रस्तुत नहीं हुई। हमने कई बार इस संबंध में जानकारी मांगी।
–कोर्ट ने कहा कि आरएसएस सरकारी सिस्टम के बाहर एक अंतराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित स्वसंचालित स्वैच्छिक संगठन है। इसकी गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेने वाले देश के सभी क्षेत्रों से हैं। संघ की छत्रछाया में धार्मिक,सामाजिक, शैक्ष्ज्ञणिक, स्वास्थ्य और कई गैर राजनीतिक गतिविधियां संचालित हो रही हैं। इनका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है।
कोर्ट ने कहा, संघ की सदस्यता लेने का उद्देश्य स्वंय को राजनीतिक गतिविधियों में शामिल करना नहीं हो सकता। सांप्रदायिक या राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल होना तो दूर की बात है। दशकों पहले इन बारीक अंतर को नजर अंदाज किया गया।
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